Monday, 30 December 2024

दूर

दूर रहने वाले बेवफा नहीं होते 
रोज मिलनेवालो सा ख़फ़ा नहीं होते,
करते हैं खयाल परिंदे भी घोंसले का 
उड़ने से ही वो ज़ुदा नहीं होते,

मन मे बताते कहानियां हजारों 
बहलाते हैं खुद को देखकर उजाड़ो, 
जान देते हैं सरहदों पर देश के लिए 
महफ़िलों के कभी परवाह नही होते,

मुफ़लिसी में भी शामियाना सजाते हैं 
भरी आंखों से देखकर झिलमिलाते हैं,
चाँद का साथ तो सितारें देते हैं
अपनों-सा रोशनी मे मुँह घुमा नहीं लेते!


stay away

Just stay away
For another day,
Spent it convenient 
all the way,
Where someone needs
To weep in
depth of her stay,
Let them play
There own game
Their own dismay
For emotions flows
The stress away
And rejuvenates 
The cosmos in bay
Just let it go
Let them be
Let it be like 
the other day.

लड़कियाँ

लड़कियां मुस्कराती हैं
मुँह बनाकर हंसती हैं,
बातें करती हैं खूब 
गाल बजाती हैं,

लड़कियाँ जीवन मे आती हैं 
खिलखिलाती हैं 
मजाक बनाती हैं,
ये लड़कियाँ बातें 
मन में छुपाती हैं,
छोटी सी बात पर 
लड़ जाती हैं,
तील का ताड़ 
तड़ाक से बनाती हैं,
लड़कियाँ गुनगुनाती हैं 
बिना बात के 
गुस्सा दिखाती हैं,

खयाल रखती हैं 
और याद रखती हैं,
लड़कियाँ दरवाजों पर 
इन्तेज़ार करती हैं,
लड़कियाँ सभी वक्त को 
स्वीकार करती हैं,
लड़कियाँ हमें पहले ही 
प्रणाम करती हैं,
लड़कियाँ हैं जनाब 
ये जिंदगी गुल-बहार करती हैं!

Monday, 23 December 2024

आसक्त

मेरा भी कुछ लेना है
कुछ देना है,
कुछ मन मे है
कुछ नेत्र बसे,
कुछ चेहरे हैं
कुछ मंजर हैं,
कुछ बातें हैं
कुछ हरकत है,
कुछ दावत हैं
कुछ किस्से हैं,
मैं प्रेम पाश में धर लेता
मेरे ही कितने बंधन हैं!

Thursday, 5 December 2024

गुस्ताख

हम करेंगे तो गुस्ताखी होगी 
आप करेंगे तो शोखी होगी,
हम करेंगे तो परवाज होगा
आप करेंगे तो अंदाज होगा,
हम करेंगे तो बगावत होगी 
आप करेंगे तो इबादत होगी,
हम करेंगे तो ज़ुर्रत होगी 
आप करेंगे तो रहमत होगी,
हम करेंगे तो पहरे होंगे 
आप करेंगे तो नज़रे होंगी,
हम करेंगे तो सुगबुगाहट होगी 
आप करेंगे तो कयामत होगी,
हम करेंगे तो नया तरीका होगा 
आप करेंगे तो शलीका होगी,
हम करेंगे तो महारत होगी 
आप करेंगे तो आदत होगी,
हम करेंगे तो शिकायत होगी 
आप करेंगे तो दावत होगी,
हम करेंगे तो जरूरत होगी 
आप करेंगे तो ईनायत होगी,
हम करेंगे तो किस्से होंगे 
आप करेंगे तो रामायण होगी!

भूल और भटकाव

एक भूल और एक भटकाव 
लाज़िमी है रास्ते पर मिल जाएंगे,
पुराने जखम और नए हमसफ़र 
कुछ कहेंगे और हम फिसल जाएंगे,
एक सच और एक याद 
फलसफा जिंदगी का बन जाएंगे,
हम कहेंगे नहीं, वो रुकेंगे नहीं
रास्ते दो सिमट कर पलट जायेंगे!


Saturday, 30 November 2024

देने वाले

हम दोनों हैं देने वाले 
हमको लेना मंजूर कहाँ,
दोनों राह दिखाने वाले 
हमसा कोई मगरूर कहाँ?
कोई हमसे कैसे कहे 
हमको आता नहीं कुछ भी 
कोई हमसे पूछ ले कैसे 
हमको न आए जो भी,
हम सरल-सहज, सुलझे-सुलझे
है अलग पंथ पर मध्य उगे,
हम मुस्कुराकर हाथ मिलाते 
आते-जाते टक्कर खाते 
राम-श्याम के हम पोते!

खेल

खेल खेलते हैं 
खिलाड़ियों के साथ,
पालों में रह रहे हैं 
उधर जाने के बाद,
खेल के बड़े हैं 
उस्ताद जंग में,
मैदान है बड़ा 
हर शख्स उमंग में,
खेल खेलते हैं 
राम के घर से,
खेल है खुदा 
हम हैं महज शागिर्द!

खोज

मेरे हुनर को आप 
औरों में ढूँढ़ती हैं,
नाजों को निभाने को 
हस्ती लुटा दे जो,
ऐसे दीवानों को
मयखानों में ढ़ूंढ़ती हैं


खाना बनाकर जो
टिफिन सजा दे,
ऐसे खानसामे को
दावतखानों में ढूँढ़ती हैं,
जो बात सुनकर आपकी 
हीरे-मोती में जड़ा दे,
ऐसे ईबादतगारों को
ईंसानों मे ढूँढ़ती हैं!




Friday, 22 November 2024

सम्पत्ति

मेरी सम्पत्ति हैं
मेरे परिवार के लोग,
जिनकी खुशी को 
करते हम अनुयोग,
लाचार पाते हैं खुद 
जब दुख देखते मुख पर,
हैं पास रिसता उम्र 
हम हैं पहरे पर,
है क्या असर मुझपर 
डर मैं देखता इधर-उधर,
उसके माथे की सिकन
लेता उठा खुद पर,
संजोता मैं उन्हें मन में 
निहारता उम्र भर!

Thursday, 14 November 2024

एक बापू हैं!

एक बापू है हृदय में 
एक खादी है तन पर 
एक गीत है होठों पर 
एक राष्ट्र है पेशानी पर 
एक काम है मेरे हाथों में 
एक रफ्तार है मेरे पैरों में 
एक गर्व है मेरी चाल में 
एक समर्पण है मेरे ख्याल में 
एक भाव है मेरे मिलने में 
एक जिद है कुछ बदलने में 
एक मकसद है मेरे बापू में!

अन्याय

जो हो गया है 
उस अन्याय का क्या?
क्या होगा उस 
दर्द का जो किसी ने
माथे पर खींचा
क्या खुलेगी कभी भी
वो मुट्ठी जो 
लाचारी ने है भींचे,
जो चोट लगी 
उस दाग का क्या?

दो कदम

दो और कदम 
कुछ राम चलेंगे,
दो और पल 
मेरे साथ रहेंगे,
मेरे कर्म तो 
अपने आप जलेंगे,
कुछ वजह 
जमाने को देने
कुछ संकल्प को 
हाथ बटाने 
मेरे युद्ध में साथ लड़ेंगे!

