Friday, 30 December 2022

मुझमे

मुझमे सीता, मुझमे राम
मुझको दुनिया मे आराम,
मै ही लक्ष्मण, मैं हनुमान
शक्ति–तृष्णा मेरे काम,
मै रघुनंदन, मै घनश्याम
मुझमे बसते सारे धाम,
मै ही कविता, मै सतनाम
मेरे आडंबर, हैं सुखधाम,

मै संतों की वाणी, नाम
मुझको खोजे चारो याम,
मेरी जटा समाई गंगा
मुझमे कैलाशी का ध्यान,
मेरी शक्ति मैहर वाली
मुझमें दुर्गाकुंड का जाम
मै अल्लाह का निर्गुण रूप
मै ही ईसा का सत्काम,

मुझमे रहते हैं श्री राम
मुझमें बसते हैं श्री राम!

Wednesday, 28 December 2022

फिलहाल

फिलहाल के लिए
हट जाओ,
वन एक बार 
तुम फिर जाओ,
है नहीं समाज की
समझ अभी,
धन और लाज
हैं बसन अभी,
महल प्रजा को प्यारे हैं
मंथरा के भरत दुलारे हैं,
मां कैकेई घरों मे बैठी हैं
अहिल्या अभी बहु ही है,
रज़िया का शासन
है रुका हुआ,
शिव धनुष अभी है
टूटा हुआ,
लीला धर आने बाकी हैं
गीता का ज्ञान 
भी बाकी है,
गांडीव अभी तक उठा नहीं
दुः शासन का वक्ष फटा नहीं
मलिन और जग होना
जाति का बंधन कटा नहीं,
प्रेम अभी तक खिला नहीं,
राजा का बेटा राजा
चाय बेचने वाला बना नहीं,
भारत को जोड़ने वाला अबतक
सड़कों पर अबतक चला नहीं,
राजन अभी आए हैं भारत
नोटबंदी अब तक पचा नहीं,
वाल्मीकि आश्रम मे रह लो
फिलहाल नाम लेकर जी लो,
यह व्यथा है सीते रघुकुल की
कुछ काल राम से चल जाओ!😔🙏




Sunday, 18 December 2022

ठंड लग गई

मुझे ठंड लग गई
मै ठंड को लगा,
मै गले लगा 
खोल दोनों हाथ
ठंड ने छुए
मेरे दोनों गाल,

मै और मुस्कुरान
मैं राम नाम गाया,
ठंड मुस्कुराई
मै और मुस्कुराया,
मुझे ठंड लग गई
मुझे ठंड भा गई!

गंगा मित्र

ये पीपल के पेड़
उग जाते हैं छत पर,
मुहानों पर और
सड़क के किनारों पर,

इन्हे बीज की, खाद की
मुट्ठी भर जमीन की,
सिंचाई की, गुढ़ाई की
थाल की और कांट छांट की
क्या पड़ी जरूरत

ये उड़ के फैल जाते
ये धूल में खिल जाते
ये पी लेते एक बार
छू के गंगा के विस्तार,
ये तोड़ घर मकान
झुकाते शीश मां के द्वार
कर बद्ध खड़े वीर
यहीं हैं सच्चे गंगा मित्र!


हाथ

कोई हाथ लेकर आया
कोई साथ लेकर आया
किसी की गाड़ी चल पड़ी
कोई पैदल चल पड़ा,

किसी दही लगा दी
किसी ने हल्दी चूम ली,
किसी पानी चलाया
कोई पूडियां बांट आया,

कोई रुका रहा रात भर
कोई एक कंबल मे सोया
कोई सैदपुर से चला
कोई घर छोड़कर आया,

कोई फोन से मिला
कोई बात को बनाया
कोई हाथ जोड़ता 
कोई सामान जुटाया,

कोई वर पक्ष था
कोई वधु पक्ष था
कोई राम पक्ष था
कोई सीता पक्ष था,

कोई नाचता था रात
कोई डीजे से भिड़ा
कोई दारु पी लिया
कोई हंस के खुश रहा

किसी का केसर–दूध छूटा
कोई चाट भूल गया
कोई लॉन पर रहा
कोई घर बंद किया,

कोई नेग ले गया
कोई द्वार छेकता,
कौन जूता खोज पाया
कौन सरहज से गाली खाया,

किसी का सिल गया
कोई रेडीमेड मे सजा
कोई पगड़ी बांधकर
भाभी से आ मिला

शादी मे सब जुटे
सबका हाथ रंग गया!

Tuesday, 13 December 2022

ठंड और डर

ठंड और डर की 
फितरत एक जैसी
डर लाती नीचे 
आत्म विश्वास को
ठंड पकड़ कर खींचे
हाथ पांव को,

ठंड कपकपाती
हांड–मांस देह,
डर सताती मन को
भुला देती नेह,

ठंड देह की 
और डर
मन का भंग है,
ठंड की वीर्य से
और डर का वीर से
जंग है!

Sunday, 27 November 2022

राम करेंगे

राम करेंगे
हम तो
राम का 
नाम करेंगे,
राम हमारे 
काम करेंगे,
आज करेंगे
और करेंगे,
राम ही सुबह
और शाम करेंगे,
राम हमारा
काम करेंगे,
जो हम राम का
ध्यान करेंगे,
राम हमारा 
ध्यान करेंगे !🙏

मेरी नज़र

एक शहर हो
और मेरी नज़र हो,
मैं आऊं पैदल
और जाऊं इधर–उधर,

रूमी दरवाजा हो
भूलभुलईया हो,
मानस मंदिर
कबीर मठ हो,
मेरी पेशानियों पर
उसका असर हो,

लोग वहां के
तहजीब वहां की
वहीं का गूगल
तस्वीर वहां की
वही का बाराती हो
वहीं की लगन हो,

एक शहर हो,
मेरी नज़र हो!

Thursday, 24 November 2022

ए गोलू

का कहला तू ए गोलू
का भैला तू ए गोलू,
केसे बतिययिला ए गोलू
का मुस्किययीला ए गोलू

तू बहुत ऊ हया ए गोलू
बस दांत निपोरै जिन गोलू,
आवा अईबा त गोलू
होशियार जिन बना ए गोलू,
हम कहत रहली ए गोलू
तुम बड़ा न भइला ए गोलू!

