Sunday 25 June 2023

ख़त

कितने ही खत भेजे तुमको 
अक्षर-अक्षर चुन-चुन के,
कितने बीते बरसात के दिन
बूंदे-बूंदे आँगन गिर के,

उन बूँदों के गिरने भर से 
तुम ध्यान नहीं देती हो,
प्रिय तुम मेरे खत पढ़कर 
अब जवाब नहीं देती हो,

कब डोली मे तुम बैठोगी
अंगना अपना छोड़ प्रिये,
किस चौखट पर छन से धर दोगी 
तुम पायल से उन्माद प्रिये,
तुम किसे पुकार कर प्रेम से अब 
भर दोगी फिर से प्राण प्रिये,
तुम मेरे मेघदूत को अब 
बरसात नहीं देती हो,

जब घर से बाहर जाती हो 
तो कौन तुम्हें पहुँचाता है,
तुम्हारे कंधों पर हाथ धरे 
यह कौन पूछकर बढ़ता है,
अब सरोज से कोमल तन पर 
किसका बाल लहलहाता है,
तुम धूप-छाँव के खेल मे अब 
जलने मेरे पाँव नहीं देती हो!


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