ओश की बूँदों को
घास के तिनकों वाले 
जुल्फों पर उड़ेलती
और टपकाती,
ठंडी हवा के रेशों की 
उँगलियों से संवारती,
खुद को हल्की गर्म 
थोड़ी नर्म सुनहरे 
उजाले-सी फैलाती,
सरोवर के आईने मे
सूरत निहारती,
और हया मे लाल 
हो बिखर जाती,
क्षितिज के गालों पर 
रंग जाती,
फ़ूलों की पंखुड़ियों
की चादर मे 
कुछ पल सिमट जाती,
धीरे-धीरे ओर को 
पलट कर ताकती,
सिलवटें रेशमी 
बिछावन की खोलती,
आँखें सीपियों मे
मोतियों सरीखी
शरारत मे चमकती,
कुंजन करती 
कोयल की-सी
आह्लाद को 
करती कल्लोल,
कलरव से इठलाती,
नदियों पर 
बन मुस्कान तैरती,
कल-कल कलाईयाँ खाती,
सूइश संग गुलाटीयाँ लगाती,
चिड़ियों के संग उड़ जाती 
अम्बर तक छा जाती!
 
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