की बिगड़ जाऊँ,
मैं राम से भी
तुम्हारे लिए लड़ जाऊँ,
मैं किसी और से बातें
करना छोड़ दूँ,
मैं बातों को हर
तुमसे जोड़ दूँ,
किसी और छोड़कर
आओ ना मेरे पास,
मैं औरों से मिलकर
थोड़ा अकड़ जाऊँ,
हर काम को पूछकर
मुझसे किया न करो,
कि मैं हाल पूछने मे
हिचक जाऊँ,
आयतें मेरे नाम की
पढ़ती हो क्यूँ,
मैं अयोध्या छोड़कर
अब किधर जाऊँ?
इन्तेज़ार मेरे फोन का
करने लगे हो,
मै कैसे किसी
तकिये से लिपट जाऊँ,
मै जानता हूँ की
काबिल हो तुम
लंका जलाने के,
पर विभीषण हूँ मै
कैसे को चुप रह जाऊँ,
मेरे बिस्तर पर लेटकर
आंसू बहाते हो,
मैं दिन मे कैसे
नजर आऊँ,
तुम्हारा नाम लेकर
मुझे पहचानते हैं लोग,
मै चाँद क्या देखूँ
और छुप जाऊँ?
इतनी सिद्दत से ना चाहो
मुझको चाहने वाले,
मै फिक्र भी करूँ
तो सम्भल जाऊँ!
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