उनके सामने हम,
अब है अगन
हर्षित है मन
हर टूटते बंधन,
घर के घेवर
तीखे तेवर,
रुकी हुई मुस्कान,
आज सुनने
और सुनाने
को बहुत से बैन,
आज चमकीले से जुगनू
फिर वही दो नैन,
आज सूरज डूबा मगर
फिर भी हुयी ना रैन,
आज छाया है उजाला
आज सावन का नज़ारा,
आज बैरागी हवा
आज राँची का किनारा,
सब हुए हैं मौन,
संग आवेग और उल्लास
आज गौरी से मिले हैं
महादेव कर उपवास!
No comments:
Post a Comment