Thursday, 28 December 2023

जुबां

बिना चोट खाए 
दिल को कहरते देखा,
मैंने आज उर्दू ज़बां को 
अंग्रेज़ी मे कहते देखा,

लाल मिर्च की चुटकी 
उनका तीखा तेवर,
उनकी प्यारी मुस्कान
जैसे देसी घि का घेवर,

खट्टे नींबू के रस 
जैसी उनकी बातें,
मीठे आम का शर्बत 
उल- जलूल हरकतें,

जेठ की गर्मी जैसी 
उनकी अकड़ी चाल,
चुप होकर वो बैठी 
तो सुर्ख कमल-सी लाल,

उनका आलस जैसे 
ठंडे मौसम का कुहरा,
उनकी अंगड़ाई जैसे 
इन्द्रधनुष लहराया,

सुबह की किरणों को 
गंगा उतरते देखा,
मछलियों को मैंने 
हवा मे संवरते देखा!

उनकी आगे की सीट 
जैसे शालीमार,
उनकी टक्कर ढीठ 
जैसे एक फुंकार,

उनका हेय धिक्कार 
पत्थर की लकीर,
उनका मेल-मिलाप 
माया भेष फ़कीर,

उनकी चोर नज़र
जैसे सीपी के मोती,
उनकी उड़ती ख़बर 
जैसे हाथों मे ज्योति,

उनका प्यार का चस्का 
जैसे चाय का शौक,
महफ़िल मे आना-जाना 
जैसे फ़िल्मों का दौर,

आसमाँ को मैंने 
कुछ छोटा लगते देखा,
उनकी मुट्ठी में मैंने 
आकाश सिमटते देखा!






Tuesday, 26 December 2023

नाम

नाम दे दूँ इसे 
तुम्हारे न होने का,
इसे कह दूँ 
फकीरी के 
सुध खोने का,
इसे कहूँ 
किरदारों के 
हो जाने की 
खुदमुख्तार,
या साथ किसी के 
ना बैठने की,

इसे कहूँ की 
आवाज़ किसी की 
सुनना चाहता हूं,
दरकार किसी 
व्यस्तता की जो 
करना चाहता हूं,
ये झंझावात 
रक्त-प्रपात 
श्वास-चक्रावात,
मौसम का मिजाज़ 
या ठंड की बरसात,

असंतुलन का है 
नाम क्या?
विकार का 
उद्गम क्या
विस्तार क्या?
राम विमुख 
जीवन का 
पैगाम और 
परिणाम क्या?

Sunday, 24 December 2023

मिट्टी का पुतला

फिर वही 
मिट्टी का बुत, 
जोड़कर रख्खा 
ऊपर एक पर एक,
ढो- ढो कर ले जाता 
यह जान को टेक,

यह कर्ता कोई प्रण 
फिर होता विफल,
आज का कल 
और फिर कल,
चेतना पर बोझ 
यह अन्तर पर स्थूल!

Saturday, 23 December 2023

स्वरूप

जैसा अन्न, जैसी संगत 
जैसे चित्र, जैसे फिल्म,
जैसा इतिहास,जैसी बात 
जैसा समय, जैसा विन्यास, 

ढल जाता शरीर, 
उस रूप मे अनायास,
रहता घुला-मिला 
रहता रमा हुआ,
और तथ्य लगते असत्य
यह मिट्टी के मूल तत्व,

चाहता लेना वह 
और कोई स्वरूप,
करता हुआ तुलना 
बातों में मशगूल,
राम-सेतु से करता
लंका और अयोध्या 
अन्तर मे विस्तार,
होता रामाकार और 
फिर भर लेता विकार,

स्वरूप होता विखण्डित 
राम के महीन सूत्र पर,
बार-बार उद्देश्य-रहित 
यह सत्य, राम रहित!

Tuesday, 19 December 2023

वो कहाँ हैं?

वो अब भी यहीं हैं 
मेरे ख़यालों मे
वैसे ही मौजूद,
जैसे उनसे 
मुलाक़ात हुयी थी,
जो यादे उनसे जुड़ी थी 
उन्हें ही सजाते हैं,

मेरे हिसाब से खाते हैं 
मेरे हिसाब से उठते हैं,
आते-जाते हैं, रह जाते हैं,
वो मेरे ही किसी 
जीवन-पड़ाव को 
हूबहू अभिनीत करते 
मेरे जैसा बन 
ख़यालों में आते हैं,

मैं उन्हीं के गुलदस्ते से 
सजा हुआ एक शख्स हूं,
मैं यहीं हूं, वो भी!

Sunday, 17 December 2023

अधिकार

तुम्हारे व्याभिचार से 
मेरा कुछ चला गया,
बात नहीं की तुमने 
मेरा दुख बढ़ा हुआ,
कैसी है तुम्हारी बात 
कैसी होगी हँसी,
मिलती होगी कैसे 
कैसे मचलती होगी,
यह सोचकर मन मेरा 
जाता और भँवर,
खोता-सा मेरा 
व्याभिचार का अधिकार!

काम-कर्पूर

ऊर्जा की धीमी 
उभरती सुगंध को,
ज्योति की 
छोटी-सी लौ को,
रिसते हुए जल-अमृत
विभर को,
काम करना 
चाहता राख,
कुछ करके ना-पाक,
जलकर कुछ क्षण 
क्षणिक सुख से मजबूर 
जलता 'छूर्र- छुर्र'
काम-कर्पूर !

Friday, 15 December 2023

समाज की बंदिशें

समाज की ये बंदिशें
मुझे मंजूर नहीं,
ये झूठी दुनिया के फैसले 
मुझे ऐसे कबूल नहीं,

ये तौर-तरीकों के ज़िल्द 
ये सलीको की सिलाई,
ये अदब की दफ्तियाँ 
ये मोटे अक्षरों की लिखाई,
ये कानून की किताबें 
मुझे कबूल नहीं!

ये नर की पतलून 
ये देवियों की साड़ी,
ये हिजाब के झरोखे 
स्कर्ट की लंबाई,
ये बालों के फीते 
ये चोटियों की गछाई,
ये पर्दे और नुमाइश 
मुझे मंजूर नहीं!

ये रातों के अंधेरे 
ये दिन के उजाले,
ये दोपहर की धूप 
ये शाम की मुँहारे,
ये तारों का टिमटिमाना 
ये चांद का घट जाना,
किसी और की रोशनी है 
मेरी आँखों का नूर नहीं!

ये तबादलों के नियम 
ये घर से दूरी,
ये कहने की भाषा 
किसी और की बोली,
ये ऑडिट के प्रश्न 
ये बिल भरने के दिन,
ये भाड़े के रिक्शे 
ये सीनियर के जिन,
किसी और की तमन्ना हैं 
मेरे गुल्लर के फूल नहीं!

देशी

रात को दिन और 
दिन को दोपहर,
घिसी-पुरानी बात 
बहुत तुम सोची 
कहती हो,
अँग्रेजी को छोड़ 
आजकल देशी पीती हो,

राँची को कोची कहती हो,
कोची मे चुप रहती हो,
सभी के साथ पेग लगाती 
पर कहने से डरती हो,
कुछ तो ढंग से बोला करती 
कुछ और ढंग से जीती हो,
रूम मे बैठ के मैडम जी 
आजकल देशी पीती हो?