Thursday, 24 October 2024

देखूँ और दिखाऊँ

मैं कुछ देखूँ अपने भीतर 
कुछ अपना अंतर दिखाऊँ,
कुछ देखूँ दुनियाभर के रंग
कुछ मिलकर नाँचु-गाऊँ 
कुछ और के दिल मे झाँकू
कुछ उनके दर्द भुलाऊँ,

कुछ करने दूँ उनके मन का
कुछ अपनी चाल खेलाऊँ,
कुछ तड़पन रहने दूँ मन में
कुछ मरहम ढूँढ के लाऊँ,

जादू कर दूँ भेद छुपाकर 
मुट्ठी खोल हँसाऊँ,
मंत्र फूँक दूँ राम नाम का
आँखो को उलझाऊँ!

हजारों कदम

हजारों कदम और चलूँ 
कुछ कदम मिलाकर 
सीधी नजर कर,
कुछ लाईन तोड़कर 
औरों से अलग हटकर,
कुछ पल बैठकर सुस्ता लूँ
कुछ साँसों को कैद कर लूँ
राहों मे फरिश्तों से मिलूँ
अँगुलीमाल के रास्ते 
और कुछ रथयात्रा मे
रस्सियाँ खींचता 
हजारों-हजार कदम और चलूँ!

Thursday, 17 October 2024

चाँद

यूँ चाँद बनकर वो 
ज़मीं पर चले आए,
जैसे हमको लूटने वो
हमीं से चले आए,

काले बाल, काली घटा-सी
काला दुकूल, बादल की लता-सी
आँखों की हया, चटख चंचला-सी
काला लिबास, शर्पकन्या-सी
वो सितारों जैसे कुछ 
जगमगा - सा गए!

मरघट

हम मिले-जुले
एक मरघट पर,
हम बात किए 
कुछ मरघट पर,
माँ गंगा की आरती हुई 
हम पढ़ें मंत्र
उस मरघट पर,

वो सब छोड़ 
किनारे बैठे थे,
हम पाने
दरिया आए थे,
कुछ शाम की
रूंधी भाषा में,
हम बातें करते चले गए,
हम चले परस्पर मरघट से!


जो नहीं है!

वो जो नहीं है
जिससे बातें नहीं बनी
जिससे जाती नहीं मिली
जो टूटे चप्पल की तरह रही
जो फिसली और पर पाँव धरी
जिसको समझा मैं नहीं सका
जो मेरी समझ के बाहर थी
उसकी कमी-सी कैसी है?
जो मिली हुई है बातों से
जो जुड़ी हुई है हरकतों से
उसके अंदर वो झलक रही
पर उनसे बेहतर वो कहाँ लगी?

जल्दी

अभी समय हुआ तो नहीं है
अभी किसी ने टोका तो नहीं है,
अभी कल ही तो आसानी से
पार हो गया था,
कल भी कहाँ कोई 
माथे पर चढ़ गया था?

कल जैसा आज होगा
तो क्या हो जाएगा?
क्या होगा जो अलग होगा?
कल की देरी, 
आज की जल्द को 
पोषित न कर दे?

Thursday, 26 September 2024

वचन

अगला शब्द
अगली फिल्म 
अगली चाय
अगले लोग
अगली किताब
अगली ट्रेन 
अगली बोगी
अगला ध्यान
अगला ज्ञान 
अगला मिलन
अगली बिहार
अगला समाज,
अगली कहानी
अगले कृष्ण 
अगले राम
अगला जन्म
अगला काम!

मरने वाला मेल

हम शब्दों के शस्त्र से
चीरे हुए हैं काल मे,
हम रास्तों पर मिल रहे हैं
दूर से बेतार में,
हम जानने वाले हैं 
हर नज़र की पहचान में,
हम देखने वाले हैं
अपने पीठ को हर हाल में,
हमारे दोस्त हैं दुश्मन 
हमारा संग आसमान मे,
हम चुप हुए है फेर नजरें 
मिल रहे संसार मे,
हम साथ चलने के लिए हैं
मौत की रफ्तार मे!


Monday, 16 September 2024

जो है नही

ऐसी चमक, ऐसी खनक 
जो है नही,
देखने से ढ़ल जाती है
सुनी हुई धुन सादी है,

मनोहर गढ़ी, भेरी कही
योगी की तंद्रा,
भोगी की रंभा 
कवि की नजर मे
सुमन-सा सुवर्ण,
रसिक की जुबान 
की टपकती शहद,

आंखों की हसरत
सदा की मुहब्बत
होने का तसव्वुर 
ये बयार-ए-इबादत
जो होगी नही!






मित्र

कितनों से मिला
जानकर चुप,
कितनों से मिला
पहचान मे गुप्त,
कुछ और अजीब 
कुछ और अनोखा
मेरे मन मे मेरा मित्र,

और ढूंढता, 
और मे पाता
कहां- कहां है मेरा मित्र?

घर

घर से निकलने का 
बड़ा लगा है,
बना लिया है मैंने 
अपना यहां पर घर,
यहां के लोग 
यहां के मंजर
लगने लगे कितने सुंदर,

यहां बसा है मेरा दोस्त 
यहां रुका मेरा परिवार,
यहीं पर हैं भगवान मेरे 
यहीं मिला मुझको वरदान,

यहां नजदीक बड़ा बाजार 
यहां गाड़ी और घोड़े-सवार,
यहीं कॉलोनी में साथ हैं सब 
यहीं मंदिर में भजन व्यावहार,
यहीं पर ओम, यहीं पर हवन 
यहीं पर रात, यहीं पर शयन,

यहां की भाषा, यहां पर गीत 
यहां पर रंजन, यहां पर रीत,
यहां पर खाना यहां पर रोटी 
यहां पर चैन, यहां पर ज्योति,

कहां बनेगा ऐसा घर 
कहां मिलेंगे ऐसे लोग,
कौन बनाएगा फिर मिलकर 
घर से परे और एक घर?


Wednesday, 11 September 2024

चक्र

कल फिर मन 
कल जैसा होगा
कल ज्ञान 
खत्म हो जाएगा,
आज का ज्ञान 
कल मुँह चढ़ायेगा
आज का अज्ञान 
कल हाथ पकड़कर 
अंधकार की कालिख से 
मुँह धुलाएगा,
कल त्याग 
मोह बन जाएगा,
कल वासना सुख
और सुख 
वासना बनी होगी,
कल मुस्कान मुसीबत 
और मुसीबत 
मुस्कान की जगह लेकर
हावी होगी,
कल राम 
दूर से ही सही
अच्छे लगेंगे,
बुलाकर मुस्कुराएंगे
रुलाएंगे और 
रास्ता दिखाएंगे
राम फिर जन्म लेंगे
राम वन जाएंगे,
और फिर से 
अयोध्या मे दिवाली होगी!




Tuesday, 10 September 2024

नया आदमी

आया है कहीं से 
नया आदमी,
खेलता है, पढ़ता है
बातें सबसे कर्ता है,
हमारे समाज का 
फला आदमी,

खाता नहीं है 
ठहरता नहीं है,
कुछ भी कह रहा है 
कुछ कहता नहीं है,
लगता है सबको 
भला आदमी,

खेल मे, कूद मे
गीत मे, नृत्य मे,
कर्म मे, काण्ड मे
ग्राम मे, प्रांत मे
हमारा हमराह बनकर
चला आदमी,

हमारे ही देश का
एक पला आदमी!

परवाह

न तुमने रोकने की कोशिश की 
न मैंने मुड़ कर देखा,
न तुमने कुछ और बात की 
न मैंने जुड़ कर देखा,

न तुमने हाथ मिलाया 
न मैंने हाथ बढ़ाया,
तुम्हे मेरी परवाह थी
और मुझे मेरी!