खाना खाला ए गोलू
पानी पीला ए गोलू,
मम्मी तोहार पनीर बनहियां
धनिया लावा ए गोलू,
पान बनावे खातिर कत्था
खूब लगइला ए गोलू,
आजी हमरे संगे सुतिहन
खाट लगैता ए गोलू,
आजा बचवा अंदर बैठा
धूप लगत बा ए गोलू,
अंगना मे कूलर लगवईता
गोड़ चलऊता ए गोलू,
मोजा तोहार महकत हौवे
पैर धोवइता ए गोलू,
दू ले नान खटाई खइता
पानी पीता ए गोलू,

मेहरारू से झगड़ा कयिला
काशी जैबा का गोलू,
नातिन हमार बिहाने ऐहन
स्टेशन चल जा ए गोलू,
आज त बहुत बिहाने उठला
PT करबा का गोलू?
काहें मुंह फुलैले बाड़ा
कुछ बतियावा ए गोलू
देखा आवा महेंदर चच्चा
कुछ समझौता ए छोटू!😁

धर्म–कर्म

जो नहीं किया
तो कर लोगे,
जो बहुत किया
वो तज दोगे,
जो सोच लिया 
तो नहीं किया,
जो छूट गया 
वो धर लोगे,
जो फीका है 
वह चख लोगे,
जो पका रहे
वह दे दोगे,

जो बन पाया है बिगड़ेगा
जो बिगड़ा है वह सुधरेगा,
जो है वह हाथ से छूटेगा
जो छूटा है वह बांधेगा,
तुमने छोड़ा या छूट गया
ये जाने वो जो डूबेगा,
राम नाम की नैया है
ये राम–नाम से तैरेगा!

श्रृजन

मेरे विचारो की
कैसी साक्षात्कार हो,
मेरे प्रणय की
तुम मूर्तिवार हो,

तुम कांता हो
केशव हो
और रघुराम हो,
तुम शब्द, 
संधि हो
पूर्ण विराम हो,

शिष्या हो
राधिका हो
मिथिला की 
अलंकार हो,
ज्ञान हो भी
मोक्ष हो,
कामना की कटार हो,

गुरु हो 
गोविंद हो
संत और व्यभिचार हो,
तुम प्रेरणा हो
धारणा हो
धर्म–कर्म साथ हो,

तुम कवियों की 
कल्पना हो,
तुम द्रौपदी की 
चित्कार हो,
तुम श्रृजन की
श्रृंखला हो,
श्रृजन का आधार हो!


झूठा–गुस्सा

तुम्हारे नाक पर बैठा
तुम्हारा झूठा गुस्सा,
गुस्से मे बैठा हुआ
एक झूठा किस्सा,

न जाने कैसा है
ये फोन वाला रोस,
न जाने देता मुझे क्यों
ये किस बात का दोष,

ये बात करता 
मुझपर एहसान करता है
ये बिहार वाला प्यार
मुझे बदनाम करता है,

ये उलाहना देता
मुझे खुदगर्ज कहता है,
पढ़ने की मेरी आदत
मुझपर कर्ज रखता है,
ये बात मुझसे करके 
मुझको छोड़ देता है,
ये और मुझे लुभाता
तुम्हारा झूठा गुस्सा!😎

Wednesday, 23 November 2022

रहने दो

जो जैसा है
वो रहने दो,
पढ़ाओ मत
लिखाओ मत,
सिखाओ मत,
मत लगाओ 
HR वाला दिमाग,
राम का जमा किया है
उस पत्थर को 
हिलाओ मत,

सुनो, हंसो और खिलखिलाओ
कुछ उनसे ही हंसना सीख जाओ,
आज गांव की उस जमीन से
हरियाली जलाओ मत,
कोई चिड़ियां
बैठी हुई है डाल पर
आज उसको कबूतरों–सा
उड़ाओ मत,

वह मोम की सी थी सजाई 
और करती थी नुमाइश
पढ़ती थी भले ही वो
किताब से उड़ती थी ख्वाइश
आज वो पैबंद है कुछ
झोपड़ियों की रोशनी 
कर रही रहकर प्रकाशित
आज उसको शहर
कोई राह मत दिखाओ,
राम के वनवास को 
दिवाली से मत सजाओ,

रो लेगी वो 
कुछ और करने को,
कभी और कुछ करने को
आज उसके आंसुओं
की कीमत मत लगाओ,
सुना रही है लोरियां
आज ‘अनय’ को मत जगाओ
आज पंचवटी को को मत उजाड़ो!

माया

अगर होगी तो
हो जाएगी
होने वाली माया,
मै बचता फिरता
और पकड़ के निकलता
आज मैं गड्ढे से
गड्ढे वाली माया से,
माया को मैं समझता
माया की ही छाया से,
राम को मै आंकता हूं
राम की ही माया से!

उधेड़–बुन

उधेड़ता हूं फिर बुनता
मै राम को टटोलता
राम को मैं जानता
पर राम को मैं तौलता,

राम का दिया हुआ 
क्यूं राम से अलग कहा
मै क्या कहा तो क्या हुआ
मै राम से ही प्रश्न किया,

राम की समझ मे मै
राम राम कहता
और राम की मर्जी से मै
उधेड़ता और बुनता!

Saturday, 19 November 2022

कब

कब वो राह बनाते हैं
कब वो राह बन जाते हैं,
कब परीक्षा लेते हैं
कब वो नया सीखाते हैं,
कब उपदेश की बारी है
कब सार समझाते हैं,

कब समाधान की परतों मे
नई समस्या लाते हैं,
कब समस्या की नई सकल में
वो उलझन और बढ़ाते हैं,

राम ही जाने 
कब और कैसे,
लीला राम रचाते हैं!

पुराना वाली मुहब्बत

वापस आ गई
आज फिर मेरी
पुरानी वाली बात,
वो इंतज़ार वाली रात
वो अधूरी मुलाकात
वो आंखों की बरसात
वही पुरानी मुहब्बत।

वह सरकार की इनायत
वो शोरगुल, बगावत
वो रूठना–मनाना
वो बातों मे उलझाना
वो किस्से कहानियां
वो छोटी हैरानियां
वापस मेरी आ गई
बेकरारियां भी साथ!