दो चेहरे

एक दिखाने का 
एक चलाने का,
एक खाने का 
एक मुस्कराने का 
एक गुस्से वाला 
एक शांत भाव का,
एक ऑफिस वाला 
एक घर वाला,
एक गर्लफ्रेंड वाला 
एक दोस्तों वाला,
एक सहकर्मी वाला 
एक समाज का,
एक मांगने वाला 
एक अधिकार वाला,
एक सोचने वाला 
एक खोजने वाला,
एक काम का 
एक निष्काम वाला,
एक राम का 
दूसरा भी राम का!

अगला डिब्बा

अगले डिब्बे मे
सीट खाली है,
उसमे सब सभ्य हैं 
और शालीनता से बैठे हैं
कोई धक्का-मुक्की नहीं है,
भीड़ कम है 
और सोने की जगह है,
शौचालय साफ़ हैं 
और खिड़कियाँ खुली हैं,
पंखे चलते हैं और 
बत्तियां बन्द होती हैं,
पानी है और खाना है,
अगले डिब्बे में कोई नहीं गया है,
मैं ही जाऊँगा पहली बार 
ऐसा मेरा और सबका मानना है!

Sunday, 10 December 2023

मज़ाक

उड़ा मज़ाक इस मिट्टी का 
छोटा दिमाग इस मिट्टी का,
नहीं तौर-तरिके मिट्टी के 
है अद्भुत किस्से मिट्टी के,

अब नाम हमारे मिट्टी के 
सब काम-काज हैं मिट्टी के,
ये रूप-रंज हैं मिट्टी के 
ये साज- श्रृंगार सब मिट्टी के,

ये बुढ़े-बच्चे मिट्टी के 
ये बुत बैठे हैं मिट्टी के,
अब चक्की-चक्के मिट्टी के 
ये चलती गाड़ी मिट्टी की,

सब हँसने वाले मिट्टी के
ताली, थिरकन मिट्टी की,
ये दोस्त यार सब मिट्टी के 
ये सारे चक्कर मिट्टी के!

Friday, 8 December 2023

जिद

तुम्हारी जिद है 
बात नहीं करने की,
बात नहीं सुनने की 
बात मे आने की नहीं 
और बात सुनाने की नहीं,

तुम्हारी जिद है 
नाक पर चढ़ कर बैठी,
हुस्न की अंगार बनी 
आंखे फैलाकर ऐंटी,
एक चमक-सी नूर की 
होंठ पर रस-तरल सी,

मेरी तलब की चुभन-सी 
पूनम की शीतल-सी 
नमक-सी, जलन-सी 
मुझे खिंचती कसक-सी!

सवार लूँ

मैं अपनी वाणी सुधार लूँ 
तुम अपनी जिद भुला दो,
मैं अपनी आदतें बदल लूँ 
तुम अपनी सोहबत बदल दो,

मैं वैसा ही देख सकूं 
जैसी तुम हो,
और तुम स्वीकार कर लो 
जैसा मैं हूँ,
कुछ मैं सवर जाऊँ 
तुम्हारे लिए,
कुछ और बदल जाऊँगा 
तुम्हारे साथ होने पर!

Monday, 4 December 2023

अकेले

तुम अकेले कैसे रहती हो 
कैसे दरवाजों के पीछे 
धूप से छुपकर सोती हो,

कैसे मिलती नहीं किसी से 
किसी को जानती नहीं,
फोन पर रिश्ते बनाती 
सुख-दुख बांटती और 
रूठा करती, मनाती,

कभी फ़िल्में नहीं देखती 
नहीं घूमने जाती,
बैग को कंधों पर 
खुद उठाकर घूमती,
तुम क्यूँ साथ किसी का 
क्यूँ यहाँ नहीं ढूंढती,
आने के बाद और 
जाने से पहले 
रहती कैसे अकेले?

Thursday, 30 November 2023

दखल

जब मुझको पूछे कोई 
तब मैं दखल करुंगा ठीक,
जब मुझको वो बुलवायेंगे
तब हाजिरी लगाएंगे निर्भीक,
अभी देख रहे हैं चुप प्रपंच 
अभी मानव के हैं रंग-मंच,
अभी हो-हल्ला है लोगों का 
अभी अपने सभी मशवरे दें,
अभी बहुत पुराने किस्से भी 
आयेंगे सामने दिखने में
अभी जीत के सवा-शेर अपने 
सेखियां बघारने आयेंगे,
अभी उनको गोली मारने को 
बंदूकें सभी उठाएंगे,
अभी कौन सुनेगा 
नमक बनाने का तजुर्बा बापू का 
अभी कौन हमारे बातों पर 
ध्यान भी देगा इतना-सा,
हम अपनी दखल लगाएंगे 
जब अपना नाम मुकर्रर हो,
हम जय श्री राम सुनाएंगे,
राम ऐसा जब चाहेंगे!

Tuesday, 28 November 2023

मुर्ख

तुम मुर्ख बना दो 
फिर से मुझको,
फिर से कह दो 
गलती हो गई,
फिर से कह दो 
भूल हो गई,
फिर अपना 
जूठा खाने दो,
फिर से कहो कि 
बात करेंगे,
सुबह-सुबह
मुलाकात करेंगे,

मैं उम्मीदों के
कुछ दिये,
जला के बैठा था 
रातों में,
मैं फूलोँ- सी 
बात सजाकर 
बाट जोहता था 
राहों में,
तुम आई नहीं 
कभी मेरे रास्ते,
पर जाने की 
वजह बता दो,
कुछ बात बनाकर 
फिर फुसला दो!

Tuesday, 21 November 2023

छूटा

छूट गया वो चौरा जाना 
छूट गया कुछ ठेकवा- लाई 
कुछ फल खाने को छूट गए 
कुछ ताश के पत्ते बिखरे रह गए 
उन्हें उठाना छूट गया,

छत पर सुबह उठकर व्यायाम 
कुछ सूर्य-नमस्कार छूट गया,
वो आत्मा और परमात्मा का मिलन 
कुछ प्राणायाम हमरा छूट गया,

हमने किया प्रणाम चाचा को 
और उठाए कुछ धान की गांठें,
कुछ सीमाएं लांघे ही नहीं 
पानी सूखना, मेल-मिलान ही छूट गया,

वैशाली के स्तूप भी छूटे 
राजगीर का महल बड़ा,
अर्घ दिया सूरज को जाकर 
मनभर डुबकी लगा लिया,
पर वहाँ पर गंडक मे सब 
अपना- तुम्हारा छूट गया,

ले आया शरीर मैं अपना
ओढ़ना-बिस्तर भी ले आया,
पाहूर ले आया झोले भरकर 
पर भूख-प्यास ही छूट गया,
त्यौहार तो बीत गए 
पर भाई चारा छूट गया
खुशी जुटा ली भरकर मुट्ठी
दिल बेचारा छूट गया
क्रिकेट देखने रात को जागे,
चैन से सोना छूट गया!


