Thursday, 29 February 2024

सुरभि

आप आनंद और अध्यात्म की आदर्श 
कौशल और कुशलता की कैलाश,
मानवता और मनोरथ की मानसरोवर 
गुण और गल्पों की गंगोत्री,

विवेक और विश्वास की वैकुण्ठ 
धर्म और धैर्य की धरती,
कर्म और कृति की कहानी 
चपलता और चातुर्य की चण्द्रमा,

विधा और विमाओं की विशालता 
सच और सामर्थ्य की सारनाथ,
गहराई और ज्ञान की गया
चेतन और चरित्र की चारधाम!

जिजीविषा और जादू  की जगन्नाथ 
पाक और प्रवीणता की पूरी,
शांति और शून्यता की शिव
गरिमा और गुरुत्व की गौरी,

सत् और सार की सीता
राग और रंज की राम,
परम्परा और परवरिश की पैगंबर 
शीतलता और सरलता की सुरभि !

ज्वाला

ज्वाला की लपट सुनहरी 
ज्वाला का उन्माद प्रबल,
ज्वाला की है चकाचौंध 
ज्वाला में हैं नेत्र सजल,

ज्वाला के भीतर राख 
ज्वाला मे टूटे साख,
ज्वाला विध्वंश का आदि 
ज्वाला मिट्टी का अंत,

पहले दिखती ज्वाला 
पहले बनता आदर्श,
पहले हाथों से करताल 
फिर बाद में संघर्ष,

राम नाम का चोगा 
ज्वाला होती जल!


सरलता

सरलता से आया ज्ञान
दिन पर दिन बढ़ा,
राम का संवर्धन 
मिट्टी में भरा,

बूँद- बूँद का पानी 
बूंद भरा विश्वास,
नदी की राह से चला 
बना हरस-उल्लास,

रात-रात की नींद 
सुबह-सुबह का प्राण,
सूर्य-नमस्कार और 
सुदर्शन क्रिया का ध्यान,

तारों भरा आकाश 
घास की चटाई,
मित्रों का सन्दर्भ 
मुरली का अभ्यास,

थोड़ा चाकरी पैदल 
थोड़ा साइकिल के ऊपर,
थोड़ी पार्क की सैर
थोड़ा लेखन कार्य,

धीरे-धीरे राम 
धीरे-धीरे कृष्ण,
धीरे-धीरे महावीर 
धीरे-धीरे बुद्ध!

Tuesday, 27 February 2024

प्यार

एक नज्म है मेरा प्यार
मैं लिखता- मिटाता हूं,
शब्द सजाता हूं 
अलंकार लगाता हूँ,
व्याकरण को जहां 
मैं भूल जाता हूँ,

एक धूप है मेरा प्यार 
जो सेकता बारंबार,
कभी तेज गर्मी में 
पसीने से तर-बतर,
रोशनी का व्यापार
मैं लगा हुआ कतार,
मैं धो लेता कुछ अंधकार,

एक स्याह है मेरा प्यार 
है जिसमें कलम निसार,
एक बार में रंग कई 
मिलाता और खींचता 
मैं कर रहा विस्तार,
नदी और पहाड़ 
मेरे पास और अपार,

एक इश्तेहार है यह प्यार 
यह छपा हुआ अख़बार,
इसमे रूप गुण और माया 
इसमे बजते हुए सितार,
यह लुभाता लोगों को 
उनको करता है बेकरार,
मैं सुनाता हूँ सबको 
मैं खुद होता बेज़ार 
मेरा ही प्रचार,

मेरा प्यार है अख़बार 
यह आता हर सुबह,
मेरी कलम से सजता 
हर पन्ने का आकार,
हर हर्फ के नीचे 
खींचता लकीर,
हर तरह के भाव 
हर शख्स की तसवीर,
मै ख़बर बनकर 
काग़ज़ से लिपट जाता हूँ!

मेरे राम मेरे प्यार 
मेरी काशी और हरिद्वार,
मेरे स्वर्ग का द्वार,
ये घाट का सत्कार 
मेरे मन मन्दिर मे 
स्थापित मेरा प्यार!

मुखौटा

मुखौटे के पीछे 
बातें करता कुछ और,
सोचता कुछ और 
कहता कुछ और,

अकेले मे छुपा 
चाहता कहना,
हास्यास्पद बात 
प्यार के सौगात,
रह गया है व्यवहार से
सीमित होकर कुछ शब्द,

मुखौटे के स्वरूप मे
ये फैला समाचार,
ये सब का मूल
कोई व्याभिचार,
मुखौटा कर रहा बेज़ार 
मुखौटा रावण का हथियार 
मुखौटा राम से विमुख 
राम के आसार!