Thursday, 17 November 2022

बात

आज बस बात हुई 
यहां की 
वहां की 
इधर की 
उधर की 
ऊपर की 
नीचे की
दाएं की 
बाएं की 
आगे की 
पीछे की 
इसकी 
उसकी

आज बस बात हुई 
भूली हुई 
बिसरी हुई
देखी हुई 
सुनी हुई 
रुकी हुई 
बनी हुई 
बिगड़ी हुई 
चली हुई 

आज फिर से बात हुई 
चाहत की 
मिलन की 
बिछड़ने की 
सवरने की 
मिलने की
बिछड़ने की
आने की 
जाने की 
पकड़ने की 
छोड़ने की 
पाने की 
खोने की
होने की।

आज फिर मुलाकात हुई
पहली बार 
आखरी बार 
ईतनी बार 
उतनी बार
दिल ने चाहा जितनी बार
आज किसी ने रोका नहीं 
न परीक्षा ने 
न किताबों ने 
न स्कूल ने
न मैडम ने
न सर न 
न घंटे की क्लास ने
न prelims ने
न रिजल्ट ने

आज फिर से मिलने का वादा हुआ 
बनारस मे 
इलाहाबाद मे
संगम मे
सितारों मे 
गलियों मे 
बाजारों मे 
चौराहे पर
किनारों पर
यूपी कॉलेज मे 
जेएचवी मे
अस्सी घाट पर 
गंगा के नाव पर
संकटमोचन मे 
काशी विश्वनाथ मे
शादियों मे 
पंचकोश मे
भीड़ मे
बरातों मे
आज कुछ याद नहीं रहा 
समय का 
धूप का 
चादर का 
चटाई का 
टेबल का 
पानी का 
कलम का

आज रुकी नहीं 
कलम मेरी 
कदम मेरे 
फोन की मेरी बैटरी 
या फिर मेरी कविताओं के बंद 
मेरी गजलों के शेर 
मेरे अनुभव के दास्तान 
आज हल्का हो गया 
मेरे दर्द का गुबार
आज फिर से खुल गया 
मेरा पुराना प्यार 
आज बस बात हुई,
पढ़ाई नहीं!


Wednesday, 16 November 2022

उधार

उधार की खुशी मेरी
उधार का ही ज्ञान,
उधार पर टिका हुआ
मेरा आत्मसम्मान,

उधार की बात पर
मै बात बनाता,
उधार को खिताब कर
मै राह सजाता,

उधार मांगने को मैं
कहां तक चला जाता,
उधार का विनाश मैं हूं
सर पे उठाता,

राम का उधार क्या 
मैं हूं चुकाता,
या और उधार
मै हूं राम भुलाता!


Sunday, 13 November 2022

मित्र

इस गली मे मित्र मेरा
एक रहता था,
वो भी तब का
जब मित्र का मतलब मै
क्या ही समझता था,

वो यहीं पार्क में
हर रोज मिलता था,
बेचकर के चूड़ियां
वो दाव खेलता था,
चब्भे थे पड़ते उसके
पिल्लो मे बहुत सटीक,
बाल थे बड़े–बड़े
निपोर थी निर्भीक,

वह मुझे हर शाम को
गले से मिलता था,
मेरे लिए वो टीम मे
जगह रखता था,
मोड़ पर चौराहे के
मां के साथ रहता था,
हर सुबह, स्कूल मैं
वो बाजार जाता था,

मां उस गली
जाने से मुझको
रोक लेती थी,
उस गली शैतान है
यह बिल देती थी,
अब बड़ा होकर जो मै
परदेस से आया हूं,
चौराहे पर घूमने
एक बार आया हूं,

उस गली के मोड़ पर 
क्या वो अब भी रहता है?
शैतान गरीबी का 
क्या वहां पर अब भी सोता है?


3 दिन

3 दिन की है तपस्या
3 दिन की वेदना,
3 दिन का मोह है
3 दिन की चेतना,

3 दिन तड़प मेरी
3 दिन पुकार है,
3 दिन का द्वंद है
3 दिन उछाल है,

3 दिन की है पिपासा
3 दिन यलगार है,
3 दिन राम भूल
3 दिन विषाक्त हैं,

3 दिन की है परीक्षा
3 दिन अकाज है,
3 दिन ही संकुचित हूं
फिर मेरे श्री राम हैं!

मरहम

परत–दर–परत
हर विचार खोलकर,
राम नाम बसा लिया
कपार खोलकर,

हर गली घूम–घूम
हर काल खोलकर,
देख लिया जन्म भर का
भार खोलकर,

इधर–उधर हुआ बहुत
आंख खोलकर,
पलट–पलट, उठा–पटक
हर भाव तोलकर,

सुलझ रही है भावना
आधार धरकर,
पी रहा हूं आजकल
जो राम घोलकर,

मै मौन हूं
अब सभी से
प्रणाम बोलकर,
सो रहा हूं
उठ रहा,
सिया राम बोलकर!

Saturday, 12 November 2022

द्रौपदी के वस्त्र

द्रौपदी क्या थी शरीर
या दुःशासन की कल्पना,
किस परत को ढूंढता था
आज वह निर्वस्त्र कर?

कौन–सी साड़ी छुपा कर
रख सकी है वासना,
मन की वृत्ति मे छुपी है
जब काम की भर्त्सना,

चुप नहीं हुई जो नारी
तंज को सुन पाप के,
पाप चाहता है उसको
मलिन पद दलित करे,

पर जो विलीन हो गई हो
नाम मे श्री कृष्ण के,
उसको उकेर पाए
काम की कोई कल्पना,

आंख मूंद लेंगे वो
या मिट्टी होगी तृष्णा,
वस्त्र या बेवस्त्र हो
जोगिन भजे जो ‘कृष्णा’!

राग

राग से अलग हुआ है
राग अब बदल गया है,
राम नहीं बुझाता
राम नहीं भा रहा,

रास मे घुला–मिला तो
रास मन विलीन है,
राम धर किनार कर
राग नया लीन है,

राग रास छेड़ता है
अंग–अंग भरा मिटा,
तरंग को लगा–बुझा
राग अब डरा रहा,
रक्त को नचा–नचा
कल्पना मे अप्सरा
घड़ी –घड़ी सजा–सजा,

राम को पकड़–पकड़
तोड़ता हूं मैं जकड़,
दूर होके देखता हूं
राग जब रहा बिगड़!