Friday, 17 November 2023

सो गया

कोई लड़कर सो गया 
कोई बस झगड़ कर,
कोई तेवर दिखाकर 
कोई चुप कराकर,

कोई आया और 
ऊपर बैठकर सो गया,
कोई नीचे बिछाया 
और दुबक कर सो गया,

कोई सीट के नीचे 
घुसकर सो गया,
कोई गुसलखाने की 
सड़क पर सो गया,
कोई और मेरे कंधों पर 
सर रखकर सो गया,
कोई सोया नहीं था 
दो दिनों से,
सब्र करकर सो गया,

आज जनरल डिब्बे मे
एक दोस्त चुनकर सो गया,
आज जनरल डिब्बे मे
सब का सब 
मिलाकर सो गया!

Thursday, 16 November 2023

बदतमीज

हमें बदतमीज रहने 
कि उनका दिल बहल जाए,
सचिन-राहुल तो नहीं 
जो उनके काम आ जाए,

बिना कीमत के आये हैं 
महज पानी सरीखे हैं,
ज़रूरत से नहीं बढ़कर 
की शौक से रात कट जाए,

निरा आलू की सब्जी हैं 
किसी के साथ बन जाए,
चखना हो नहीं सकते 
की वो बदनाम हो जाएं!

नादानी

अपने बीते हुए कल में 
थोड़ी नादानी रहने दो,
आज बातें ठीक मत करो 
उन्हें इंसानी रहने दो,

वो कहेंगे की तुमसे ही 
शिकायत है मुझको,
आज उनके पिशानो
थोड़ी परेशानी रहने दो,

अभी तो पाव पटके हैं 
कभी पंजे लगायेंगे,
उन्हें नाख़ून मे अपने 
ज़रा शाही लगाने दो,

अपने मन की करने को 
बड़े ही मनचले हैं वो,
पहनने जीन्स दो उनको 
ज़रा स्याही लगाने दो,

कुछ बोलने को वो 
बड़े तैयार रहते हैं,
उन्हें गुस्सा तो आने दो 
ज़रा गाली सुनाने दो,

जुबां पर है बढ़ा चस्का 
की डेयरि मिल्क खाते हैं,
ज़रा-सा मिर्च चखने दो 
हमें पानी पिलाने दो!





बदली

बारिश मे भीगकर हम 
मुट्ठीभर किरणें उठा लेते,
जहां नहीं होती तुम 
वहाँ भी पा लेते,
आजमाने की आदत है तुम्हारी 
हम खुद को अजायबघर बना लेते,
आज के बाद फिर 
मिलना कहाँ मंजूर है,
तुम सोचती हो मन मे
हम कदम बढ़ा लेते,
आजकल बदली है मेरे 
शहर की रोशनी मे,
हम दिवाली मनाकर 
तुम्हें बुला लेते!

कमी

तुम होती तो 
कह देती की 'जाने दो'
तुम होती तो 
भरमा देती झूठे गुस्से से,
तुम होती तो 
माजरा समझ जाती 
बात मेरी सुनकर बस,
तुम होती तो 
करती बातें 
मिलने वाले शौहरत की 
होटल, खाने, पानी की 
आने वाली गाड़ी की,
सोने वाले बिस्तर की 
और साफ़ सफ़ाई चादर की,

तुम औरों की बातों का 
मतलब खूब समझ जाती,
तुम उलझन के पहले ही 
कुछ-कुछ कहकर निकल जाती,
तुम कभी-कभी आती 
तुम काम छोड़कर आ जाती,
तुम मेरे काम की चीज़ों को 
अपना काम बना लेती!

Friday, 10 November 2023

चहल

वो गर्विले गलियारों की चहलकदमी
वो निर्भीक यारों की गलबहियाँ,
वो ठंड की हल्की धूप के खुले मैदान 
कंधों के पीछे ढलता सूरज,
वो छत के ओदे कपड़े
अंधेरों में दबे पांव,
वो कुछ और कलम चलाने के पहले 
मिलने वाले थोड़े पल,
वो syllabus की अंधी दौड़ 
और कभी ना आने वाला कल,
वो प्रिन्सिपल के कमरे के बाहर 
फैला हुआ सा डर,
और मिमिक्री करने से 
हल्के होते पल,

आकाश के तारे गिनते-गिनते 
सोने जाते बज जाते दो,
वो उठना ठंड में pt जाना 
पहन ओढ़ कर मोजे टोप,
कुम्हलाई आँखों से उसको
निगाह में भरने वाली धुन,
कुछ खेल-खेल मे लड़ जाना
वो इश्क मे उसके टांग लड़ाना!

Wednesday, 8 November 2023

माटी और सफ़ेद

आज सफ़ेद 
पहन कर चलते,
हम रुकते 
माटी से पहले,
माटी कर देती 
मटमैले,
रंग चमक की 
फेंके उजले,
माटी से माटी 
बचना चाहे,
माटी सफ़ेद ही 
रहना चाहे,
बापू के वस्त्र 
की कर अभिलाषा,
सामने रखना 
चाहे आग,
बापू के तौर तरीकों से 
आए कैसे लाज,
माटी और 
सफ़ेद मे भेद,
आज चाहता मटियामेट!


आग

मुझे इतना 
जला रही है,
पानी अन्तर का 
सूखा रही,
उबाल रही 
अंग के भीतर 
ज्वाला से बुलबुले 
उठा रही,

लहरों को 
करती तीव्र,
इधर-उधर 
भटका देती,
नाम नहीं लेती 
गंगोत्री का,
चलने को करती 
टेढ़ी- मेढ़ी,

खींच पकड़ कर 
लेती हाथ,
पाँव कहीं और 
कहीं पर माथ,
अम्बर के ऊपर, 
धरती के भीतर 
अतल और पाताल,
आग बड़ी भीषण विकराल 
कर रखती है अकाल!


Monday, 6 November 2023

ज़रूरत

एक ज़रूरत की चीज़ थी 
जो रखे हुए ख़राब हो गई,
वो अंगूरों का रस थी तर्बियत के लिए,
आज हमारे लिए वो शराब हो गई,

अब सुधरने मे उसकी 
मशक्कत बड़ी होगी 
हमारा नाम लेकर वो 
बहुत बर्बाद हो गई,
और आजमाना था उसे 
हमारे दिल फरेब को,
वो शुरुआत से पहले ही 
तलबगार हो गई!


Sunday, 5 November 2023

6 lane

यह मन की वृत्ति 
यही चौड़ी-सी सड़क,
यह मन के कई सतह 
कोई हवाई, कोई खंदक,

एक से जाते बहुत विचार 
एक से एक-दो ही एक बार,
एक की भीड़ हज़ारों की 
एक पर लगी है बड़ी कतार,

एक पर मयखाने हैं खुले 
एक पर मन्दिर और मज़ार,
एक पर वैभव की आसक्ति 
एक पर फीका लगे संसार,

समय-समय ले राम का नाम 
करते रहते हम आर या पार!