पहरेदार

राम के पहरेदार ये विचार,
हर रंग में सराबोर,
नतमस्तक कभी-कभार 
कभी टूट कर व्यभिचार,
कभी-कभी यलगार
कभी उपसंहार,

प्रश्नो की शृंखला 
यह देशज अहंकार,
कभी कैसे, कभी कैसे 
ये होते कलाकार,
ये अतीत के कथाकार,
माया के दरबार 
ये राम के पहरेदार

जल बिन मीन 
कभी बनते पारावर,
कभी इश्तेहार 
कभी किसी का जयकार,
ये आप में जानकार
कभी विस्तृत अपरम्पार,
ये कैसे अल्प आकार,
राम के पहरेदार,

कभी दोस्त हैं सिरमौर 
कभी किसी के हकदार,
साज के बाज़ार 
ये रूप के शृंगार,
ये अगणित हाहाकार
ये कौशल के तरकश
ये रत्नों के भंडार

राम के ही अंग 
ये राम के विचार 
राम के पहरेदार!


समझ

कहते कहते चुप 
और कथा मे धुत,
ऊपर-नीचे, आगे-पीछे 
अशक्त और शांति,

फिर उठती एक लौ
फिर होता संबाद,
आदान-प्रदान, अनुग्रह- विग्रह,
काम-अकाम, लिप्त-अलिप्त,

बंधन की बेदी पर 
करते बँटवारा,
ये समझ के जंजाल!

Thursday, 22 February 2024

फ़िल्में

सब देखा हुआ 
सब जाना हुआ,
वही होता हुआ 
जो किया हुआ,
छोटी- सी बात 
और बड़ा-सा भाव 
सब सोचा हुआ 
सब खेला हुआ,

रंग बदला हुआ
रूप बदला हुआ,
भाषा और है कोई
वज़ह है नयी,
वही चेहरा हुआ 
वही ठहरा हुआ,
वही रिश्ता हुआ 
वही रास्ता हुआ,

यह फ़िल्में ज़माने 
के संग हैं घटित,
राम कृष्ण हुआ 
कृष्ण बुद्ध हुआ!

जवाब

चलचित्र के पटल पर 
बदल रहा हर क्षण,
अतीत का सन्दर्भ 
भविष्य का उपसर्ग,

नए कोण से देखता 
मन भेद मे भेद खोजता,
स्थिर चित्र की कर व्यंजना 
जवाब सबका दे रहा,

देने की आदत का 
जाल है सागर मे,
जवाब के कांटे पर 
मुँह फंसा रहा आकर मैं,

खेल से है बढ़ रहा 
यह बन रहा निरंतर 
जीवन का हिस्सा,
छोड़कर राम का किस्सा 
मन दौड़ता फिर दौड़ता!

Wednesday, 21 February 2024

रिश्ता

टूटने से जुड़ गया है 
ये रिश्ता कैसा 
बन गया है,
यादों की शृंखला है 
प्रश्नों के तार हैं,

नियत पहचान 
बना हुआ हैं,
चेहरे का भाव 
सजा हुआ है,
मन आवृत्ति से ही 
जुड़ गया है,

टूटने से ही यह 
गढ़ गया है,
बहुत ही यह
आगे बढ़ गया है,
राम से उठकर 
कहीं चढ़ गया है!

मुकेश

चुल्लू भर मांग कर 
पीने का हक है,
मुकेश को खुल कर 
जीने का हक है,

मुकेश महफ़िल में 
नाचना चाहता है,
ये नशे में कुछ 
बाचना चाहता है,
मुकेश को महफिल में 
होने का हक है,

मुकेश अभी रूम 
नहीं जाना चाहता,
मुकेश पिज्जा को 
साथ खाना चाहता,
मुकेश को समय 
रोकने का हक़ है,

मुकेश सड़क पर 
झूमना चाहता है,
वो गाड़ी से लड़कर 
गिरना चाहता है,
उसे नाली में भी 
लोटने का हक है,

मुकेश किशन बन 
बंशी बजाए,
मुकेश फ़िल्मों के 
गीत गुनगुनाये,
मुकेश को कलियां 
बहुत भा रही हैं,
उसे बागों की कलियाँ 
खोंटने का हक है!

उपहार

क्या दिया है इस बार 
क्या लाए हो उपहार,
जन्मदिन पर विशेष 
कैसे आए खाली हस्त,

कैसी है मुस्कान 
जो फीकी-सी है,
कैसी हो मेहमान 
निर्लिप्त से हो,

यह त्यौहार में शामिल
होने के बाद,
कैसा चाहते स्वाद 
जब आए नहीं व्यवहार
क्या है तुम्हारा उपहार?

