बदल रहा हर क्षण,
अतीत का सन्दर्भ 
भविष्य का उपसर्ग,
नए कोण से देखता 
मन भेद मे भेद खोजता,
स्थिर चित्र की कर व्यंजना 
जवाब सबका दे रहा,
देने की आदत का 
जाल है सागर मे,
जवाब के कांटे पर 
मुँह फंसा रहा आकर मैं,
खेल से है बढ़ रहा 
यह बन रहा निरंतर 
जीवन का हिस्सा,
छोड़कर राम का किस्सा 
मन दौड़ता फिर दौड़ता!
 
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