कालीदास की पत्नी

तुम्हारे प्रश्न का उत्तर 
तुम्हारे मन का आपा,
तुम्हारी देश के ढंग 
मेरे छोटे ढोंग,

तुम्हारे लम्बे वक्तव्य 
मेरी हाँ की धुन,
तुम्हारी बड़ी शिकायत 
मेरी बातें सुन्न,

परमार्थ- समर्थ के प्रश्न 
लोक विवेक के मंत्र,
पाई-पाई की बचत
लमहे- लम्हे का यत्न,

कौन, किसका, किसको?
ऐसा-वैसा उनको,
महिषासुर, रावण भोगी
धोती-कुर्ता योगी,

समय-समय का बंध
जगह-जगह के लोग,
आने-जाने के मतलब 
क्या जानेंगे लोग,

देखने की मर्यादा 
पूछने की अभिलाषा,
कहने-सुनने का संदर्भ 
कार्यालय की परिभाषा,

सूर्य-चंद्र, अग्नि-जल
बुद्धि-बल, प्रमाण-छल,
ध्यान-राग, आज-कल
दशा-दिशा, भुजा-दल,

गदा-फूल, आद्र-धूल
विनय-हूल, शांत-चुलबुल,
खता-भूल, नाम-मूल
शहर-ग्राम, नम्र-शूल,

कला-सुकून, चला-कुल 
पंक-कमल, धरा-अतल,
प्रभा-दर्श, आदि-शीर्ष
अंत-मुक्त, सत्य- हर्ष,

दर्द-कीर्ति, राम-भक्ति 
कृष्ण-रास, बुद्ध- शक्ति,
व्यथा-व्यर्थ, माया-अर्थ
प्रेम-उमंग, कलह- संग,

अदा-शृंगार, लाज-अलंकार
दर्पण- सत्य, मोह- कृत्य 
बंध-तृप्ति, रास- भक्ति,
मेल-मगन, जाप- भजन,

खुदा-निराकार, अदृश्य-साकार
जंग-सुलह, क्रोध- हृदय,
प्रलय-नया, प्राणी- दया
सिन्धु-अथाह, बिन्दू- राह,

गगन-विशाल, क्रिड़ा-भूचाल
लता- लगन, क्षुधा-अगन,
आप- गर्व, विघ्न- अथर्व
ज्ञान-सर्व, लोक-पर्व,

सवाल-जवाब, हिसाब-किताब 
अलग-थलग, संग-संग,
आमोद-प्रमोद, कथा-बिनोद 
हंसी-मजाक, प्रेम-प्रसंग! 








Sunday, 8 September 2024

नटखट

कहना है कुछ 
कुछ और कहती हो,
मुँहजोरी कर रही
कहीं साथ कहती हो,
शब्दों के खेल मे
खेल रही शब्द-शब्द,
आँख खोल देखती हो
बंद आँख की शहद,
चुरा रही नजर 
चुरा रही हृदय 
तुम मुस्कुरा के लांघ देती
मेरे सब्र की शरहद,
खटखट-खटपट
बातों की झपट- लपट,
तुम बना रही मुझे
अपनी तरह नटखट!



ତୋଷାଳୀ

अतृप्त नयन के 
अंजन को तुम,
तुम माया युक्त
दीप्ति अगन,

प्यासी ग्रीवा की 
व्याकुलता को 
अधरों से देती 
अमृ-वचन,

हिमाद्री मलय की 
यज्ञ-भूमि में 
रजनीगंध की 
तीव्र चुभन,

तप्त धारा के 
शोणित को,
स्थिर करने की 
सौम्य छुअन,

राम श्रवण के 
त्रेता की तुम,
मोहन-रूपा
मुरलीधरन,

क्रंदन को 
आतुर जो मन,
आंचल से
सोखती अश्रुजल,
 पीतल की 
सर्वसुलभ कंचन,
अणस-कन्या, मोहिनी-जन्य 
ओस-दूब की मधुर मिलन,
माटी-तृण की सेतु चरण,
तुम हरियाली-सी अर्धनग्न,
वर्तिका-किरण की आलिंगन,
शृंगार की शिखर चिरयौवन
स्थिर-प्रज्ञ और अल्हड़पन,
पोषित करती मद की प्याली 
भोली-भाली तोशाली!


Saturday, 31 August 2024

राम और माया

राम और माया 
फिर नवीन हो आया,
राम हृदय के पास 
माया बादल सी छाया,

राम मंदिर के आगे 
माया समुद्र के पार,
राम का संग सत्संग 
माया जीवन की रंग,

माया जाए ऊँचा 
राम सर्वत्र व्याप्त,
माया चुप हो बैठी 
राम करे वक्तर्व्य! 


makeup

Makeup for the mind
Makeup for the dark,
Makeit up what's not there
Makeup a spark,

Makeup the truth
Makeup the desire,
Makeup the aspiration
Makeup the stairs,

Makeup some dreams
Make some happiness,
Set aside what you have
Make the blissfulness.

वादा

इस बार नहीं रोना 
इस बार इन्तेज़ार,
इस वक्त के लिए 
उस समय का विधान,

चक्रवर्ती भाव का 
राम समाधान,
मोड़ पर मुड़ने से पहले 
राह की पहचान,

कुछ नया है नहीं 
यह जड़ता का ज्ञान,
परछाईं बनेगी कैसे 
मेरे रंज का समान,

वादा किया है कल 
रहेगा कल तलक ईमान!


स्पंदन

स्पन्दन के साथ बगल में 
कर्ता शरीर ऊर्जा भ्रमण,
आगे चलते रहने का 
पीछे-पीछे छुपे तन का 
प्राण तन होता विसर्जन
मेरा दिल कर्ता क्रंदन 

ढूँढना चाहता कोई मनोरंजन 
सब जानकर बैठा
किसी से कर्ता खेल 
कर्ता किसी साथ वंदन,
आशक्त और अशांत 
यह काम ख़त्म कर 
खत्म कर्ता कैसा बंधन,
और फिर खोजता 
मन के आवर्तन,

स्पन्दन से दूर 
ठहर कर कहीं,
किया अपवर्जन 
ऊँचे सुरों के शोर 
स्तब्ध विस्मृत स्पन्दन!

Tuesday, 27 August 2024

choice

मत करना मुझसे बात
कुछ भी न हो संवाद,
चुप्पी से मेरे प्रलाप का 
करना तुम प्रतिवाद,

यह कैसा मेरा लगाव
जो बना है मेरा अभाव,
मेरे हाथों की मुट्ठी से 
तुम्हारे कन्धों पर घाव,

आने-जाने से मुक्त 
दर्शन- दर्पण से मुक्त,
कुछ शर्तों का प्रभाव 
समय का स्वभाव,

कहने-सुनने को भेद 
विमुख परस्पर भाव,
कुछ और दिनों तक साथ 
तुम्हारा मेरा चुनाव!🙏🏽

Friday, 2 August 2024

एक और सही

एक उड़ी हुई-सी
नींद सही,
एक बीत रही-सी 
रात सही,
एक खुली हुई-सी
आँख सही,
एक टली हुई-सी
बात सही,
एक सुबह और
बर्बाद सही,
एक उनके हाथ की
चाय सही,
एक प्यार छुपा
चुप-चाप सही,
एक छोटी 
भोजी-भात सही,
एक बांध तोड़
बहता पानी,
एक मुट्ठीभर 
आसमान सही!

