उम्मीद की एक किरण तो हो,
हम सितारें तोड़ लाए आसमान से
पर उसकी कोई वजह तो हो,
सरफरोशी के लिए
हम तो हैं हाज़िर मगर,
इस ज़माने मे आजकल
इश्क करना गुनाह तो हो,
चुप रहे हम मुस्कुरा कर
उनके शान और शोख मे,
पर हमारी ख़ामोशी की
उनको भी परवाह तो हो,
हैं नहीं मेरे शहर मे
आज थोड़े दूर हैं,
पार कर दे बंदिशों को
पर कोई शरहद तो हो,
हम ख़ुदा से भी मांग ले
उनको अपने वास्ते,
उनको मेरा छोड़ पहले
और कोई मज़हब तो हो!
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