ओढ़ कर बैठा था,
चादर सफेद–सी
खद्दर की,
मेरा दानव
छुप कर बैठा था,
यादें समेत कर
बत्तर–सी,
दानव रात मे
उठता है,
दानव घर मे
टहलता है,
दानव पैखाने मे
सोच रहा,
दानव नहाने मे
नाच रहा,
दानव की मर्यादा
को बाहर लेकर आई हो,
दानव की चुभति भाषा को
तुम कविता मे दिखलाई हो,
दानव को राम दिखाने को
सूर्पनखा बहन तुम आई हो,
मंथरा चाची तुम आई हो,
तुम कैकेई को भरमाई हो,
राम की आज परीक्षा को
दसरथ को भी मजबूर किया
तुम रावण को भड़काई हो !
राम–नाम का सत्य आज,
अग्नि–परीक्षा से सुलझाई हो।
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