Saturday, 26 February 2022

Network

एक दुनिया हो 
बिना नेटवर्क वाली
जहां लोग मिलते
हो बाहें फैलाए,

जहां आवाज 
फोन की कम
और पास की 
ज्यादा हो,

जहां बच्चे
खेलते हों कंचे 
और लड़ते हों खुलके,

जहां पानी 
सड़कों पे नहीं
खेतों में बहते हों,

जहां स्कूटी पर नहीं
लोग पैदल चलते हों,
कपड़े मशीनों में धुलकर
पेड़ों पर सूखते हों,

जहां लोग 
गंगा के किनारे सोते हों
सुबह धूप में जागते हों,

मुर्गे और कुत्ते 
भैंसों से लड़ते हों
बिल्लियाँ रोटी चुराती हों
और मोर घूमने आते हों

जहां कोयल का 
रिंगटोन हो
वर्षा को बुलाते,
जहां वक्त रुका हो
लोग हों बोलते बतियाते,

नेटवर्क इंसानों का हो
प्रकृति के साथ
नेटवर्क सबका 
अच्छा हो
खुद के साथ !



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