आईने मे देखो,
ऐसे ही नाहक
मुस्कराते हुए,
जब किसी बात
फ़िक्र नहीं करती,
तब देखो खुद को
इतराते हुए,
उँगलियाँ उठाकर
लड़ते हुए,
अपनी बात को
समझाते हुए,
उस आवेग मे
मन डोलाते हुए,
खुद अपनी
किरण मे
नहाते हुए,
मेरी कविताओं को
दिल से सुनते हुए,
लाली को गालों पर
चढ़ते हुए,
डर के
कोई अपने को
ढूंढ़ते हुए,
मेरी साथ
राहों मे चलते हुए,
कभी रुक जाओ
तुम मुझसे चिढ़ते हुए,
अपनी नाक का
रंग बदलते हुए,
कभी बाहों मे मेरे
छोड़ दो खुद को यूहीं
जब उफन जाती हो
मुझसे जलते हुए,
आंखों को छोटा
करके निहारो,
तुम मेरी जब आदतें
बदलते हुए,
आओ मुझको
छूकर जरा देख लो,
मुझको अपने
जैसा सवारते हुए!
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