दूसरे की बेटी

वह दूसरे की बेटी 
निकल गई है घर से,
बाज़ार मे, गली में 
मुहल्ले में, चौराहे पर,

वो दूसरे की बेटी जिसपर 
सभी की नज़र,
चाहे जैसी भी हो 
बुरी या बेहतर,

उसके निहारते कपड़े 
उसके बिलाउज के स्तर,
उसके घुटनों के कवर 
उसकी दिखती हुयी कमर,

उसके नखरे, उसकी अदा 
उसकी चढ़ती हुई उमर,
वो आती हुई इधर 
वो निकलती हुई किधर,

वो किसके गई थी घर 
उसकी जींस उसकी टॉप 
उसकी गोलगप्पे की चाहत 
उसके होंठो की रंगत,

वो दूसरे की बेटी 
वो खुली हुई तिजोरी 
वो चलती फिरती बाज़ार!

Friday, 3 November 2023

ख्वाहिशों की ख्वाहिश

ख्वाब सजाने की 
ख्वाहिश बड़ी- बड़ी,
ख्वाबों में लगाने की 
चार चाँद बड़ी-बड़ी,

ख्वाबों की माला में 
मोतियों की लड़ियां लगा लेती,
मोतियों के ऊपर 
और सितारे सजा देती,

ख्वाबों को देखकर 
यह और ख्वाब सजा देती, 
जितने झूठे गीत 
ये गाते हुए भुला देती, 
सारे दुख, सारे संताप 
और मांगने की ख़ातिर 
ये झटपट हाथ बढ़ा देती,

ये ख्वाबों की ख्वाहिशें 
ये और की ख्वाहिशें!

Tuesday, 31 October 2023

अधोगति

ऊर्जा का दोलन 
ऊपर जाता आवेग,
अधोगति जब होती 
बिलख रहे सम्वेद,

कामनाएँ उड़ के जाती 
आसमान की ओर,
पीछे-पीछे करती घर्षण 
चलती शोणित की डोर,
ऊर्जा की उष्मा उठती 
तरल-तरल करती हिलोर,
राग-रंज अनमोल,
आसक्ति अति घोर 

फिर आती ठंडी होकर 
लेकर माटी के घोल,
टप- टप, कंपन का शोर 
बैठा जाता मन 
डर का माहौल,
इत ओर, उत और
सभी की नज़रों से चोर
ऊर्जा की आपा धाबी 
यह कैसा व्यसन का मोर 
नाचने को व्याकुल 
ऊपर नीचे चारों ओर!

Monday, 30 October 2023

खादी

खादी 
विचार है 
आचार है,
संकल्प है 
निर्विकल्प है,
तेज है
प्रकाश है,
पवन है 
उल्लास है,
अस्त्र है 
ये शस्त्र है,
शास्त्र है 
ब्रह्मास्त्र है,
मुस्कान है 
अट्टहास है,
मिट्टी से 
आत्मा तक 
खादी विकास है!


Thursday, 26 October 2023

शिकायत

हमसे दूर होने की
उनको खूब मतलब है,
हम उनको अब बड़े 
बेरहम दिखाई देते हैं,
मुझसे होकर दूर भी 
वो परेशान रहते हैं,
उनको आईनों में भी अब 
केवल हम दिखाई देते हैं,
नमस्कार नहीं? दुआ-सलाम नहीं 
नज़रे भी मिलाते नहीं,
दिल दुखाने वालों को हम 
बेरहम दिखाई देते हैं,
हमारी शिकायतों पर वो 
अफ़साने कई लिख सकते हैं,
मैख़ानो मे उनके कोई हम 
धर्म दिखाई देते हैं,
इस्तेमाल कर रहे हैं 
हमसे दूर जाकर भी,
उनको हम बीमा की 
रकम दिखाई देते हैं,
और मुँह फूला लेते हैं 
हमसे बात करके चार,
उनको हम ही मीठा-सा
बबल- ग़म दिखाई देते हैं,
हमको दर्द होता है 
उनकी बात सुनकर भी,
तो दिल को कहाँ ये 
ज़ख़्म दिखाई देते हैं,
हम फिर चले जाते हैं 
उनका बैग ले आने,
इन ज़ख्मों के वही तो 
मरहम दिखाई देते हैं,
जी तो कर्ता है की 
वो गुमान तोड़ दें,
पर हमको कहाँ वो 
दुश्मन दिखाई देते हैं?
उनके शिकवो का जवाब 
हम दें भी तो कैसे,
अब महफ़िलों मे बहुत वो 
कम दिखाई देते हैं,
और जिनके कंधों पर 
वो अपना सर झुकाते हैं,
वो हमारे दोस्तों मे बड़े ही 
अहम दिखाई देते हैं,
और फिर से आयेंगे 
जब मुशायरों मे वो,
तब तलक अब चलो 
कुछ कलम चलाई लेते हैं!



Monday, 16 October 2023

पैमाना

पीने के बाद गालियों मे
सनम दिखते हैं,
ज़िंदगी की तन्हाइयों मे
कोई मरहम दिखते हैं,
उनकी मोहब्बत का
इम्तिहान क्या लें,
आईनों मे भी जिनके 
अब हम दिखते हैं,

मुर्ख कहकर बुलाते हैं मुझे,
हम उनको बड़े बेरहम दिखते है,
मधुशाला के झरोखों-से
तफ़तीश करते हैं,
जो हवेलियों पर औरों के 
हरदम दिखते हैं,
बदहवासी मे रिश्तों के 
गिरह खोलते हैं,
हम उनको बड़े 
बेशरम दिखते हैं,

आशिकी मे डूबने को 
हम तैयार बड़े थे,
क्यूँ उनको दिलों मे
भरम दिखते हैं,
किसको कहेंगे वो 
अपना हमसफ़र,
जहां पैमानों के फैले 
आलम दिखते हैं,

बड़े शोर सुनकर आए थे 
जिनके आशियाने पर,
वो आमने-सामने
कितने नम दिखते हैं,
उनको कैसे बताये की 
लोग छुपते बहुत हैं,
होते हैं बहुत
फिर भी कम दिखते हैं,

हम तो रोक लें दिल को
किसी कैद खाने मे,
पर ये बहके हुए 
कुछ कदम दिखते हैं,
जान भी हम लुटा दें 
इक नजर भर को जिसकी, 
गौर से और को वो 
 एकदम देखते हैं!



Sunday, 15 October 2023

अंत

मेरे जाने के बाद भी 
हम बार-बार बुलाए जा रहे हैं,
मौत तो कब की हो चुकी है 
एक मुद्दत से जलाये जा रहे हैं,

हम तो बैठे हैं मंच को 
औरों पर छोड़कर,
क्यूँ स्वागत मे सबके 
उठाए जा रहे हैं?

अब नहीं है इजाजत 
उनका नाम लेने की,
गैरों से महफ़िलों मे
आजमाये जा रहे हैं?

किसी खता के डर से 
मौन कर चुके हैं,
हम क्यूँ बोलियों से 
उकसाये जा रहे हैं?

