खोलकर,
तरंग मे सब
घोलकर,
जिन डालियों
पर तुम
लिपटता चाहते हो,
आज हो निर्बाध
बहना चाहते हो,
आज किनारों
को उधेड़ना
चाहते हो,
आज मय मे
लिप्त हो,
बोझिल हुए हो,
आज होने तृप्त
तुम बहने लगे हो,
परजीवी बनकर
तुम क्यूँ जीना
चाहते हो,
वनवास देकर
महल क्यूँ
लेना चाहते हो?
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