Wednesday, 31 July 2024

उजाला

सूरज को छुपाकर 
क्यूँ अंधेरा कर रहे हो तुम?
चिरागों की चमक को
क्यूँ सवेरा कह रहे हो तुम?
हमारे खादी पहनने से
'बापू' साँस लेते हैं
हमारे साँस लेने पर
बखेड़ा कर रहे हो तुम?

चाकरी

चाकरी को गांव से 
कस्बे में आ गए,
खुले आकाश से नजरे हटा
कमरे मे आ गए,
टाई लगी, बक्कल लगा
और ओढ़ काला सूट,
हम जंगलों की छोड़
इक मलबे मे आ गए,
माँ-बाप और परिधान अपने
लग रहे हैं लीच,
सूरज उगा पश्चिम से
हम जुमले मे आ गए,
दूर होकर चल रहे हैं
परछाईयों से आज,
हम शरीफों के बड़े
कुन्बे मे आ गए,

साड़ी वाले जिनको 
काबिल नहीं लगते,
चुनाव को राजा
सुधानंदन पे आ गए,
जमाई राजा संसद बचाने
लंदन में आ गए,
धज्जियाँ उड़ने लगी 
हमारे साँस लेने से,
लकीरों के पल्लेदार 
बंधन में आ गए,
औरंगजेब सो गए 
औरंगाबाद मे,
छत्रपति महाराज 
महज सपने मे आ गए,
और शाम आ जाएगी
विक्टोरियन साम्राज्य मे भी,
लाठी- लंगोटी वाले 
जब अपने पे आ गए!

कीचड़

आसमाँ के भाव 
और धरती के शब्द,
बादल का उन्माद 
और प्रकृति का अंक,
पवन का आवेग 
और अग्नि का भष्म,
सावन की अल्हड़ता 
बिखरा ग्रीष्म का वैराग्य,
बारिश से लयबद्ध 
खिला प्रेम का राग,

थोड़ा जल, थोड़ी मिट्टी,
कोई बीज़, कुछ रेती,
शरीर के रंग-सा
बेतरतीब बेढंग-सा,

आश्रय की छांव 
कोमलता के राम,
संचित सृजन का मर्म
जीवन पल्लव का धाम,
मृत से चैतन्य का सन्दर्भ 
प्रकृति का गर्भ!

Sunday, 28 July 2024

बापू का संघ

बापू का विश्वव्यापक संघ
बापू का बड़ा-सा चरखा,
बापू के घूमते चक् से
निकलते विचारों के
अनवरत धागे,
मानव समाज के पुलिन्दे से 
बनते नए सूत्र
कुछ टूटते मध्य 
कुछ गढ़ते अंबर गूथ,

घर गृहस्थ की
बड़ी-बड़ी खुली साखा,
हर किताब- अख़बार मे
विवेचित परिभाषा,
मूल से संदर्भ तक
रौशन उनकी जिज्ञासा,
स्कूल की दीवार 
और रेल की टिकट,
फिल्मों की अंतरात्मा
काॅन्ग्रेस का जीवाश्म,
बापू पर आधारित 
बापू का ही ढंग,
विशाल विश्वरूपी
यह बापू का संघ!

बोझ

एक फोन का बोझ है
बारिश मे भींगने से डरा,
कुछ क्षण को कौतुहल 
कुछेक बूँद को 
थामने की ललक,

कुछ पकड़ मेरी
कुछ-कुछ समय 
और विधान की,
कुछ माथे का तिलक 
कुछ परिवेश
कुछ परिधान की,

एक बोझ मन का
एक चाह मन की,
एक बोझ कंधे का
एक उठे हुए पंखों का!


Wednesday, 24 July 2024

ख़त्म

काम खत्म कर दूँ 
मेरे भाव खत्म कर दूँ 
मैं आज सोने से पहले 
मेरा आज खत्म कर दूँ,

कुछ मुहल्ले की सफाई 
किसी दोस्त की दवाई,
ओड़िया की पढ़ाई 
और रात की जगाई,
सब खत्म कर दूँ

सीजीएचएस का कार्ड
बाज़ार से फलाहार,
उससे पूरी बात 
और सबसे मुलाकात,
मैं अबके कर दूँ,

देर रात की फिल्म 
आधी-अधूरी ईल्म,
बच्चों की तकलीफ 
और आत्म से अनभिज्ञ 
मैं दूर कर दूँ,

मै नदी को सिंधू मे
तब्दील कर दूँ?
कल के सूरज को
क्षितिज विलीन कर दूँ,
मै खुद को जैसे
आज ही संपूर्ण कर दूँ?
मै आप अपनी ही 
गति अमूर्त कर दूँ!


Saturday, 13 July 2024

मोह

मुझको अपना कहने वाला 
मेरे मन में मेरा था,
मेरा हाथ पकड़ने वाला 
मेरे क्षितिज का घेरा था,

मेरे संग जो हँसा जोर से 
मेरे खुशियों का था श्रोत,
मुझको नज़र बसाने वाला 
मेरी नज़र में था चित्चोर 

मेरे बगल में रोने वाला
दुख का मेरे साथी है,
मुझको रोज ताकने वाली 
मेरी किस्मत वाली है,

सीढ़ियों के पत्थर मेरे 
आए हैं बनकर खूँटे 
मेरे मोह के बंधन मेरे 
मेरे हुए, मेरे छूटे!

घर

एक घर मे
जाकर सो जाए,
हम घर मे 
जाकर पड़ जाए,
घर मेरे मन का 
बना हुआ,
घर मेरे मन का
सजा हुआ,
घर मेरा 
सुगंध भरा,
घर मेरा-सा
आधा-पौना,
घर का कोना-कोना ऐसा
पालने मे झूलने के जैसा,
घर की दीवार ऑंचल जैसी
कोई गोद सरीखी बीछी ज़मी,

यात्रा मेरी लम्बी-चौड़ी
पर घर पर जाकर थमी रुकी!



Wednesday, 10 July 2024

कुम्हलाया

अभी उतरा है मेरा 
शख्सियत का नशा,
अभी आयी है बात 
मेरे कारख़ाने की,

अभी तो सेज था बिस्तर था, 
तकिया था सिरहाने,
अभी आयी है बात 
घर से रात जाने की,

अभी पानी पड़ रहा था
मौसम सुहाना था,
अभी आयी है बरसात 
छाता उठाने की,

अभी अपने लिए रोटी 
रसोई से उठाया,
अभी आयी है सौगात 
भुखमरी मिटाने की,

अभी तक फैसले थे 
शाह के फरमान से निकले,
अभी आयी है वज़ह आज 
कोई जिम्मा उठाने की,

अभी तक सूर्य उगता था 
हमें दिन में उठाने को,
अभी आई है ज़ज्बात 
अलार्म की घंटी बुझाने की

अभी तक डाल से छूटे
महीने चार गुजरे हैं,
अभी आने को बाकी हैं
घड़ी कुछ कुम्हलाने की!

Tuesday, 9 July 2024

डालियाँ

बहुत-सी डालियाँ 
और बहुत-सी कोपलें,
खुल गए हैं आज कितनी 
मेरे हृदय में रास्ते,

हर कली ही
खिलने को आतुर,
हर राह है 
साधन सुसज्जित,
हर जीत का 
परचम प्रसारित,
हर जान है 
आकुल प्रफुल्लित,

हर दिशा का आज सूरज 
राह को करता आलोकित,
अंक में हैं आकर हैं सोये 
आज खग और मृग,
हो रहे हैं सुमन जैसे 
कर्म के फल भी सुशोभित,
कल्लोल करते राग गुंजन 
कर रहे हैं प्राण पोषित,
आज मुझसे मांगती
वक़्त मेरी हर एक ख्वाहिश,

वृक्ष की हर डालियों 
चाहतीं हैं और पुष्पित!