गुलाल

यहीं लगायी तुमको होली 
यहीं सुनी प्यारी-सी बोली,
यहीं आँख के रंग थे बदले 
यहीं आसमा से मिली थी नजरें,

यहीं नहीं तुम जाने पाए 
यहीं कहीं तुम मुँह बिचकाये,
यहीं पर फैल गए थे हम 
यहीं पर सभी गुहार लगाए,

यहीं पर आना और ठहरना 
यहीं पर होता बहुत मलाल,
यहीं उड़ा था रंग गुलाल
यहीं हुआ था इश्क मे लाल!


घोंसला

हम झुकाकर नज़र चले आए
हमसे हुआ ही नहीं हौसला जोड़कर,
मधुशाला मे कैसे कदम रखते 
जहां दहलीज पर आए थे हम 
पुराना जहाँ छोड़कर,

कैसे हो नहीं नम आँख ये 
लबों का कहकशां छोड़कर,
आज होश मे देखा जब 
कमरा वो, नशा छोड़कर,

की मरहम कहाँ मिलेगा 
ऐसे लम्हों के तसव्वुर का,
किसको कहेंगे अपना 
हम अपनों का महकमा छोड़कर,

बहारों का रास्ता, 
वहाँ होकर नहीं निकलता,
उड़ जाती है चिड़िया जहां 
अपना घोंसला छोड़कर!

Thursday, 12 October 2023

संबाद

आंखों ने 
आँखों को देखा 
मुस्कुराए,
प्रेम झलक गया,
हो गया संवाद,
मैंने तुमको 
तुमने मुझको 
किया प्रणाम,
हो गया तीर्थ,
मिल गए चारो धाम,
हो गया संबाद,
भाषा नहीं जानी 
भुला दिया पहचान,
राम राम कहा,
राम राम राम,
हो गया सब काम,
पूछा नहीं कुछ 
पूछ ना था क्या?
जो जानने-समझने 
लायक था,
उसको लिया 
कुछ थाम,
बिना शब्द, 
बिन विराम,
कर लिया संबाद!

Wednesday, 4 October 2023

चोरों की बस्ती

उन बस्तियों मे 
हर तरफ एक 
जश्न-ए-गुल है,
इस तरफ क्यूँ 
हर कोई 
दबे पाँव चलता?
उस तरफ 
हर शख्स की
पैनी निगाहें,
इस तरफ 
हर आदमी 
छुप लूटता है,

उस तरफ 
सब मिलके 
सारे घेरते हैं,
इस तरफ 
अकेले मे 
बंधन जोड़ते हैं,
उस तरफ 
रातों को 
पहरा तोड़ते हैं,
इस तरफ 
दिन-रात 
सबको तोलते हैं!

Tuesday, 3 October 2023

कमरा

उस कमरे में 
अभी भी सोये हो,
अपने मिजाज़ मे
हंसते खोए हो,

तुम्हारी खुशबू है 
तुम्हारा एहसास है,
तुम्हारे कमरे मे
तुम्हारी याद है,

तुम्हारी हंसी है 
तुम्हारी आवाज़ है,
उस कमरे का अब 
तुम्हारा-सा अंदाज़ है,

तुम्हारे छुए हुए कपड़े हैं 
तुम्हारे रखे हुए अख़बार हैं,
तुम्हारे सलीके से बिछायी 
अलमारियां सजि हैं,
तुम्हारि योग निद्रा के 
लेटे हुए इतिहास हैं,

उस कमरे मे 
तुम्हारी वाली बात है!

Monday, 2 October 2023

सीनियर के पास

ले चलें तुम्हें 
सीनियर के पास,
आज देखते हैं तुमको
सीनियर के पास,
क्या कहते हो तुम 
सीनियर के पास,
आओ देखो खुद को 
सीनियर के पास!

बापू का प्रश्न

बापू के प्रश्न हैं 
की मानते हैं कैसे,
चलते हैं कैसे 
उनके पथ पर,
खोते नहीं कैसे धीरज 
देखकर उनके 
टूटते विचार,
आस पास के व्याभिचार,

मुस्कराते हार कर 
देखकर अपनी हार?
बैठे हैं जो कुर्सियों 
भूलकर बापू के आचरण?
करते हैं स्मरण 
अब बस तब जब 
होते कोई त्यौहार परब,

नहीं पाते खुद 
मे झलक उनकी 
खुद मे किसी तरह,
कैसे देते जवाब 
खुद को और 
बापू के प्रश्न पर उत्तर?
राम कैसे कहते होकर निडर?

Wednesday, 27 September 2023

ज्योतिष भाई

बस इसी अदा से 
लूट लिए ज्योतिष भाई,
वो कहते हैं 
'प्यार तुम्हारा है, मैं पटाऊंगा!'
तुम गुस्सा उन्हें दिलाते रहना 
मैं प्यार से उन्हें मनाऊंगा,
तुम नारियल पानी ले आना 
मैं देसी ठर्रा लाऊंगा,
तुम प्राणायाम सिखा लेना 
मैं सिगरेट खरीद कर लाऊंगा,
तुम शिव जी की बातें करना 
मैं चिल्लम मस्त बनाऊँगा,
तुम घाट बनारस के कहना 
मैं ठंडी भंग घुलाऊंगा,
तुम सीता-राम रटते रहना 
मैं केरल तक साथ निभाऊंगा,
तुम अख़बार पढ़कर मंथन करना 
मैं Whatsapp स्टैटस लगा दूँगा,
तुम कर लेना डिबेट बहुत 
मैं चुप होकर मुस्कराऊंगा,
तुम जीत ही लेना सारे खेल 
मैं दिल ही जीत कर आऊंगा,
तुम मधुशाला जाते रहना 
मैं रूम पर उसे बुलाऊंगा,
तुम सारे आसन कर लेना 
मै दुशासन तुम्हें बता दूँगा,
तुम बाँसुरी छत पर बज़ा लेना 
मै Spotify playlist सुनाऊंगा,
तुम earbuds खरीद लेना
मै IPad का कवर चुनवाऊंगा,
तुम t-shirt खोजकर ले आना 
मैं खेलने उसे बुलाऊंगा,
इश्क बेशक तुम्हारा ही रहेगा 
'मैं तो बस पटाऊंगा!' 

देवी जी

देवी जी मैं भोला हूं 
पहने खादी झोला हूं,
देवी आप विदेशी हैं 
रंभा और उर्वशी हैं,

आपकी अदा अनोखी है 
आपकी जुबान भी चोखी है,
आपके नगमें ऊँचे हैं 
आपके चर्चे कच्चे हैं,

आप न ठेकुआं खाती है 
आप न पता बताती हैं,
आप न लड़ने को बोले 
आप न पीछे जाती हैं,

देवी जी मैं बोलू क्या 
आप से खुद को जोड़ू क्या,
आपसे दूरी मुमकिन नहीं 
पर आपके तौलूं क्या?

