एक चिट्ठी लिखोगी,
मेरी कविताएं
जब फिर से पढ़ोगी,
उससे छुपोगी
उनसे छुपोगी
मेरा पता तुम
किसीसे पूछ लोगी,
मां की याद
जब बहुत ही आएगी
आंसु पोछोगी खुद ही
और मुस्कुराओगी
फिर क्या सोचकर
तुम आगे बढ़ोगी?
तुम नही रोक पाओगी
अपनी कलम को,
महलों के मीनारों की
जद्दो–जेहद को,
गंगा किनारे की
रेती उठाने,
तुम मीरा–सी बनकर
पैदल चलोगी,
तुम लिखोगी वो मंज़र
रेतों के किलों की,
तुम बातों की अपने
फसाने लिखोगी,
तुम खुशी की महज़ एक
झलक याद कर
दामन को अपने
भिगोया करोगी।
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