Wednesday, 14 June 2023

परजीवी

आज लताए
खोलकर,
तरंग मे सब 
घोलकर,
जिन डालियों 
पर तुम 
लिपटता चाहते हो,

आज हो निर्बाध 
बहना चाहते हो,
आज किनारों 
को उधेड़ना
चाहते हो,

आज मय मे
लिप्त हो,
बोझिल हुए हो,
आज होने तृप्त 
तुम बहने लगे हो,
परजीवी बनकर 
तुम क्यूँ जीना 
चाहते हो,
वनवास देकर 
महल क्यूँ 
लेना चाहते हो?

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...