Thursday, 4 July 2024

कहानी

तुम्हारी एक कहानी 
मेरी एक कहानी,
तुम्हारी थोड़ी कच्ची 
मेरी थोड़ी पक्की,

मेरी चली बनारस
तुम्हारी मुंगेर वाली, 
मेरी लिखी किताबें 
तुम्हारी कही जुबानी,
सुनी- सुनाई बात 
जुड़ी हुई कुछ बाद,
कुछ भाव लगातार सींचे 
कुछ बने और भावार्थ,

उसकी एक कहानी 
जिससे मिले नहीं,
उसकी एक कहानी 
जिसको सुना नहीं,
कुछ लोगों की बुद्धि 
कुछ सबरी का विश्वास,
कुछ दिल के घर मे बैठे 
कुछ बिकते घाटों-घाट,

यही बनी हुई कहानी 
यह बुनी हुई कहानी,
नए डाल पर आए 
ये सदियों पुरानी बात,
सबके रंग चुराती 
यह सबके रूह का पानी!


Friday, 28 June 2024

बातों का मतलब

इन बातों का 
कुछ मतलब नहीं है,
बेमानी हैं सब 
कोई तर्कसंगत नहीं हैं,
तुमको लगा की 
हमारी खामोशी तुम हो,
तुम्हारे होने से पर
हमें कोई उल्फत नहीं है,

यह दूरी, ये धूरि 
ये समय के थपेड़े,
ये सरगम के टुकड़े 
जो किस्मत ने छेड़े,
ये लंबी सी चुप्पी 
विचारों के रेले,
ये मेरे फ़ैसले हैं
कोई उलझन नहीं है!

Monday, 24 June 2024

आधार

कुछ घूमने फिरने के 
थोड़ा बाद 
आ बैठूंगा उस डाल 
जहां पर मेरा है आधार,
आधार मेरा राम 
घर द्वार मेरे राम,
आसमान बहुत विस्तार 
पर पंखों में श्री राम!

कुछ प्रश्न

मेरे कुछ प्रश्न 
जिनका उत्तर 
तुमको देना नहीं है,
मुझको जानना नहीं है,

मैं पूछ लेता हूं 
तुम बता देती,
मैं अपनी कुछ 
हसरतें जता देता हूं,
तुम अपनी नई हद 
बना लेती हो,

मेरे मन की बात 
कुछ छोटे उल्लास 
मैं उन प्रश्नों में 
छुपा देता हूं,
मैं वही फिर से प्रश्न 
दुहरा देता हूं!

लोग

लोग बनते हैं 
कुछ रह रहकर,
कुछ सुनकर 
कुछ कहकर,
कुछ कीमतों के 
बोझ में दबे हुए,
कुछ सत्य से 
दूर तक चले हुए,

कभी खाकर 
एक रोटी,
कभी भूखे 
पेट सोकर,
कभी खुद पर 
जोर से हँसकर,
कभी किसी से 
छुपकर रोकर,
साधारण से 
और कमतर,
कभी खुद 
से भी बेहतर
लोग बनते हैं,

एक जीवन 
के ऊपर,
कोई जरी लपेटकर 
चमक और मुस्कान 
अपने गले लगाकर 
लोग बनते हैं!

Tuesday, 18 June 2024

देखी देखा पुण्य

तुमको चाहूँ तो पहले क्या 
क्या बाँध लूँ तुमको,
तुमको छुपा लूँ औरों से 
कुछ साध लूँ तुमको,
करने नहीं दूँ वो तुम्हें 
जो है तुम्हारा ध्येय,
औरों को पाने भी नहीं दूँ 
तनिक तुम्हारा स्नेह,

तुम पर वही कविता लिखूँ 
जिसके बोल मेरे घर के हों,
सीमा में तुमको ऐसा रखूं 
कल्पना बिना पर के हों,

तुम रहो मेरी परछाई 
मेरी अंधकार की पिपासा,
खो दो वह वजूद जो की 
जिसको जीवन में बहुत साधा,

तुम्हारी आंख में काजल को 
लिखूँ ऑफिस की स्याही से,
जुल्फों के अँधेरों को जकड़ लूँ 
किसी क्लिप की मेहरबानी से,

मैं पहले देख लूँ रस्ते 
और सहूलियत,
पहले वाकिफ़ करूँ खुद को
जहां की असलियत,
मैं बाजार को समझूँ 
फिर करूंगा इश्क,
देखी देखा पाप 
देखी देखा पुण्य!

Thursday, 13 June 2024

कातिल

खुद को कहती हो क़ातिल 
ये हुआ क्या है?
ये क्या आग है 
ये धुआं क्या है?
ये रोशनी है अँधेरों के 
कमरों में क्यूँ?
दम घोंट के दफन 
आज कब्रों में क्यूँ?

मंज़िल की थी ख्वाहिश 
दहलीज के बाहर,
अब टूटी चौखटों का
गुनाह क्या है?
अयोध्या को अपना 
समझने कब लगे?
कैकयी की चाल और 
कुटिल मंथरा क्या है?
जन्म-भूमि तुम्हारी 
द्वारका तक है विस्तृत,
गोकुल का बचपन 
वृंदावन से जग तृप्त,
कुरुक्षेत्र की सीमा में 
कोई मथुरा क्या है?

बैठना तक नहीं 
स्टेशन पर गँवारा,
बहुतों से मिली तुम 
सभी को नकारा,
स्वाभिमान की देवी 
जब तिरंगा बनी है,
सुबह-शाम सलामी 
हर दिशा कर रही है,
धनंजय को स्वजनों की 
चिंता क्या है?
कातिल कह रहे हो 
कुरुक्षेत्र में धनुर्धर,
गांडीव उठाने में 
वेदना क्या है?

समर का समय 
जब सभी को पता है,
आशा तुम्हीं से 
तुम्हीं से कथा है,
जब पंखों को चुराने 
गई थी शिखर तक 
उड़ी आसमा में 
गिद्धों से ऊपर,
घोंसला से मुहब्बत 
बेइंतिहा क्या है?
पिंजरों में फुरकना 
बेवजह क्या है?
तूफानों से पंजे 
लड़ाने थे आए,
गोल-गोल यहीं
घूमना क्या क्या है?


 

Tuesday, 11 June 2024

मर्यादा

थोड़ी हंसी तुम्हारी ले लूँ 
थोड़ा ले लूँ तुमसे रंग,
मैं तुमसे करके बात 
कुछ उठा लूँ लुप्त का संग,

कुछ दांत तुम्हारे 
सुन्दर कहकर 
आँखों से नूर चुरा लूँ,
मैं अपना तुमको 
भेद बताकर 
हमराज थोड़ा बना लूँ,

मैं आधे-अधूरे वादे तुमसे 
पूरे करने को बोलूँ,
मैं अपने घर मे तुम्हें बुला लूँ 
कुछ ना जाने की बात कहूं,
मैं कैसे तुमको दामन में 
अपने दामन सा कर लूं?