केंद्र

वहाँ पर हूं खड़ा 
की जा सकूं मैं 
घर को अपने खोजकर,
खोया नहीं मैं 
मोड़ पर या 
रास्ते की चौक पर,

रास्तों की स्मृति 
समझ की लाठी,
पीपल की छांव 
मंदिर की शीतलता,
साथ हैं मेरे 
और रहेंगे मेरे 

राम नाम लेकर मैं 
चलते चला आऊंगा,
लंका के उपवन 
ब्रह्मास्त्र के बंधन,
लंकेश के दरबार 
और सिंधु लाँघ अपार,
पंचवटी के तीर्थ 
राम के पास!

Monday, 19 February 2024

चाशनी

एक परत भर लिपटी है 
चमकती थोड़ी पतली,
स्वाद और ललक से 
परिपूर्ण पारदर्शी,
रेशों की बुनी 
लकीर रेशमी,

आकर्षित करती जल-जल
कण-कण टपकती,
एक रस-मंजरी 
उड़लती, ढुलकती,
आज निखरती
रात की चाँदनी-चाशनी,

शिथिल ठंड मे
अलग कण-कण में,
यह सजावट रहित 
घनी और मुदित,
आज बुझी-सी पड़ी
रात की रोशनी-चाशनी!

Friday, 16 February 2024

थोड़ी दूर

थोड़ी दूर हैं सांसे 
थोड़ी दूर पर चेतना,
थोड़ा समय में मुक्ति 
थोड़े पास हैं राम,

थोड़ा बहुत प्रयास 
थोड़ा सा इन्तेज़ार,
थोड़ी सा ध्यान 
थोड़ा सा और काम!

राम ने कर दिया

राम ने कविता लिख दी
राम ने भूख मिटा दी,
राम ने मांगने से पहले 
मेरी राह बना दी,

राम ने चलाया सही राह पर 
राम ने घुमाया सही मोड़ पर,
राम ने मिलाया मुझे उससे 
राम ने हराया मेरे मोह पर,

राम ने उनके लिए 
आराम योग दी,
राम पर ही मैंने 
हर बात छोड़ दी!

Monday, 12 February 2024

घटना

किसको दिया समय 
किसकी बड़ी वजह,
किसका कितना एहसान 
किसका मुझपर अधिकार 
किसके कैसे शब्द 
किसका कैसा प्रारब्ध,
कौन शत्रु, कौन मित्र 
कौन लक्ष्मण कौन शत्रुघ्न,
किससे कितना मिलाप,
यह सारी घटना!

Surrender

तुम आओ मेरे पास 
त्याग कर सब भ्रम,
मोह के ज़ंजीर 
चाह के शमशीर,
इतिहास के सारे प्रश्न 
मेरे और तुम्हारे हस्र,
कयामत की बात 
दीवानेपन के ज़ज्बात,
तुम आओ मेरे पास 

आज खाली करके शब्द 
उसके होने के प्रारब्ध,
गुरु की भूलकर बोली 
छुट्टी लेकर होली,
छोड़कर मरहम 
खोलकर सब घाव 
करते नहीं कुछ मोल 
गिरा के अपने भाव 
तुम आओ मेरे पास!

Saturday, 10 February 2024

इतिहास

तुमसे मिलकर 
क्या कहूँगा,
किस चीज़ की 
याद होगी,
कौन-सी कविताएं 
तुम पढ़ोगी,
किस बात की 
मिन्नत मैं करूंगा,
कैसे तुम्हें मनाऊँगा,
कौन-सी दलील 
तुमको सुनाऊँगा,

तुम मिलोगी 
तो तुमको 
क्या कहकर 
बुलाऊँगा,
कौन-सी शरारत से 
दिल बहलाऊँगा,
कौन से इशारे 
मैं जानबूझकर 
अनदेखा कर दूंगा,
कौन-सी हरकतों से 
मैं बाज नहीं आऊंगा!

Friday, 9 February 2024

लक्ष्य

शूर्पणखा को राम चाहिए 
और लक्ष्मण भी,
भाई का सत्कार 
और प्यार भी,

सूर्पनखा की पीएचडी 
BJP होने ना दे पूरी,
सूर्पनखा की सहेली 
उसके प्यार से खेली,
शूर्पणखा को चाहिए 
काम भी और आराम भी!

दिन

आज उनका 
सब कुछ रहने दो,
आज उनकी 
बातें कहने दो,
आज मन के हैं 
भावुक से पल
आज उदासी बहने दो,

आज पुराने गीत सही 
आज को बिसरे प्रीत सही,
आज न बस मे हो ये मन 
आज विवेक को सहने दो,

आज हार की बात रहे 
आज भूल की याद रहे,
सुबह नींद मे सोने दो 
आज अतीत को रोने दो,

कल के आने इन्तेज़ार 
घूमने जाने का विचार,
ध्यान मे डूब के उस पार 
कल के जीवन को आने दो!

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...