मंथरा कोई आए,
मेरा तिलक मिटाकर
भगवा रंग ओढ़ा दे,
कभी गोकुल मे कोई
मेरे जन्म का भेद बताये,
राधा छोड़ पग मेरे
मथुरा को बढ़ जाए,
कभी अर्जुन को ललकारूं
कोई जाति मेरी पूछे,
मै सर नीचे कर सोचूँ
और दुर्योधन गले लगा ले,
कोई कंथक मेरे घोड़े
पुर मे खींच ले जाए,
मरीज, मृतक वृद्ध
मेरे राहों मे आ जाए,
कोई राहुल जन्म ले आए
मैं अंतहपुर मे रोऊँ,
छोड़ यशोधरा घर मे
मै स्वयं ढूंढ़ने जाऊँ,
कोई जन न शेष हो रण मे
मै जीत देखने जाऊँ,
रक्तरंजित देख कलिंग
मैं तलवार छोड़ पछताऊं,
नाम हज़ार ले राम के
मैं काशी पैदल आऊं,
शिव खड़े मिलें रस्ते मे
मै डोम समझ के हटाऊं,
बहुत ज्ञान अर्जित कर
मै कबीरा से भिड़ जाऊं,
बिना बहस जीते ही
मैं कागज उल्टा पाऊं,
मै चिढ़ा हुआ मीरा से
मय प्याला उसे बढ़ाऊं,
वो पीकर रख दे अमृत
मै सोच पे अंकुश लाऊं,
मै अपने मुल्क के भीतर
साहिबजादों को बुलवाऊं,
उन्हें तोड़ते-तोड़ते
मैं स्वयं को टूटा पाऊं!
मुझे बेऔलाद बुलाएं
आकर कोई फिरंगी,
मैं तलवार उठाकर
घोड़े पर चढ़ जाऊं!
गांधी भगत
No comments:
Post a Comment