Monday, 10 June 2024

ହୃଦୟ

କର୍ଣ୍ଣ ଶୁଣିବା ପାଇଁ ଗୀତ ଗାଇବ
ମୁଁ ଅଙ୍କ ରଖିବା ପାଇଁ 
ଦେବ ସୁନ୍ଦର ଫୁଲ,
ନେତ୍ର ଅଞ୍ଜନା ପାଇଁ 
ମେଘ କୁ ଆଣିବା,
ତାହାର ମହିମା କହିବା ପାଇଁ 
ପର୍ବତ କୁ ଚାଡ଼ିବା,

ମୁଁ ଖୁଶି ରଖିବା ପାଇଁ 
ତାହାର ମୁଖ ର ଉପରେ,
କ୍ଷିତିଯେ ରେ ବି ବଡ 
ମୁଁ ଖିଚିବ ଲହରେ,

ମନ ରଖିବା ହେତୁ 
ତା'ର ସବୁ ରେ ପ୍ରଥମ,
ମୋଦୀଙ୍କୁ ଡାକିବା
ମୁଁ ବନାଇବ ମିନିଷ୍ଟର,

ଯେମିତି ବି ହବ
ମୁଁ ସବୁ ଚେଷ୍ଟା କରିବ,
ତାହାର ହୃଦଯ କୁ
ମୁଁ ହର୍ଷ ରେ ଭରିବ!

दाम

चुकाते हैं अपना दाम 
सब अपने दामन के दाग,
मिटाते आँसुओं से भिगोकर 
अपने आँगन लगाते हैं 
अपने कांटों से पुष्पित डाल,

अपने जुबान की
कभी आदतों की खुद,
वो बुझाते हैं 
खुद के लगाए आग,
गाते हैं अपने राग 
और पाते हैं 
अपने किए का भाग,

जब मोल लेते हैं 
किसी की जिंदगी से रंज 
और बदले में उनको सुनाते तंज
फिर खुद ख़लिश सूने महल में 
रह कर पूरे सन्न,
खुद ही भरते नीर 
और खुद जुटाते अन्न,
यह और के नहीं काम 
हमारे कर्म के ही दाम!

Sunday, 2 June 2024

जनरल में लड़कियां

समान्य डिब्बे में 
कैसे बैठेगी और 
यात्रा करेंगी 
कोई बेटी, 
किसी की साथी?

समान्य है 
तो ढेर सारे 
लोग जाने वाले,
सामान्य हैं 
कंधों पर बहुत 
बोझ ढोने वाले,

किसी और के 
शहर मे
खाना बनाने वाले,
मनमौजी काम करने 
और घर को जाने वाले,
ज़मीन पर सोने वाले 
और मुस्कराने वाले,

बेटियाँ तो पहले से 
घर की बनी चिराग,
जल कर करती रोशन 
चूल्हे की भूख की आग,
लड़कियों का जीवन 
घर मे ही सामान्य!

नजदीक

कितना नजदीक 
हूं घर के मैं,
कितनी समय की 
सीमा है,

कितनी पहले प्लानिंग 
कब होगा निकलना,
कौन हमारा साथी 
कैसी होगी राह?

किसकी कितनी सेवा 
किससे कितना वेतन,
कौन है केंद्र, कौन-सा राज्य 
किसकी भाषा 
कितना लेन- देन,

किसके आदर्श
किसकी मिसाल,
कौन से तरीकें
कितने दोस्त 
कौन पराया,

ज़िम्मेवारी किसकी 
किसका कितना संकल्प,
घर से आने जाने का 
कौन-सा सहज विकल्प?

Friday, 31 May 2024

केंद्र

केंद्र में हैं राम 
केंद्र मे सत्संग,
केंद्र से हटकर 
है जरा विध्वंस,

केंद्र के सब ओर 
केंद्र के हैं छोर,
केंद्र से अर्जित 
उर्मियों के डोर,

जब केंद्र परिभाषित 
और आनंदित,
मध्य मार्ग सुगंधित 
सत्य और पुलकित!

Wednesday, 29 May 2024

सांत्वना

तुम कह देती तो 
मैं मान लेता,
मैं दिन के उजालों में 
आँख बंद कर सो लेता 
मैं रात के अंधेरों में 
दीपक जला लेता,

दूरी कितनी भी हो 
मैं पास ही समझता,
मैं अपनी बातों से 
हार मान लेता,
तुम घूमने जाती 
मीना बाजार, चाँदनी चौक 
मैं अपने हाथ 
मुट्ठीयों में बाँध लेता,

यह कैसी है तलब की 
अपनी बात तुमसे सुन लूँ,
कैसी है माया की 
कुछ ज़ज्बात तुमसे कह दूँ,
मैं खिड़कियों से 
रास्तों पर झाँक लेता,
तुम कह देती तो 
मैं मान लेता!

समस्या

जान चुका हूं समस्या 
अब है चलना किधर को?
यह हमारा है चुनाव 
पांव रखना है किधर को?

रस्सियाँ हैं, रोशनी है 
आधार है, सेतु भी है,
कम समय में परिणाम भी 
कर्म का कुछ हेतु भी है,

बस उठाकर कदम मुझको 
चलना है उस ओर,
अंधकारमय है निशा पर 
सुबह है चित्चोर,

राम का अवलंब
राम का ही शोर,
राम की माया, 
राम का ही तौर,
राम की बंशी 
राम का ही ठौर!


Monday, 27 May 2024

तालमेल

सहयोग कर साथ में 
पाँच बैठते,
आने वाले स्टेशन पर 
साथ उतरते,

हाल पूछते, चाल पूछते,
काम पूछते और 
धाम पूछते,
ये कर रहे मज़ाक 
वो विधान पूछते,

कोई गेट पर खड़े- खड़े
कोई बीच में पड़े- पड़े,
कोई लटक रहा ऊपर 
कोई बैठकर यत्र-तत्र,
वो देश मे बना नया 
प्रधान पूछते,


वो नापते हैं खेत 
वो जानते हैं फुट
वो राजमिस्त्री हैं, 
वो जानते हैं क्षेत्र 
वो जानते हैं रूट 
वो ज्ञान- शास्त्री है,
 वो जाने- आने, बैठने का 
रिवाज़ जानते हैं,

ये जनरल डिब्बे के यात्री 
खुद का मुकाम जानते हैं,
इन शीटों पर फैलते हैं 
खुद का मकान जानते हैं,
ये खुदा जानते हैं,
श्री राम जानते हैं!

रह गया

एक वो नौकरी रह गई 
एक वो डिग्री रह गई,
कुछ नव बसंत रह गए 
कुछ सुबह की 
रोशनी रह गई,

तुमसे आखिरी बार 
मिलना कहाँ हुआ,
तुमसे कुछ बात 
अधूरी रह गई,

वहां जाना रह गया 
वहाँ से गुजरना रह गया,
वो सत्ता रह गई 
वो ठहरना रह गया,

वो मित्र रह गए 
वो माँ-बाप रह गए,
कुछ याद रह गई 
कुछ राम रह गए,

कुछ जाप भी किया 
कोई मनका छुट गया,
कुछ बेमन का किया 
कुछ मन का रह गया!

Friday, 24 May 2024

Filth

Lying on the floor 
with water and dust, 
on the verge of collapse 
but survival is must, 

 skin turned black 
in a layer of rust, 
eyes peeking through 
an overnight crust, 

 a filth of life 
 and filth of ignorance, 
a helplessness of strays 
and human convergence, 

filth of unknown 
and a lost identity, 
filth of vastness 
and limited credibility, 

 pain of borders 
and pain of food, 
need of resources 
and what one should, 

 filth is everywhere 
and filth is around, 
filth fills the void 
filth is profound.