Sunday, 10 September 2023

नाराज़

किसी-किसी को
नाराज़ रहने दो,
कुछ रूठने वालों को 
भी याद रहने दो,

किसी की नहीं है 
फ़ितरत हमारे जैसी 
पैगम्बर किसी को 
किसी को राम रहने दो,

कोई है तुम्हारी परछाई
बीते समय की याद,
कोई हैं नन्हे कदम
चलने लगे हैं आज,
उनको आज अपने कल की 
सौगात रहने दो,

टूटी हुई टहनियाँ 
बरसात मे गिरी हैं,
आज सड़क जाम है 
भीड़ सी घिरी है,
अपनी लाचारी का लोगों को 
तनिक ध्यान रहने दो!

Friday, 8 September 2023

फैल गए

फैल गए हम ज़रा-सा 
भाव देने पर,
तुम्हारे भाव पर फैले 
तो अपना नाम हो गया है,
पा नहीं सकते 
तुम्हारे ख़ास का रुतबा,
पास आये हैं 
तो अपना काम हो गया है,

अभी तुम्हें ज़रूरत 
मेरी जुबां की पड़ी है,
तुम्हारे गीत गा रहे हैं 
तो अब बदनाम हो गए हैं,
हमें फ़ैलने की आदत 
भूल ही गई थी,
तुम बरसात लेकर आए 
तो अब बहार हो गए हैं!

Tuesday, 5 September 2023

तकलीफ

उन्होंने कहा 
जिक्र न करो,
हमने नाम लेना 
छोड़ दिया,
उन्होंने कहा 
बदनाम न करो 
हमने इशारे करना 
छोड़ दिया,
उनको तकलीफ है 
हमारे आने से,
तो हिज्र को रुखसत 
छोड़ दिया,
उन्होंने अदब से 
मुँह फेरा,
हमने सजदा करना 
छोड़ दिया,
उनकी तबीयत
नासाज़ हुई,
हमने दर्द मे रोना 
छोड़ दिया,
उनकी मदिरा मे
भंग आया, 
हमने चखना खाना 
छोड़ दिया,
उन्होंने ज़रा-सा
'उफ' बोला,
हमने साँसे लेना
छोड़ दिया!





Monday, 4 September 2023

राम पौध

आने दो सारी विष सरिता 
राम नाम के सागर मे,
रंग जाने दो केसरिया मे
आज अंधकार के दर्पण को,

आज पवनसुत के आनंद मे
मद का प्याला ले आओ,
आज गलत वाणी के लय को 
राम चरित के संग गाओ,

आज अपने बोझ को थोड़ा 
नीचे रख दो मिट्टी पर,
आज राम को ही भरने दो 
इस जीवन के सारे कर!

कैक्टस

आपके बगीचे में फूल है 
आपके छुने से खिल जाती है,
हमारे घर मे कैक्टस है 
पानी देने पर भी कुम्हला जाती है,

गुलाबों से हार बनाया है 
फिर इत्र क्या, रुआब क्या?
मरूस्थल से नागफनी उठाया है
फिर खार क्या और ख्वाब क्या?

जब साँप को दूध पिलाया है 
तो आस्था क्या मजबूरी क्या?
जब लंका मे सर झुकाया है 
तो सेवा क्या जी हुजूरी क्या?

जब दिल लगा चुड़ैल से 
तो परी क्या चीज़ है?
जब सजा रखा है नागफनी 
तो चमेली क्या चीज़ है?

जब घर बनाया ज्वाला मुखी पर 
तो पालना और अर्थी क्या चीज़ है?
और करते हैं यमराज की सवारी 
तो भैस और लोम्बार्घिनी क्या चीज़ है ?

Thursday, 31 August 2023

वही

वही जिसे न रक्षा की जरूरत है 
जिसे बंधन ही पसंद नहीं,
वही जो सूरज की किरणों जैसी 
निर्वात और सघन मे है,
जो मेघ से चल, बूँदों-सी बरसी 
शहर और निर्जन मे है,
चेतना समान जो हुई 
जड़- चेतन के स्पन्दन मे है,
जो छोड़ अयोध्या आ निकली 
विचरण करती कानन मे है,
जो शिव तत्व-सा फैल गई 
वसुधा के कण-कण मे है,

जो मुक्ति की अभिलाषा को 
तृप्ति दिए बंधन मे है, 
जो युक्ति की परिभाषा लिए
विचारों के मंथन मे है,
जो परावर्तित होती रोशन होती 
हर आँखों के दर्पण मे है,
जो जीत से आगे पहुँच गई
निःस्वार्थ समर्पण मे है,
जो आंसू बनकर ढुलक रही
अबोध के क्षण क्रंदन मे है!
 

Wednesday, 30 August 2023

कमीज़ की तमीज

कहाँ से है अंदर 
और बाहर कहाँ तक है,
मेरी कमीज़ से तमीज 
उजागर कहाँ तक है?

ये बेल्ट के ऊपर 
उभरी हुयी क्यूँ है 
ये आस्तीन भी आधी 
उतरी हुयी क्यूँ है?

ये टोकने की जिद है 
मुझे ढूंढती आयी,
आज गिरहबान खुली 
उठती हुयी क्यूँ है?

सब धार ले पोशाक 
संत मैकाले वाली,
'बापू' की तस्वीरे आज 
खुरची हुयी क्यूँ है?

ये कमीज़ मे तमीज 
लिपट गई क्यूँ है?
कुर्ता बनी मूर्खता की 
प्रतीक हुई क्यूँ है? 

सब राम बनने के लिए 
कुछ साफ़ हो गए हैं,
कुर्ता-पायजामा छोड़कर 
मेहमान हो गए हैं,

कुछ निकल रहा पीछे 
मेरी पुंछ है शायद,
लंका जलाने के लिए 
है छूट गई शायद! 🙏

Monday, 28 August 2023

आसना

ना तुम ही मानी 
ना मन मेरा ठहरा,
ना तुमने बात को रोका 
ना मैंने तुमको टोका,
ना तुम ठीक समय पर आयी 
ना मैंने हाथ को पकड़ा,
ना तुम चुप हो पायी 
ना मैंने किया कोई झगड़ा,
तुम चली गई, मैं चला गया 
तुम रुकी नहीं, मैं चला गया!

Friday, 25 August 2023

खुशामद

खुशामद इतनी क्या करें 
की नाक में दम पड़ जाए,
सर इतना भी क्या झुकाएं 
की ऊँचाई कम पड़ जाए,

ना चुप इतना भी रहें 
की आंखें भी नम पड़ जाए,
निरीह ना हो इतना की 
पशुओं को रहम पड़ जाए,

सितमगर के इम्तेहान को 
मुस्कुराकर भी निभाया जाए,
कहीं उनको अपनी खुदाई का 
ना भरम पड़ जाए,

उनको सुनने की तमन्ना तो 
नागवार हो रही है,
फोन इतना भी क्या करें 
वो सहम पड़ जाए,

अब नहीं समझौते की 
गुंजाईश लग रही है,
क्यूँ न महीने दो महीने की 
अनबन पड़ जाए,

आओ नाम लिख लें 
दुश्मनों का दिलों पर,
ना जाने किस मोड़ पर 
वो सनम बन जायें,

हसरतें कहाँ
पूरी होती हैं किसी की,
तुमसे मिलने को कम 
एक जन्म पड़ जाये,

और नसीबो से होते हैं
फरिश्तों से मुलाकात,
ना जाने किस पल 
अल्लाह का करम पड़ जाए!


