याद आती है,
जान तुम चली गई हो
दूर तब मुस्कुराती हैं,
तुम्हारी याद ही लबों
पे मेरे तैर जाती हैं,
बात उन दिनों की जो
चिल्ला के करती थी तुम,
अब गुस्सा नही मुस्कान
मेरे मन में लाती हैं,
तुम्हारी हरकतों पे
जो कसे,
ताने थे मैंने तब
अब बन के वो उलाहना
मन को सताते हैं,
खीच लेता हाथ या
हो ही जाता चुप,
गुर्रा ही देता गैर
जब तुमको सताते हैं,
पर गैर बनकर अब
तुम्हारा बन रहा हूं जब
राम फिर क्यूं मुस्कुरा के
मन में आते है,
राम की महिमा की माया
क्यूं जताते हैं ?
No comments:
Post a Comment