वो भी हो गया
जो लगती थी
बीते कल की बात?
आज नए समाज
के साजो-सामान,
उठाकर कैमरा
और हथियार,
ले चले आबरू को
बीच बाज़ार,
भीड़ के चेहरे
बहुत हज़ार,
पर बदले की आग
चढ़ परवान,
आज करते
वस्त्र-हीन
खुला व्यवहार
भारत माँ के
चीर फाड़,
संदेश देखता
संपूर्ण संसार,
द्रौपदी का चीर
पूरे उतार
करता दुर्योधन
यह ललकार,
जीतने की
वस्तु हो या नहीं
पर न्याय का
सबको है अधिकार,
अपनी लूटी हुई
इज्ज़त का
चीर खोलकर
करता निस्तार,
मोहन के चरखे
मे आएगी
अब कैसे
सूतों की धार,
जो सत्याग्रह
राह से बुनकर,
बढ़ा सके नारी सम्मान,
बचा सके इज़्ज़त और मान
नारी ही को
बनना होगा,
आज अपना ही पालन-हार !
No comments:
Post a Comment