कुछ कहने वाली
बातें चार जनों के बीच,
ठहर गई
कुछ कहने वाली
जुबां हमारे मन के भीच,
राह मे राम के
फूल बिछाये,
अपने नीर को
और बहाए,
हमने घूमे
चारो धाम,
पर किसको मिलते पूरे राम?
कुछ सोचा
तो हुआ नहीं,
कुछ पाया
पर जँचा नहीं,
समझ समेट के
मुट्ठी भर का,
साधने चले
बड़ा मैदान,
किसके बस के पूरे राम?
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