हर रंग में सराबोर,
नतमस्तक कभी-कभार 
कभी टूट कर व्यभिचार,
कभी-कभी यलगार
कभी उपसंहार,
प्रश्नो की शृंखला 
यह देशज अहंकार,
कभी कैसे, कभी कैसे 
ये होते कलाकार,
ये अतीत के कथाकार,
माया के दरबार 
ये राम के पहरेदार
जल बिन मीन 
कभी बनते पारावर,
कभी इश्तेहार 
कभी किसी का जयकार,
ये आप में जानकार
कभी विस्तृत अपरम्पार,
ये कैसे अल्प आकार,
राम के पहरेदार,
कभी दोस्त हैं सिरमौर 
कभी किसी के हकदार,
साज के बाज़ार 
ये रूप के शृंगार,
ये अगणित हाहाकार
ये कौशल के तरकश
ये रत्नों के भंडार
राम के ही अंग 
ये राम के विचार 
राम के पहरेदार!
 
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