Monday, 20 May 2024

संबाद

कुछ थोड़ा- सी बात 
कुछ टिप्पणी और ऐतराज़,
मुर्ख बन करें सम्मेलन 
मुर्ख से मिले हम चेतन,

दीवार पर चिपकी हुई 
हमारी आपकी बात,
दीवार पर लटकाते 
हम तस्वीरों के ज़ज्बात!

संबाद

कुछ थोड़ा- सी बात 
कुछ टिप्पणी और ऐतराज़,
मुर्ख बन करें सम्मेलन 
मुर्ख से मिले हम चेतन,

दीवार पर चिपकी हुई 
हमारी आपकी बात,
दीवार पर लटकाते 
हम तस्वीरों के ज़ज्बात!

बसेरा

दूर उड़ गए 
अपने बसेरे से,
दूर हैं कहीं 
अपने शहर से,

आसमान से देखते 
बातों से टटोलते,
टीटीहरी के जैसे 
हम बोलते सुनते,

आँसू का सैलाब है 
कनाडा की है ठंड,
एहसास रेशमी है 
अपनों का संग,

हम पढ़ चुके दुनिया के 
तरीके और रिवाज़,
अब कैसे न करें
सेवा जाकर सात समुंदर पार,

दूर हैं तो आना
लेकर थोड़ा दाना,
आकर अपनी मिट्टी
लगाना दूर के बीज़!


Sunday, 19 May 2024

ख़लल

बार-बार झाँक 
बार-बार बात,
दूर देश से तार 
दूर देश का घर,

कुछ समय और 
कुछ क्षेत्र 
कुछ करतार और 
कुछ मित्र,

कोई बना हुआ 
कोई कोशिश में,
कोई कुम्भ हो रहा 
वर्षों में,

बहुत सारे प्रयास 
बहुत नहीं स्वीकार,
यह ज़माने की पुकार 
यह जीवन का मंझधार,

हाथ मिला 
और गले मिले,
यह ख़लल हुआ 
जो यहाँ मिले!

Wednesday, 15 May 2024

सुबह की धूल

यह धूल नहीं है 
भूल सुबह की,
यह राम-रज कण
है कुम्हली-सी,

चादर की एक 
परत पड़ी-सी,
जिसके बाहर
धुप खिली-सी,

यह धूल उड़ी-सी
कुछ राह चली-सी,
पगडंडी इक 
बनी हुई-सी,

नही ऑंख पर
परत पड़ी-सी,
यह आने वाली 
कली खिली-सी!


Saturday, 11 May 2024

छवि

बड़े से मनुष्य
बड़ा सा विचार,
बड़ा सा प्रभाव 
बड़ा हुआ प्रणाम,

वृत्त-सी पहचान
बिंदु-बिंदु मिलान,
हँसी और मुस्कान 
कर-बंध निवेदन,

आती-जाती एक छवि
लुका-छुपी शशि-रवि!

खेल

खेलते हैं खेल 
हम देखते हैं खेल,
खेल में बदल गया 
खेलने का खेल,

खेल का प्रकार 
खेल की दरकार,
खेल में रमन हुआ 
खेल से उद्धार,

खेल से संन्यास 
खेल में प्रवास,
खेल से ही चेतना 
खेल से विन्यास,

खेल ही जीवन 
खेल समाधान!

Thursday, 2 May 2024

दो राहें

तुम चले सड़क पर सीधा 
हम धरे एक पगडंडी,
तुम्हारे कदम सजे से 
हम बढ़े कूदते ठौर,

तुमने थामी हवा की टहनियां 
हम बैठे डिब्बे में संग,
तुम संगीत सुनाते 
हम खेलते होली संग,

तुम्हारी मेरी अलग राह 
तुम मेरी अलग चाह!

Sunday, 28 April 2024

सुबह की नींद

एक और नींद 
एक और निवाला,
एक और चुस्की 
एक और करवट,
एक थोड़ी झंझट 
एक और जुगाड़,
एक आलस्य भरी अंगड़ाई
एक छोटी-सी चतुराई,
एक मोहल्ले का त्यौहार
एक हाथ पकड़े प्यार,
एक समस्या एक समाधान,
एक पंचायत, एक प्रधान
एक घर, एक कर्म
एक नाम, एक धर्म!


Tuesday, 9 April 2024

नवरात्र

भावनाओं की कलश 
हँसी की श्रोत,
अहम को घोल लेती 
तुम शीतल जल,

तुम रंगहीन निष्पाप 
मेरी घुला विचार,
मेरे सपनों के चित्रपट 
तुमसे बनते नीलकंठ,

अलग करती अनुराग 
जो सर्व-सुलभ अनुराग,
तुम्हारी बातों की शुरुआत 
मेरे लिए ही राम!

Saturday, 6 April 2024

चाँद

बदला बादल 
रंग और स्वरूप,
नव-दर्पण
नया सहर,
नया तेवर 
नया कलेवर,
नवरात्र का इन्द्रधनुष 
समर्पण का भाव,
पुराने आँसू 
नयी मुस्कान,
ईद-सी ख़ुशी 
पूर्णिमा का चांद!

पाना

थोड़ा महत्व
थोड़ा समय,
थोड़ी बुद्धि 
थोड़ी वृद्धि,
थोड़ा ज्ञान
थोड़ा मान,
एक कुर्सी 
एक मेज,
एक कलम 
एक काग़ज़,
एक पहिया 
एक अर्दली,
एक रास्ता 
एक साथी,
मुट्ठी भर सन्तुष्टि!

Thursday, 4 April 2024

दृश्यता

पहले एक दृश्य
फिर एक छोटा शब्द,
फिर इतिहास की बात 
फिर विचारों का मौन,
फिर सब विराम 
एकांत और लिप्सा,
और एक गलती,
और एक बंधन!

Tuesday, 2 April 2024

क्या चाहिए आपको?

एक पोटली में भर कर 
कोई खुशियाँ आपकी दे दे,
मैं हर सुबह आपके 
दरवाज़े पर रख आऊँ,
कोई आपकी उल्लास मुझे 
गुब्बारों में भर के दे दे,
मैं हर असमान मे
अपने हाथों से उड़ाऊ,
कोई एक चम्मच आपका 
ज्ञान मुझे पहुँचा दे,
मैं हर रात अपनी 
आँखों में लगा सोऊं,
कोई आपकी गरिमा
एक मुकुट में जड़ के दे दे,
मै भारत माँ के सर पर
शान से सजाऊं,
कोई दे दे आपका मुझको
उन्मुक्त-सा व्यवहार,
मैं हर नदी-तालाब मे
थोड़ा-सा घोल आऊं,
कोई आपकी सरलता
मेरी हथेली मे थोड़ी रख दे,
मै गंगा माँ के हर घाट पर
आँचल जैसा बिछाऊं,
कोई जुगाड़ से चुरा ले
आप जैसा तेज,
मैं हर किरण में नभ की
मालिश कर चमकाऊं,
मैं क्या कहूं खुदा से की
कोई आप जैसा फिर से लाऊं?