Friday, 11 November 2022

स्थिर

तुम नहीं स्थिर 
तो जग नहीं स्थिर,
तुम हुए जो चुप
तो सब शोर लगता है,
तुम हुए बीमार तो
सब जग ही सोता है,
तुम हुए गुमसुम
तो अखबार मे क्या है?
तुमको लगी टट्टी तो
सड़क ही लंबा है,
तुमको हुई आशक्ति
तो हनुमान बेमतलब,
तुमको हुआ जो भ्रम
तो फिर राम माया है,
तुमने पाला द्वंद तो
रावण ले गया मुझको,
तुमको आया द्वेष
शकुनी भा गया सबको,
हो तुम्हे दुविधा तो
गांधी भी हुए असहाय,
तुमको हुआ अभिमान
तो कैलाश भी है क्षद्म

तुमने बोला राम
तो हुआ आराम,
मन रे तो हुआ आराम!

कुछ नहीं

कुछ नहीं हैं
पर्दे के पीछे,
पर्दा काल का
है प्रतिबिंब,

पर्दा वही 
आकर्षित करता,
जिसमे मन और
लगा हो जिस्म,

पर्दा नहीं सभी को खींचे
नहीं सभी को एक–सा,
पर्दे के रंग हैं बहुत
बहुरंगी जगत बिंब–सा,

तुमको कौन–सी 
परत खोलनी,
कौन–सी तुम्हे रिझाएगी,
वही तुम्हारा मुक्ति–बंध है,
संभू नहीं बनाएगी,

राम नाम है सबका मूल
हर भाव की पराकाष्ठा है,
राम नाम का सुख अपार है
राम पर्दों का श्रृष्टा है!

ठौर

आज नहीं तुम
राम ठौर पर,
आज भ्रमर संसार के,
आज हो दृष्टा
जगत मूल के,
शावक हो अभिमान के,

आज जगत से
राम को देखो,
हंस लो उसकी
चर्चा पर,
आज भुलाकर
राम की रचना
बैठो ऊंची 
मज्जा पर,


पर सभी ठौर
जब देख लिया 
तब राम ठौर ही भाएगा,
जब राम कृपा की
वर्षा होगी,
राम बुलावा आएगा!

Wednesday, 9 November 2022

सीमा

सीमा के 
इस पार कभी तुम,
मै उस पार
आ जाता हूं,
तुम होती हो शांत कभी
मै चुप–चाप हो जाता हूं,

तुम छेड़ती राग कभी
कभी मैं मल्हार सुनाता हूं,
मै टेरता रहता रात भर
अंधकार की चादर मे,
तुम भोर तक जगती हो
तकिया लेकर भादव मे,

तुम निहारती चांद कभी
मै चांदनी कलम से
लिखता हूं,
तुम सवारती बाल कभी
मै पानी पीने जाता हूं,
तुम टटोलती मुझे कभी
मै तुमपर तर्क लगाता हूं,
तुम कंखियों से देखों
मै छठ पूजा मे आता हूं,
तुम भी उससे बात करो
मै जिससे बतियाता हूं,

तुम मेरी कॉपियां सूंघ रही
मै तुम्हारी कलम चुराता हूं,
तुम इंटरवल मे जाती हो
मै तुम्हारी कुर्सी पर चढ़ जाता हूं,
तुम आती हो,मै आता हूं,
सब आते हैं, सब जाते हैं,
सब मालूम है, सब जानते हैं,
तुम महटीयाती, सब हंसते हैं
मै चलता हूं, शर्माता हूं,

तुम सीमा के उस पार प्रिये
और मै इस पार,
धीरज धारण करती हो 
मै अपनी प्रीत से लड़ता हूं!


Tuesday, 8 November 2022

समय

आज समय को
बीत जाने दो,
सामने बैठी रहो
आने जाने वालों को
जाने आने दो,
कुछ बातें करती रहो
खिलखिलाती रहो,

आज सुबह टहलने को
निकले तो थे साथ मे,
कुछ योग करने को
कहते तो थे,
कुछ समय टहलने मे
और जाने दो,

दौड़ने वालों को 
परेशान होने दो,
हाथ मेरा तुम पकड़
फैल कर चलो,
बेला के बाग से
होकर संग चलो,
कुछ फूलों को
केशों को अपने
खींच लेने दो,

चलो घास पर 
ओस की बूंदें 
समेटें साथ,
पांव को संग मे
मेरे नहाने दो,
आज थकने ही
सांसों को मुस्कुराने दो,

सूर्य–नमस्कार 
थोड़ी देर मे करेंगे,
सूर्य को माथे पे
थोड़ा और चढ़ने दो,
भस्त्रिका करने तो
यहां पर रोज आते हैं,
अनुलोम–विलोम से
सांसों को पिरोते हैं,
आज तुमको देखकर ही
ध्यान करने दो,
आज कुछ आध्यात्म की
बदली बरसने दो,
पार्क मे घंटे ही भर का
टाइम टेबल है,
पर आज टाइम टेबल को
टेबल पे रहने दो,

दिन उभरने दो
पसीने निकलने दो,
सब जा चुके हों जब
तो आलस को
मचलने दो,
बिखरने दो खुद को
समेटेंगे हम ही मिलकर,
आज समय के बांध की
सीमा तोड़ बहने दो!



मनोकामना

मन घोंसलों मे बैठकर
तितलियों के संग
उड़ना चाहता है,
मन केचुओं 
के संग रेंगकर,
चिंडियों से 
मिलना चाहता है,
मन रंगों को
हाथ मे लगाकर,
पंख फड़फड़ाना चाहता है!

बहाने

बहानों को उनके
तराना समझ लो,
उनकी नुमाइश
अदाएं समझ लो,
बातों को उनकी
हिदायत समझ लो,
उलझन को समझो
पैमाने समझ के,
उल्फत को उनकी
रिवायत समझ लो!

Sunday, 6 November 2022

सहमत

मुझसे कैसे हो नहीं
तुम सहमत,
मै कह रहा हूं
आज बहुत
पढ़ने के बाद,

आज मुंह खोलकर
कर दिया उपकार,
आज फिर तुमपर 
है मेरा पूर्ण सा सत्कार,

पर क्यों तुम 
खोलते हो
नहीं अब
ज्ञान के चक्षु,
हे खुदा इसपर करो
कुछ और भी रहमत!

बड़े

बड़े बन जाते हैं
वो जो बोल जाते हैं,
झूठ किसी के सामने
और भूल जाते हैं,

बाद मे दोहरा के उसको
और छुपाते हैं,
किसी को जानते रहने पर
उससे मुंह चुराते हैं,
बड़े क्यूं दूर जाते हैं,
बड़े क्यूं दूर जाते हैं!

