Tuesday, 27 February 2024

समझ

कहते कहते चुप 
और कथा मे धुत,
ऊपर-नीचे, आगे-पीछे 
अशक्त और शांति,

फिर उठती एक लौ
फिर होता संबाद,
आदान-प्रदान, अनुग्रह- विग्रह,
काम-अकाम, लिप्त-अलिप्त,

बंधन की बेदी पर 
करते बँटवारा,
ये समझ के जंजाल!

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