Sunday, 24 March 2024

संगम

कुछ उन्होंने मान ली 
कुछ मैंने बातें कही नहीं,
कुछ मेरी नर्म जुबां थी 
कुछ उनकी मंद मुस्कान थी,

कुछ उनके घर का आँगन था 
कुछ मेरी द्वार पर पूजा थी,
कुछ मेरे खुदा मुनासिब थे 
कुछ उनके घर की दिवाली थी,

कुछ कदम चले थे वो घर से 
कुछ मैंने फूल बिछाये थे,
कुछ हाथ हमारे पकड़े वो 
कुछ हमने नज़रे झुका ली थी,

हम मत से भले अलग ही थे 
पर दोनों बहुत अनोखे थे,
कुछ उनके दिल की ख्वाहिशें थी 
कुछ मेरे मन के धोखे थे,

कुछ थोड़े गंगाजल वो थे 
कुछ हम भी जमुना के पानी,
संगम भी हुआ प्रयाग में 
जब मिलीं सरस्वती-सी ज्ञानी!

Friday, 22 March 2024

चादर

बिछाकर चांदनी चांद की 
ओढ़कर सितारों का दुकूल,
लगाकर झरोखे की दीवारें 
उठाकर नज़र पर आसमान,

पसारा हाथ, खुली मुट्ठी 
खिली शांति की बेला,
हमारे साथ खेलती हैं 
मिचौली दुग्ध-मेखला,

घूमता है देखकर 
खिलौनों का बड़ा नक्षत्र,
उँगलियों मिला रही बिंदु 
तारों से भरा कैनवस,

मैं मुस्कुराता हूँ 
मिला बचपन का बिछड़ा यार,
मंदिर की पगडण्डी से
चलता साथ आया चांद,

खुली किताब-सी फैली
मुझसे कह रही ईक राग,
कविता कोई लिखती
मेरी आँखों मे काजल रात!

भय

मोह से जनित 
यह भय है तुम्हारा,
भय से द्रवित 
यह मैं है हमारा,

मैं से है प्रश्न और 
अधिकार की है ख्वाहिश,
ख्वाहिशों से खिंचा 
इन्तेज़ार है हमारा,

इन्तेज़ार से प्रभावित 
यह मौन हुआ व्रत,
व्रत-खण्डित हुआ मन 
तलबगार है तुम्हारा,

तलब की मिटी नहीं 
यह प्यास अनवरत है,
पर मोहिनी बना हूं 
फिर भी गुनाहगार हूं तुम्हारा!

मज़ाक

मज़ाक बना रहे हैं 
मज़ाक उड़ा रहे हैं,
आप मेरे गुमान का 
सामान बना रहे हैं,

यह कैसी है बात 
यह कैसा है संबाद,
जिसे भगवान कहते हैं 
उसे शैतान बता रहे हैं?

मजाक उड़ाने की नहीं 
हमारी है दरकार,
हम करते हैं विनोद 
आप हैं मेरे सर्कार,

हम कहाँ महफ़िलों में 
कोई नाम ले रहे हैं?
कहां आपको कुछ 
सरेआम कह रहे हैं?

हम तो बस आपकी 
एक मुस्कान चाहते हैं,
कुछ तरल हो माहौल 
एक विराम चाहते हैं,
आपके डूबते 
चश्मे- नूर के लिए,
एक सूरज नया 
नया आसमान चाहते हैं!



Saturday, 16 March 2024

बच्चा

तुमने हाथ से उठाया 
मुँह से चबाया,
गले से निगल कर 
आज खाना खाया,
यह कैसा मुझे दिखाया 
तुमने बच्चों वाला रूप?

सफेद झूठ

मुस्कान को तुम्हारी 
बोल दिए कुछ झूठ,
रो न देना तुम 
हम रो बैठे झूठ-मूठ,

तुम भूल जाओ वो याद 
हमने बात बनाई कुछ,
तुम रहो न फ़िक्र से त्रस्त 
हमने बात घुमा दी कुछ,

समाज न समझे कुछ 
हम बन जाते कुछ मुर्ख,
तुम खो न दो कुछ वक्त 
हम धारण कर बैठे मौन,

पर तुमने परख जुटा 
और पकड़ लिया ही 
सफ़ेद धवल झूठ!

नायाब

तुम हो की 
नायाब हो,
पूछती हो वो
जो सब नहीं सोचते,
चाहती उसको
जो बंधन से है परे,

तुम्हे है ईल्म भी
इस बात का,
है आजाद होना क्या?

तुम की वो सारे काम 
जिसमें है दफन 
इंसानियत के सारे राज,
तुम्हारी है यही हसरत 
की सब खुश रहें
हर वक्त,
तुम लड़ चुकी हो 
खुदा से कर के 
दो-दो हाथ,

तुम बुद्ध की हो प्रश्न 
तुम्हें महावीर का संकल्प,
माया के आईने में 
तुम रूप की विकल्प,

तुम्हारे लिए रची 
विज्ञान ने चौदहवी आयाम,
तुम हो बहुत नायाब!

Monday, 11 March 2024

स से सुर

स से सोमवार
स से सुर भी,
स से तुम सरकार
स से हो सत्कार,
सात तुम्हारे साथ 
नाम के 'स' अक्षर के सत्य,
सात समुद्र का पानी 
सात समुद्र की गहराई,
सात द्वीप की विस्तृत विशालता 
सप्तर्षियों का ज्ञान 
सत्संगति, सतरंगी वाणी 
सात आदर्श संकल्प,
स्वदेश, स्वाभिमान,
सामर्थ्य, स्वास्थ्य,
स्वावलंबन
सत्य और संघर्ष,
स से सत्संग की वाणी 
स से सरस्वती 
तुम ही स्वर और सुरभि
स से सूरज 
स से तुम सिया जी 
तुम ही महारानी
सात रूप की शारदा 
तुम सात रंग की धानी!




Sunday, 10 March 2024

उजाड़


चाँद नहीं, चाँदनी भी नहीं 
गलियारों में वहाँ रागिनी भी नहीं,
सितारें नहीं, बदली भी नहीं 
उन अँधेरों मे अब रात भी 
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

सुर नहीं, साज भी नहीं 
बगीचों में बुलाती, आवाज भी नहीं,
दरवाज़ों पर पहचानी 
शख्सियत भी नहीं,
झुंड दोस्तों के,
हरकतें भी नहीं,
चुहलबाजी नहीं 
ऐतराज़ी नहीं,
शाम को आना कहां
इंतज़ार भी कहां,
ख़ामोशी मे देनी है आवाज़ भी
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

पराठे नहीं, 
सब्जियाँ भी नहीं 
अचार का विचार,
गर्म खाना नहीं 
छत पर जाना नहीं,
बाल्कनी कुछ नहीं,
अखबारों के पन्ने 
उड़े हर तरफ,
उठाना नहीं,
फूल खिलते नहीं 
तोड़ना भी नहीं,
खिड़कियों से कभी 
झाँकना भी नहीं,
फ़िल्में भी नहीं 
साधना भी नहीं,
टोटके भी नहीं 
टोंकना भी नहीं,
किचन भी नही
रोटियाँ भी नहीं,
तोड़ने के लिए
ऊंगलियों भी नहीं,
निवाले से बड़ी भूख भी
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं

तथ्य नहीं
फिर प्रमाण भी नहीं,
तुम नहीं तो
जरूरत भी नहीं 
विकार है 
विषाद है,
कुछ है तो है 
कुछ और की 
दरकार है,
वक्त है, नज़र है 
सरकार ही नहीं,
हमार- तुम्हार नहीं,
आरज़ू नहीं, इन्तेज़ार भी नहीं 
विरान के चौमासे मे उजाड़ भी 
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...