धूप मेरे साथ
मेरे साए की तरह
मेरी कंधों पर चढ़ी हुई
मेरे रहनुमा की तरह,
मखमली छुवन–सी है
नर्म हाथ यार का
मेरे सामने खिली हुई है
मुस्कान के खुमार की,
धूप तब रुकि नहीं
जब बैठकर मै सोचता
धूप तब बढ़ी नहीं
जब चल रहा था मै यदा–कदा,
मेरे हर होशोहवास मे
धूप मेरे साथ थी
मै करता और रुका मगर
धूप सदाबहार थी,
धूप मुझे सेकने को बैठना
ही क्यों पड़ा
जब मेरे मुकाम पर
धूप भी था संग बढ़ा !
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