छल

छल करता
मन चंचल,
या अनहोनी का 
है यह भय प्रबल,
मन होता खिन्न–विकल,
कुछ और आगे चल
करता नया प्रयत्न,

नया व्यक्ति सरल
ढूंढता,
छोड़ता जो जटिल
भरा कोई गरल,
इधर और उधर
कचोटता,
बनाता बातों का जंगल,
एक अनेक 
बार बार
छोड़ता विवेक,
कुछ मिलता–जुलता नहीं
आज वह ढूंढता
नया एक संबल,
क्या करता मन एक छल!




तृष्णा

यह तृष्णा है
जीवन की,
तुमसे बातें करने की,
इठलाना तुम्हारा देख सकूं
तुमको आतुर करने की,

तुमको आकर छू लेने की
कुछ अंगों को सहलाने की,
अधूरी हमारी है कहानी
उसको पूरा करने की,

तुम्हारा हाथ पकड़ने की
अपने हृदय लगाने की,
आगोश मे भरकर तुमको घंटो
समय, समाज भुलाने की,

देखने की तुमको विभोर
पर तृष्णा और बढ़ाने की,
तुमको कातर कर देने की
और तृप्ति को, अकुलाने की,

करवटें बदल कर तड़प दिखा
तुम्हारा आवरण हटाने की,
जो है अनकही, अनसुनी बहुत
वो मुख से ही बुलवाने की,

सांस गरम कर देने की
रोंगटे खड़े कर देने की,
आखों मे ज्वाला भर देने
और कंपकपी शरीर मे लाने की,

अक्षेप क्षेप के बंधन से
कुछ आगे बढ़ जाने की,
बदन तुम्हारा और उघार कर
उसपर कलम चलाने की,

मुट्ठियां तुम्हारी पकड़ के
मजबूरी कुछ वक्त चिढ़ाने की,
अपने यौवन की मदिरा का
तुमको ही पान कराने की,

अपने बलिष्ठता मे दबोच कर
तुमको और सताने की,
होने वाले को रोक ज़रा
कुछ नाहक श्राप जुटाने की,

कटाक्ष तुम्हारे झेल वार 
मर्यादा मेरे भुलाने की,
तुम्हारी–मेरी तृष्णा को
मृग–तृष्णा बहुत मिटाने की,

पर वक्त वो सारा गुजर गया
जो नाव तुम्हारा ठहर गया,
यमुना के ठौर पे ठहरा है
अपना भी सत्य ये बदल गया!

Saturday, 5 November 2022

आप

आप ही तो हैं राम
आप ही तो करते तप,
आप का गुणगान!

आप की प्रतिज्ञा
आप का ही त्याग,
आप थे जो पहले
उसी का ही राग,

आप का ही शील
आप का ही मोह,
आपकी उदारता
आप का विछोह,

आप मेरे संग
आप मेरे साथ,
आप ही मे बसते
राम सिया साथ!

Friday, 4 November 2022

वही

वही तो हूं मै
नहीं तो हूं मै,
सोच मे अलग हूं
कहीं तो हूं मै,

परदे के पीछे बैठा
उसके बगल मे नाचा,
अपने को देखता हूं
अपनी बही तो हूं मै!

Thursday, 3 November 2022

वस्तु

तुम्हें मांग लूं खुदा से
कोई वस्तु तो नहीं तुम,
मेरी हसरतों से पैबंद 
कोई हस्ती तो नहीं तुम,

मैंने खुदा बनाया 
सजदे मे जिसको झुककर,
उसीको खुदा ने मांगा
कोई सस्ती तो नहीं तुम,

मैं संग–संग तुम्हारे
संगम के जल नहाया,
आगे सफर बदल दूं
कोई कश्ती तो नहीं तुम,

मछली की आंख भेदूं 
अपने मुकुट सजा लूं,
बाज़ी मे भी लगा दूं
कोई द्रौपदी तो नहीं तुम,

धनुषों को तोड़ दूं मैं
सुदर्शन तुरंत उठा लूं,
तुमसे प्रणय का प्रण लूं
कोई बेबसी तो नही तुम!

Monday, 31 October 2022

किसके लिए

कर तो रहा हूं
करूंगा भी आगे,
किसका नाम लूं
और किसके लिए करूं,

किसको कहूं की
वो मुझे 
राह दिखाकर चली गई,
किसका हाथ 
पकड़कर बोलूं
यह मुझे साथ ले चली रही,

किसको गंगा मां की आरती
आज चढ़ा नाम लेकर,
किसको नाम लगाकर कूड़ा
फेंकूं आज उठा–उठाकर,
कौन है जिसके लिए ही मै
संसार छोड़ दूं एक पल मे,
किसकी आस लगाकर मै
लड़ जाऊं इस दुनिया से,

उसके लिए छोड़ दूं
और उसे हर जगह देखूं
या देख लूं सबमे उसको
तो करती है जो वो मै वही करूं!

Monday, 24 October 2022

दिवाली

दिवाली दिए जलाने के
बधाई रब की देते हैं,
बधाई राम की सबको
घर आने कि देते हैं,

वो लगाकर फोटो
अपने चश्मे–ए –नूर का,
हमे पैगाम भेजे हैं
उत्सव के सुरूर का,

अपने व्हाट्सएप से आज
दिया जलता दिखाते हैं,
बधाई मुझको देते हैं
मेरे दिल को जलाते हैं!

Wednesday, 19 October 2022

नई सुबह

नई सुबह
मेरे लिए
नए तरीके
ले आई,
छूट गए
कुछ रोग मेरे
ये नए सलीके
ले आई,
उम्मीद नई
संकल्प नया
ये नए वजीफे
ले आई,
कुछ साल 
बीच मे खत्म हुए
कुछ भ्रम जीवन के
निपट गए,
जब नींद खुली तो
पाया मैने 
2 ही घंटे सोया था,
कुछ देख रहा था
जिसे अधूरा रख के
मैने खोया था,
अब उठा 
बहुत ही उजला सा
मै पहले वाले पगला सा
ये नई सुबह मेरे दरवाजे
मेरी किस्मत
ले आई!

आग

एक आग
लगाकर आग एक
तुम चली गई,
बुझाकर प्यास
तुम अपनी,
मुझे बेबस बनाकर
तुम चली गई,
मुझे हथेली पर
दिखाया चांद
चमचमचम,
मेरी चांदनी 
को चुराकर
तुम चली गई,

मै जा रहा था
करने कुछ,
हो गया था
कुछ का कुछ,
पर राह मे
वापस घुमाकर
तुम चली गई,

तुम अपनी
सीमा लांघकर,
और निस्तेज
मुझको बोलकर,
आवारगी की
राह पर
कुछ एक कदम
बढ़ाकर मेरा
तुम चली गई,
बदली मेरे ज्ञान का
सिरे से हटाकर
तुम चली गई!

