आम कर दो
मुझे मैडम न कहो,
मेरा नाम कह दो!
इन चिमनियों के धुन्ध से
कमरा ओझल है,
चिंगारियों की तलाश मे
आंखे बोझिल हैं,
कुछ मिजाज मेरा खास
लोगों मे कहाँ है?
तुम आईने का मेरे
इन्तेजाम कर दो!
मिट्टी के मलबे मे
मिट्टी ही तो है,
रूह को छुपाये
बंद मुट्ठी ही तो है,
ये आंखें नहीं सोयी हैं
रात भर सब्र मे,
इन्हें सुबहों की रोशनी मे
बेनकाब कर दो,
मेरी पानी की केतली
आज गर्म करने दो,
मुझे मेरे गिलास आज
खुद से धुलने दो,
मेरे खाने का मूड
कुछ चटपटा-सा है,
आज रहने दो तस्तरी को
अब आराम करने दो,
मुझे अपने हाथों से
मेरा काम करने दो,
राम को जुबान पर
कुछ विराम करने दो!
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