की नाक में दम पड़ जाए,
सर इतना भी क्या झुकाएं
की ऊँचाई कम पड़ जाए,
ना चुप इतना भी रहें
की आंखें भी नम पड़ जाए,
निरीह ना हो इतना की
पशुओं को रहम पड़ जाए,
सितमगर के इम्तेहान को
मुस्कुराकर भी निभाया जाए,
कहीं उनको अपनी खुदाई का
ना भरम पड़ जाए,
उनको सुनने की तमन्ना तो
नागवार हो रही है,
फोन इतना भी क्या करें
वो सहम पड़ जाए,
अब नहीं समझौते की
गुंजाईश लग रही है,
क्यूँ न महीने दो महीने की
अनबन पड़ जाए,
आओ नाम लिख लें
दुश्मनों का दिलों पर,
ना जाने किस मोड़ पर
वो सनम बन जायें,
हसरतें कहाँ
पूरी होती हैं किसी की,
तुमसे मिलने को कम
एक जन्म पड़ जाये,
और नसीबो से होते हैं
फरिश्तों से मुलाकात,
ना जाने किस पल
अल्लाह का करम पड़ जाए!
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