Saturday, 8 October 2022

काबिल

क्या इस काबिल हो तुम
की मांग सको खुलकर
और ले सको दहेज
और ले सको कार,
आंखों मे देखकर
लगाओ खुद का दाम?

क्या इतना पढ़े–लिखे हो
की जानो खुद की value,
क्या इतना मंजे हुए हो 
की कर सको फजीहत
औरों की ले कमाई 
खुद की कब्र सजा सको?

कुछ काम और

थोड़ा ये भी
और थोड़ा वो भी
तुम कर लो
और सीख लो कुछ
और थोड़ा कर लो,
तुम बढ़ा लो दायरे
अपने काम के तरीके
और कुछ सजाओ,
तुम काम के तरीके
कुछ और ही लगाओ,
इतने दाम ही मे
कुछ देर और बैठो,
कुछ और बात कर लो,
कुछ और गुनगुनाओ!

हाथ का खाना

हाथ का खाना तुम्हारे
मै नहीं खाऊंगा,
मै भूख से बिलखकर
कुछ और लड़खड़ाऊंगा,

मै दही मे मिसरी
घोल के पिऊंगा,
मै ब्रेड मे दबाकर
ऑमलेट चबाऊंगा,
मै चाय भर ही पीकर
काम चलाऊंगा,

मै हूं नहीं कमाता
मै हूं नहीं कुछ करता,
मै आप की कमाई
अपने से ही जुटाऊँगा,

मै सो रहा हूं जमकर
मै रात भर हूं जगता
करता बहुत पढ़ाई
पर कुछ नहीं निकलता,
मै अपनी किस्मत फिर भी
कई बार आजमाऊंगा,

तुम साथ मेरे थी जबतक
तब तक तो मुस्कुराया,
तुम फोन करती मुझको
मै खूब ही इतराया,
उस बात की की कहानी
मै याद मे सजाऊंगा!

मेरी आवाज़

तुम घुल जाते हो
कुछ बचता ही कहां है?
कहां है तुम्हारी गाथा
कहां है तुम्हारी बातें,
कहां है तुम्हारी फितरत
कहां है तुम्हारी इज्जत? 
तुम हर किसी से मिलकर
कुछ और ही बने हो 
क्या है तुम्हारी उल्फत
क्या है तुम्हारी चाहत?
तुम किस लिए बने हो
क्या है तुम्हारा मकसद?
क्या हैं तुम्हारे राम
क्यूं राम से हो सहमत?

एक और बार

इस बार कुछ था बेहतर
अब और कुछ भी होगा,
मै कलम अगर पकड़ लूं
तो सबको फक्र होगा,
मै और कुछ जुटाकर
अब और कुछ करूंगा,
लिखता था तुमको चिट्ठी
अब और कुछ लिखूंगा,
इस बार मै अलग सा
कुछ तो अलग करूंगा!

जुड़ना

फिर से जुड़ गए
पुराने मेरे रिश्ते,
जुड़ गई टूटी हुई
रिश्तों की डोर,
देखने लगे हम
फिर से एक ही ओर,
हम साथ आ गए
घूमने के लिए,
और मना ली
फिर नौ रातें
नई–सुबह की तरह,
फिर राम के विजय की
शक्ति अराधना की,
फिर खाके हम पपीते
फांकों की श्रृंखला की,
हम फिर से जुड़ गए हैं
जब राहें नई पकड़ ली!

हंसी

ये सारे लोग 
हंसते नहीं हैं,
ये देखते हैं
आने वालों को
शक की नजर से
और बोलते हैं
हंसने वालों को
तीखी जुबान से,
इनका मजाक
उड़ जाता है
हंसी करने पर
इनको कोई
छल जाता है,
कुछ भी करने पर,
ये चिंता करते हैं
मेरी–तुम्हारी और
हर हंसने वालों की,
घूमने वालों की और
मजा करने वालों की,
घर बैठना और 
सुरक्षित रहना
इनका शौक है,
ये खुश हैं
दुःखी रहकर,
और वक्त नहीं 
गंवाते हंसकर
खिलखिलाकर!

Monday, 3 October 2022

तारे

टिम–टिम करते
रातभर
सुबह सुबह अब
सारे चले गए,
आसमान की
चादर मे लिपटे
सितारे चले गए,
तारामंडल की लकीरें
ग्रहों की चमक,
क्षितिज के किनारे
अंधेरों की रौनक भी
सारे चले गए,
सुबह–सुबह आसमान 
की चमक मे
सितारे चले गए!

Tuesday, 13 September 2022

Emotions

यह अच्छा है
यह बुरा है,
यह सबके सामने
यह छुपा है,

यह मैने जान
कर किया है,
यह हो गया
और पता नहीं चला,
यह भाव है,
भव सागर
मे बहते हम
यही राम हैं,
यह राम का नाम है!

Wednesday, 31 August 2022

प्रकृति

मै अब गुनगुना लेता हूं
छत पर जाकर,
ब्रश करते पेड़ों पर
झूलती हुई चिड़ियों पर
डाल देता हूं एक नज़र,

मुस्कुरा कर गाता
हूं कोई गीत,
झूम जाता देवानंद की तरह
मै राजेश खन्ना बनकर
सिर घुमाता, मुस्कुराता,
वाह वाह करके मै
चिल्लाता, लोगों को
दिखाता और हंसाता,

मै रूसो के कहने पर
प्रकृति के पास जाता
मै खुद को
बेड़ियों से मुक्त करता
और उड़ जाता,
उड़ता चिड़ियों के
संग दूर आसमान मे
चला जाता
हवाई जहाज को उड़ाता
शरीर की
मन की लहरों मे
गोते लगाता
मै प्रकृति मे
ॐ कहकर उतर जाता,
मै ॐ बोलकर रुक जाता😁🥳

Thursday, 25 August 2022

दो बातें

कर लेती तुम दो बातें
कुछ इस पल की
कुछ उस पल की,
आने वाले कुछ
कुछ बीते कल की,

मेरा मुकम्मल होता दिन
मुस्कान मेरी लटका देती
होंठों पर मधुर बोल होते
क्रिएटिविटी बढ़ा देती,
वक्त निकाल के
जो तुम भी
कुछ मेरे संग बिता देती!

