Friday 7 July 2023

गुनाहगार

ज़माने मे कितने ग़म हैं 
हम पर भी हुस्न के 
गहरे सितम हैं,
मशगूल हैं लोग 
हमारी कदर खोने पर,
नाम लेते हमारा 
वो ही क्या कम है?

उनसे मोहब्बत 
करते बहुतेरे,
उनकी इनायत को 
बहुतों को फेरे,
उनकी मुस्कान को 
खेलते हैं खेल,
उनके नजारे को 
ताकतें मुंडेर,
उनकी महफिल मे 
हम ही हैं गुनाहगार,
उनकी उल्फत को झेले
हम मे ही दम है?

पूछते हैं बहुत 
खैरियत की ख़बर,
चुराते बहुत 
उनसे राहों मे नजर,
नाम लेते नहीं 
बिन नज़र को चुराए,
इश्क करते हुए 
कर रहा है असर,
अब फिसल भी ना जाए 
तो कैसे सनम हैं?

हर आहट पर 
आने की उनकी तमन्ना,
हर बात पे उनके 
विचारों की दुनिया,
हर अक्षर पर उनके 
फंसाने चाहूँ लिखना,
यूहीं हर बखत
तराने गुनगुनाना,
अब खुश भी ना हों 
ये कैसी कसम है?

तुनक से तुनक कर
बहस हो रही है,
आने की जाने की 
वजह बढ़ रही है,
खुशामद करे तो 
बहुत-सी तारीफें,
उनके रगों मे
लहू उबाल की है,
मज़ा आ रहा है 
ये नशीला वहम है!


No comments:

Post a Comment

दो राहें

तुम चले सड़क पर सीधा  हम धरे एक पगडंडी, तुम्हारे कदम सजे से  हम बढ़े कूदते ठौर, तुमने थामी हवा की टहनियां  हम बैठे डिब्बे में संग, तुम संगीत...