कुछ ध्यान नहीं रहता,
इंसान मोहब्बत मे
इंसान नहीं रहता,
उनका नाम जुबां पर है
ऐसी इश्क की फितरत है,
कोई जान लुटाता है
यूहीं बदनाम नहीं रहता,
यूँ तो इबादत मे
हम शामों-शहर बैठे,
उनपर नज़र करके
मेरा ईमान नहीं रहता,
गर तुम जो ये चाहोगे
तो मर के दिखा देंगे,
जब बात तुम्हारी हो
तो मैं नाकाम नहीं रहता,
कहने को तो हम
दिल के हाल खुला कह दे,
पर सामने आने पर
यह आसान नहीं रहता,
हम प्यार जताने को
कोई गीत नया लिख दे,
पर आँखें ही न बोल सकीं
तो फिर अभिमान नहीं रहता!
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