तुम नहीं होगी

अबकी बार मै आऊंगा
दिल्ली झंडा लेकर,
लाल किले पर नारा
स्वतंत्रता का जमकर,
मै पैदल चलूं
तिरंगा धरकर
नई बात कुछ होगी,
पर साथ तुम नहीं होगी,

अब गुजरात के
टाउनहॉल मे
जानता खुलकर बोलेगी,
केजरीवाल से
आस लगाकर
अपना दुखड़ा रोएगी,
आयेंगी महिलाएं
आपबीती लेकर
महंगाई की,
जनजाति कुछ आयेंगे
PESA कानून
दुहाई भी,
मै खड़ा रहूंगा
झोला लेकर
पर पास तुम नहीं होगी!

मै इलाहाबाद मे
रूम किराए पर
लेकर रुक जाऊंगा,
मै पढ़ते–पढ़ते
थक जाऊंगा,
तुमको याद
कर रोऊंगा,
कोई हाथ मेरा
धर भी लेगा,
और मुझको 
ढांढस देगा,
कोई बात मेरी
सुन भी लेगा,
और नाम
तुम्हारा लेगा,
देखकर उसको 
दुख होगा,
पर मान भी जाऊंगा,
कोई और
किरण यह होगी
हर बार तुम नही होगी!

Sunday, 21 August 2022

इस दशा के राम

आज मै कमजोर हूं
और मै मेरा मजबूत है
हैं मुझे दर्शन दिखाते
नाम रूपी राम,

फिर न सोया रात मै
करता नहीं कुछ काम
मन जरा विचलित रहा
धरता रहा कुछ काम
आ गए मद्धिम हवा मे
सांस वाले राम,

कुछ वीभत्स–सा
देखा जो मैने
नाक मुंह सिकोड़ कर,
दूर जाकर मै कराहा
मुख मे आए राम
दिख गए सब धाम,

आ गया आवेश मे
बहियां सिकोड़ ली,
आज मैंने हाथ उठाने
की ही मन मे सोच ली,
कातर नयन से देखकर
हाथ उसने जोड़कर
मुझको ही हरा दिया
दुश्मन के मुख के राम,

जब डरा मै प्रश्न से
कलम भी थम–सी गई,
धनुष–सा टूटे परस्पर
Exam वाले राम!



Saturday, 13 August 2022

आराम

अब क्या ठहरें
और कहां रुकें
किस छत के नीचे
लेटें हम?
किस बहन की
उंगली थाम चलें
और किस मां के हों
बेटे हम?
किस बिस्तर
हम पलट गिरे
और किस पंखे को 
on करें?
हम कितना खाना
दबा के खाएं
किसकी बात
लपेटे हम?
इक वनवासी की
बात सुने 
जब चल निकले हैं
राम के धाम,
तब किसे अयोध्या 
बोले हम?

एक दिन का घर

सुबह आया 
फिर चला गया
राखी बंधवाकर
निकल गया,

आया भाई
बड़ा कहने पर
रहा रुका बस
घंटे भर,
हमारे एक दिन का घर!

Friday, 12 August 2022

कच्ची सड़क

ये गांव की कच्ची सड़क
जाती है क्या मेरे स्कूल तक,
लद के आते हैं क्या इसपर
बच्चे दुपहियों पर,

क्या बातें करते हैं इसकी
कुछ बच्चे स्कूल जाते वक्त,
इसपर साइकिल चलाती हैं
बच्चियां खिलखिलाकर?

क्या यही वो घंटा होता 
जब बच्चे खुश होते
दिन मे इक बार,
जब टीचर और मां बाप से
कुछ पाते समय वो बचकर,
आम तोड़ने जाते हैं
नहाने नहर की डंडी धर?

ये कच्ची सड़क न होती तंग
और फूल बिछाती राहों पर,
बरसात इसे आ ढक लेती
और खुल जाती यह आने पर,
यह पतली–सी कच्ची डगर
आज ट्रेन से जो आ गई नज़र!

Thursday, 11 August 2022

रक्षाबंधन

उलाहना देती बहन 
आ गया रक्षाबंधन,
आ नहीं सकते हो अब
आओगे तुम और कब?
जब हो बगल मे घर के
या जब होगे स्वर्ग मे,

जब थी दीवाली आ गए
जब था दशहरा चल दिए
नवरात्र मे व्रत रह लिए
राम जन्म पर गा लिए
और जन्माष्टमी दही खा लिए
होली को तुम मुंह रंगे और
बकरीद पर तुम मर मिटे,

आते नहीं हो घर की जब
मै भूख मे बैठी रही,
मैने सजाई थाल और
घी के दिए पकड़ी रही,
तो क्या रहा बंधन
और क्या रहा वह मन
जब आए नही हो तुम
आओगे कब फिर तुम?

Wednesday, 10 August 2022

मन का

मन का हो तो खाओ
या भूखे रह जाओ,
मन का हो तो जाओ
या घर पर जाके सोओ,
मन करे खेलो खेल
मन करे तो गाना गाओ,
मन करे तो प्रेम करो
मन करे बात करो,
मन करे तो झूम के नाचो
मन करे चुप बैठो,
मन करे तो मच्छर मारो
मन करे तो शेर सुनाओ,
मन करे तो मन की बोओ
मन करे तो मन से काटो,

मन की सुन लो
मन खुश कर लो,
मन जो बोले वो देखो
पर कुछ देर ठहर कर
मन को भी तो देखो!

Tuesday, 9 August 2022

जहां से आया था!

मै वहीं जा रहा हूं 
जहां से आया था,
वही पेड़ है, वही फर्श है
जिसपर मां ने सुबह
पोछा लगाया था,

वही पढ़ाई कर रहा हूं
जो समझता था धीरे–धीरे,
वही लोट कर पढ़ता हूं
सो जाता धीरे–धीरे,
मां आकार खाना देती
मै खा लेता कुछ देखते हुए
मै थाली रख आता आंगन मे
पानी पीता बात करते हुए,
मै आज फिर से वही खा रहा हूं,

मै वही पेड़ों के झुंड
मे सामान्य–सा 
दौड़ जाता हूं,
आसमान की ओर देखता
सो जाता हूं,
मै ऊपर की झुरमुट मे
खो जाता हूं,
मै आज फिर सांसें मे
राम बसाता हूं!

