Monday, 19 February 2024

चाशनी

एक परत भर लिपटी है 
चमकती थोड़ी पतली,
स्वाद और ललक से 
परिपूर्ण पारदर्शी,
रेशों की बुनी 
लकीर रेशमी,

आकर्षित करती जल-जल
कण-कण टपकती,
एक रस-मंजरी 
उड़लती, ढुलकती,
आज निखरती
रात की चाँदनी-चाशनी,

शिथिल ठंड मे
अलग कण-कण में,
यह सजावट रहित 
घनी और मुदित,
आज बुझी-सी पड़ी
रात की रोशनी-चाशनी!

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...