Tuesday, 22 August 2023

मेरे राम-तुम्हारे राम

मेरे राम, अच्छे राम 
तुम्हारे राम, सभी के राम,
खासम खास हैं मेरे राम 
आम के आम तुम्हारे राम,

मेरे राम से सबको काम 
राम तुम्हारे अयोध्या धाम,
मेरे राम भटक रहे हैं 
तुम्हारे राजा सबके राम,

अग्नि परीक्षा वाले राम
धनुष तोड़ने वाले राम,
त्याग-तपस्या वाले राम 
बाली मारने वाले राम,
अंधे राम, काणे राम
हर जाति के अपने राम,

घर के राम, बगल के राम 
सोते राम, जागे राम,
आते राम, जाते राम 
खाते राम, नहाते राम,
खड़े राम, बैठे राम 
ध्यान-मग्न और लेटे राम!

प्रेम के राम, रंज के राम 
झूठ के राम, सत्य के राम,
आज के राम, कल के राम 
नाथूराम और 'हे राम'
सिया के राम, जय श्री राम,
दिनकर और  शरण के राम,
मुन्शी प्रेम चंद के राम,
हरिशंकर और अशोक के राम,
मिथिला और मथुरा के राम 
वृंदावन, मंथरा के राम,
कौशल्या-दशरथ के राम
कैकयी और भरत के राम,
सुमित्रा, उर्मिला- लक्ष्मण के राम,
मीरा और तुलसी के राम 
सुर और कबीर के राम,
जितनी वाणी उतने राम!

बंगाल और द्रविड़ के राम 
झारखंड, छत्तीसगढ़ के राम,
लद्दाख- धारवाड़ के राम 
कर्नाटक और तमिल के रमन,
बनारस और उज्जैन के राम,
गाँव के राम, शहर के राम 
देहात और लंदन के राम,
चीन के राम, मंगोल के राम 
यूपी और बिहार के राम,
पर्वत और विरान के राम,
हाथ के राम पैर के राम 
कंकर और ब्रह्मांड के राम,
जितनी जगह उसी मे राम!

Sunday, 20 August 2023

करार

ये जो दिल का करार है 
क्यूँ रह गया तुम्हारे पास है,
ना तुक है, ना सवाल है 
ना तरीके मिलते हैं 
ना इज़हार है,

सोचते भी हैं तो 
उसमे भी तकरार है,
जीवन मे कोई 
तलब तो नहीं,
तुमसे मिलने की कोई 
वजह तो नहीं,
फिर आरजू मे क्यूँ 
एक आवाज़ भर दरकार है?

क्यूँ खुशी है तुम्हारे 
चर्चों की गूँज से,
क्यूँ गलतियाँ तुम्हारी 
दिखती ना पास से,
छुप जाती हर कमी 
मुस्कान के नूर से,
तुमसे दूर जाने की 
मुझे कैसी तलाश है?


Saturday, 19 August 2023

तुम्हें छोड़कर

तुम्हें छोड़कर कहाँ आऊँ 
तुम साथ चलती हो,
तुम्हें भूलकर कहाँ जाऊँ 
तुम सोच बनती हो,

तुमसे बहाने क्या करूँ 
तुम सब जानती हो,
तुमको हिदायत क्या लिखूँ 
तुम नब्ज पकड़ती हो,

तुमसे उम्मीदें क्या करूँ 
तुम फ़रियाद आखिरी हो,
तुमसे पैरवी क्या करूँ 
मेरे काम करती हो,

तुमको समय क्या दूँ 
तुम ही तो घड़ी हो,
तुमको तुम भी क्या कहूँ 
तुम मुझमे बसी हो!

चाहत

जो है बेधड़क 
जो है बेपरवाह,
जिसकी है बिना सर 
बिना पैर की बात,

जिसको क्लास मे
लुडो खेलना है पसंद,
जिसको ढूँढ़ना रहता 
हर बात पर आनंद,

जिसको दिन मे आती नींद 
रात भर हो जागना,
जिसको हर एक बहस 
लड़कर जीतना,
योग भी है जिसके 
लिए एक बकवास 
जिसको बोतल से पीने वाले 
लगते हैं खास,

जिसको बीमारी मे 
तलब की ज्यादा चिंता है,
दवा मंगाने मे जिसको 
बहुत ही खर्चा है,
गिफ्ट मांगने मे 
जिसको नहीं कोई हिचक,
हर बात में है 
छुपा कोई सबक,

जिसकी हर अदा 
मुझसे बड़ी जुदा,
दिल क्यूँ उसे 
इस बार ढूंढता,
क्यूँ किसी ऐसे को चाहता!

Friday, 18 August 2023

uncomfortable

उनपर मेरा कविता लिखना 
उनको नहीं पसंद,
उनपर मेरा कुछ भी कहना 
उनको नहीं पसंद,

उनकी कोई चर्चा करना 
उनको नहीं पसंद,
उनको मेरा देख मुस्काना 
उनको नहीं पसंद,

नहीं पसंद उनको की कोई 
बातें हों मदहोशी की,
नहीं पसंद उनको की कोई 
करे इशारे कोई भी,

उनको भाता नहीं की 
उनकी तारीफें भी खुलकर हों,
वो संवर के राहों पर निकलें 
पर किसी की नजर उन्हीं पर हो,

उनकों नहीं पसंद की 
महफ़िल लूट ले कोई बातों से,
उनको नहीं पसंद की दोस्त भी 
चुटकी लें जज़्बातों पे!

Thursday, 17 August 2023

मैडम

मैडम मेरी क्यूँ उदास हैं?

चखना है प्लेट मे
व्हिस्की गिलास मे?
भाई बैठा बगल मे
दोस्त आसपास हैं!

अंधेरा भी है फैला 
गाना बज रहा तेज,
सभी की बुद्धि 
हुयी है आउट ऑफ फेज,
नाचने का माहौल है 
दिन भी तो खास है!

मैडम मेरी क्यूँ उदास हैं?

चिमनी जैसा धुआं निकाले 
और मिसाइल बातें,
उल्टा-पुल्टा होकर लुढ़के
जागे सारी रातें,
ये माया की नगरी मे
बची कौन-सी प्यास है?

मैडम मेरी क्यूँ उदास हैं?



ज़माना

तुम बात करोगे मेरी तो 
इस बार ज़माना क्या कहेगा?
मेरी बातों को 
मानोगे एक बार में 
तो ज़माना क्या मानेगा?
अगर देखोगे मुझे एकटक
तो ज़माना क्या देखेगा?

ज़माने के साथ नहीं बदलोगे 
तो ज़माना क्या कहेगा?