मै बबिता के साथ
कहानियां 
अंधेरा देखकर बनाता हूं
मै लाइट आने पर 
जोर से चिल्लाता हूं,
लाइट चले जाने पर
बबिता के घर दौड़ जाता हूं
मै पापा की चारदीवारी
को फिर से लांघ जाता हूं
मै चाचा और चाची के घर
खाना खाता हूं,
विक्रम के साथ 
होमवर्क करता हूं,
दादाजी के साथ नहाता हूं,

हां मैं फिर से बच्चा बन जाता हूं!

कौन है?

मैं हूं या राम हैं?
जो बोलते हैं
करते हैं,
रखते हैं इच्छाएं,

जो रोक लेते मन
करते यत्न कितने सारे
मांग कर खा लेते
और मांगते उधार,
बंधे हुए हैं सबसे
और सबके ही आकार!
मै हूं या राम हैं?

आते–जाते, खाते–पीते
रूठते–मनाते,
मन मे ख्वाब सजाते
मिलते–बिछड़ते,
पांव छुते और
नम्र शीश झुकाते
मैं हूं या राम हैं?

घूमते टहलते
गंगा मां का दर्शन करते
घाटों पर लेट जाते
और करवट बदलते
धोती कुर्ता पहनते उतरते
तृप्त और तृष्णा को ढोते
मैं हूं या राम हैं?

मै कर रहा हूं
कैसे कहूं
जब करने वाले राम हैं
मै सोच रहा हूं 
क्या सोचूं
जब भरने वाले राम हैं?
मै मुस्कुराऊं 
और टाल जाऊं कैसे
जब हंसने वाले राम हैं?
मै खुद को जान पाऊं कैसे
जब समझ का मतलब राम हैं?
मै राम धाम जाऊं कैसे
जब चलने वाले राम हैं?
मै ढूंढूं कैसे किसको पूछुँ
जब ढूंढने वाले राम हैं?
मन पर काबू पाऊं कैसे
जब चिल्लाने वाले राम है?
मै शब्दों को पिरोऊ कैसे
जब पढ़ने वाले राम हैं!
मै राम नाम धाऊं कैसे
जब धरने वाले राम हैं!


Sunday, 7 August 2022

6 अगस्त

अब तो 6 अगस्त
और 9 अगस्त भी
एक तारीख की तरह
आते और जाते हैं,

इतवार और सोमवार
एक जैसे है सब,
सब सिलेबस 
खत्म करने के 
कुछ और घंटे 
बन जाते हैं,
और लगी रहती है
एक रेस वक्त के साथ
बस राम की पतवार
साथ मे है साथ,
राम का नाम है साथ!

Friday, 5 August 2022

communication

मै तुम्हे सबकुछ
बताना चाहता हूं,
उंगलियों को रख
तुम्हारी उंगलियों मे
हर हर्फ को छूकर
पढ़ाना चाहता हूं,

तुम देखती होगी
कई episode
किस्से और तजुर्बे 
मै दिव्यकीर्ति को
सुनाना चाहता हूं,

आज लल्लनटॉप पर
वो कह रहे हैं,
DU मे बहसों के
दीवारें ढह रहें हैं
मै हाथ धर कर
अब तुम्हारे
उन गली मे
बिखरे टुकड़ों को
उठाना चाहता हूं,

मै फिर से फूलों को
तुम्हारे साथ चलकर,
देखकर बातें 
बनाना चाहता हूं,
तुम सो गई
मै सो गया हूं,
बातें करते
अब नींद मे 
तुमको बुलाना चाहता हूं!

Monday, 1 August 2022

किष्किंधा

हम किष्किंधा के ध्यानी
हम पंचवटी के वासी,
हम उड़ने वाले के पुत्र
हम जंगल के पथगामी,

हम रघुनाथ के सेवक
हम सिया राम के चातक,
हम पूंछ जलाने वाले
हम मंगल नाम के वाचक,

हम कंद मूल खाते हैं
हम नीचे सो जाते हैं,
हम खाकर हवा जी लेते
हम पानी के पूजक,

हम नम्र सदा विनीत
हम गाते भ्रमण मे गीत
हम चूस लेते मकरंद
हम किष्किंधा के मीत!

छलिया

ये मिट्टी की पुट्टी
इधर उधर ढुल जाती
कुछ ले आती
सागर मे गोते खाकर
खर–पतवार, शैवाल,

बार–बार कुछ खाकर
उल्टा–सीधा झंखाड़,
उल्टी कर देता कहीं भी
और रहता उसे निहार,

ये छलिया
60 किलो का भार,
इसके नखरे अपार
ये छलिया
खुद का ही मझधार!

बयार

मेरे नथुनों को छूकर 
हल्के से भीतर जाती,
हर मोड़ पर थोड़ा
रुकती, ठहर जाती,

ये ठंडी–सी बयार
बड़ी मद्धिम–सी धार,
सुर मे गुनगुनाती
गले से उतर जाती,

ये राम नाम की बयार
जीवन को तार
हमे झूला झुलाती
गोद मे उठाती और
जीवन है जब तक
आती और जाती
ये राम नाम की बयार!

Thursday, 28 July 2022

करण–अर्जुन


मदर इंडिया ने
कुछ साल पहले,
त्रस्त होकर 
कहा होगा शायद
"मेरे करण–अर्जुन आयेंगे!"

"भ्रष्टाचार के खिलाफ
आवाज बुलंद कर
बापू–सा फकीर
और दिल के अमीर
बनकर देश का
त्रास मिटाएंगे।
मेरे सपूत आयेंगे!"

आज द्रौपदी की
रथ का तंत्र 
है भाई नरेंद्र संग,
हस्तिनापुर, पंजाब का
हाथ पकड़, बढ़ रहा
एक केजरीवाल।

इस लोकतंत्र की विभा मे
जीत जायेगा कौन,
कौन जीता रहेगा,
कौन चला जायेगा?

आज कर्ण फिर क्या
अर्जुन से हार जाएगा,
क्या फिर बनाने अपना रथ
रश्मिरथी उतर जायेगा,
कौन–सा रक्त कीचड़
पहियों मे लिपट जायेगा,

या द्वारका ही
इस बार बढ़ कर,
कर्ण को अपनाएगा,
दिल्ली पहुंचा नरेंद्र का रथ
घर से ही छूट जाएगा,

अब है नहीं मरना
किसी को और नहीं जाना,
भारत के इस संग्राम मे
गौरव राष्ट्र का बढ़ाना,
करन अर्जुन को मिलकर आज
मां को बचाना☀️


सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...