Thursday, 20 July 2023

घर चले गए

छाती पर हमारे मूंग वो 
दर कर चले गए,
रुसवा न हुए, कुछ कहा नहीं 
वो घर पर चले गए,

ना जिक्र किया,
ना क्लास आए,
ऐप्लिकेशन भी दिए बिना 
वो सर को चले गए,

ना मिट्टी उठी,
ना अर्थी सजी,
बिन चिता लिटाये यारों हम 
मर कर जले गए,

घर का पता 
मालूम नहीं,
ना जाने का
मकसद ही पता
वो दिल को हमारे छोड़ 
किस शहर को चले गए?

हम शाम को 
क्लास खत्म करके,
जब दरवाजे उनके पहुचे,
पता चला वो 
अकेले ही 
दोपहर को चले गए,

अब कैसे करें इन्तेज़ार
कैसे भरपाई करें वक्त, 
हमें अकेला छोड़ वो 
हफ्ते भर को चले गए,

कई हो गए बीमार
कई उठा लड़े तलवार,
कोई नोच रहा कपार
जिसको उनसे था प्यार,
आशिकों की भीड़ मे 
मचा के ग़दर वो चले गए,

तमन्ना थी, आरजू थी, और 
ख्वाहिशें थी दीदार की,
जाम का दरिया था और 
अंजुमन थी सभी यार की, 
एक झलक की टकटकी 
दरवाज़े पर टिकी थी,
गुस्ताख़ी आज करने की 
बाज़ी कोई लगी थी 
महफ़िल को बनाकर मेरी 
शब-ए-ग़म वो चले गए!

उनसे हाथ मिलाया 
खुलकर नाचे उनके साथ,
किसी से खिल्लीयाँ की खूब 
किसी से रात भर की बात,
हमारे रुख किया तो 
याद आया हो रही थी देर,
देख कर मेरी फकत
मजहर वो चले गए!

अब मुस्कान कहाँ उनकी 
कहां से लाए चंचलता,
वो सजा के ख्वाबों को मेरे 
एक नजर में चले गए!😔

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