मुक्ति

इन्तेज़ार है कब
मंथरा कोई आए,
मेरा तिलक मिटाकर 
भगवा रंग ओढ़ा दे,

कभी गोकुल मे कोई 
मेरे जन्म का भेद बताये,
राधा छोड़ पग मेरे 
मथुरा को बढ़ जाए,

कभी अर्जुन को ललकारूं 
कोई जाति मेरी पूछे,
मै सर नीचे कर सोचूँ 
और दुर्योधन गले लगा ले,

कोई कंथक मेरे घोड़े 
पुर मे खींच ले जाए,
मरीज, मृतक वृद्ध
मेरे राहों मे आ जाए,

कोई राहुल जन्म ले आए 
मैं अंतहपुर मे रोऊँ,
छोड़ यशोधरा घर मे 
मै स्वयं ढूंढ़ने जाऊँ,

कोई जन न शेष हो रण मे
मै जीत देखने जाऊँ,
रक्तरंजित देख कलिंग 
मैं तलवार छोड़ पछताऊं,

नाम हज़ार ले राम के
मैं काशी पैदल आऊं,
शिव खड़े मिलें रस्ते मे
मै डोम समझ के हटाऊं,

बहुत ज्ञान अर्जित कर
मै कबीरा से भिड़ जाऊं,
बिना बहस जीते ही
मैं कागज उल्टा पाऊं,

मै चिढ़ा हुआ मीरा से
मय प्याला उसे बढ़ाऊं,
वो पीकर रख दे अमृत
मै सोच पे अंकुश लाऊं,

मै अपने मुल्क के भीतर
साहिबजादों को बुलवाऊं,
उन्हें तोड़ते-तोड़ते 
मैं स्वयं को टूटा पाऊं!

मुझे बेऔलाद बुलाएं
आकर कोई फिरंगी,
मैं तलवार उठाकर 
घोड़े पर चढ़ जाऊं!


गांधी भगत 

दुआ

तुमसे मिली दुआ 
कर गई असर,
तुमसे बिखर गई थी 
तुमसे मिली नज़र,

तुमने बढ़ायी हिम्मत 
तुमने सिखाई चाल 
तुमने ही पूछ लिया 
बढ़कर हमारा हाल,

तुमसे शुरू हुयी थी 
तुमसे हुयी खत्म,
मेरे लिए वो गुस्सा 
तुमसे बना रहम!

Monday, 14 August 2023

बेवड़ी

तुम्हें नाराज कर देना 
तुम्हें फिर से मना लेना,
तुम्हारे आँख के तेवर को 
पलकों पर सजा लेना,
बड़ा ही गुदगुदाता है 
तुम्हारा पल-पल बिफर जाना,

तुम्हारा सोचना खुद का 
दुनिया को गलत पाना,
अपनी रूप देखकर 
आईने से झगड़ जाना,
बड़ा मासूम लगता 
संवारना और बिखर जाना,

तुम्हारा सिगरेट बहुत पीना 
दारु को गणक लेना,
धुएँ मे बहुत उड़ना 
किसी कोने मे सो जाना,
नाली मे पड़े रहना 
नकली होश मे दिखना,
नशे मे खूब बतियाना 
नाचना और गिर जाना,
मुँह चाट ले कुत्ता तो 
उसके भी गले लगना,

नेतरहाट जाने को 
रात भर प्लान बनाना,
सूरज उगने पर सोना 
अंधेरों मे ही फिर उठना,
Bottoms-up लगा लेना 
पिज्जा रात मंगवाना,
फ़िल्में देखकर रोना
हीरो को विलेन कहना,

बिना कंबल उलट जाना 
ठंड मे कंपकंपी आना,
कंधों पर उठा तुमको 
तुम्हारे रूम पहुंचाना,
सुबह एयरपोर्ट जाने को 
बड़ी ही देर से उठना, 
बेवड़ी की समझ लेकर 
नहाये बिन सेन्ट लगाना,

मुझे अच्छा बड़ा लगता 
मधुशाला का नशा करना!

Friday, 11 August 2023

राँची

आज राँची मे सूरज 
फिर निकला होगा,
आज फिर हवायें 
सुबह आयी होंगी,
आज बारिश और धूप 
साथ हुयी होगी,
सब हुआ होगा 
जो रोज होता है,
बस हम नहीं होंगे,
तुम नहीं होगी!

याद

किसकी याद आती है?
राँची की जब आती है 

बाज़ार की, रस्ते की 
छत की, मुहाने की,
मौसम की, मिजाज़ की 
दोस्तों की, टीचरों की 
मेस की, TT की,
साइकिल की, अखबार की,
पेड़ों की, पक्षियों की,
शोर की, कोलाहल की,
घूमने की, आने-जाने की,
भुट्टे की, नारियल पानी की 
घेवर की, तेवर की 
मधुशाला की, रात की 
हवाओं की, सुबहों की 
ठंड की, बहारों की,
बादलों की, आसमान की 
उसमे छुपती-निकलती 
सूरज के किरण की?

Wednesday, 9 August 2023

मुसीबत

हमसे ना मिलें मिलने वाले 
तो कोई बात नहीं,
पर उनसे मिल रहे हैं 
तो मुसीबत है!

मुझे देखकर न मुस्कुराए 
तो कोई बात नहीं, 
उनसे खुल के हंस रहें हैं 
तो मुसीबत है!

हमारा जवाब नहीं दे
तो कोई बात नहीं, 
उनकी नजर पढ़ रहे हैं 
तो मुसीबत है!

हमसे बैग भी उठबाये 
तो कोई बात नहीं,
उनका स्वैग उठा रहे हैं 
तो मुसीबत है!

हमारी बगल मे ना बैठे 
तो कोई बात नहीं,
उन्हें पलकों पर बैठाएं 
तो मुसीबत है!

नजर से गिरा दिया
तो कोई बात नहीं,
नजर ही ना आयें 
तो मुसीबत है!

कत्ल करने निकले हैं 
तो कोई बात नहीं,
पर जला के मारेंगे
तो मुसीबत है!

मर्ज न मिले
तो कोई बात नहीं,
मरहम ना मिले 
तो मुसीबत है!

काफ़िरों से दिल लगाए 
तो कोई बात नहीं,
काबिलों से मिल भी लें 
तो मुसीबत है!

फोन न उठाएँ 
तो कोई बात नहीं,
फोन बिजी आ रहा है 
तो मुसीबत है!

सोचते हैं शायरी सुनकर 
तो कोई बात नहीं,
पर हँसी आ रही है 
तो मुसीबत है!

हमारा गुमान तोड़ दे 
तो कोई बात नहीं, 
उनको इनाम दे रहे 
तो मुसीबत है!

इस तस्वीर मे तुम्हारी 
कोई और नहीं दिखा,
कोई और बोल दे 
तो मुसीबत है!

दोस्त कहें रावन 
तो कोई बात नहीं,
पर राम ना कहें 
तो मुसीबत है!

फिरनी से मुँह मीठा करें 
तो कोई बात नहीं!
फिरकी से कसे 
तो मुसीबत है!

वो छक्का भी मारें 
तो कोई बात नहीं,
पर एम्पायर आंख मारे 
तो मुसीबत है,

जीतने को खेलें 
तो कोई बात नहीं, 
जीतकर खेल दे 
तो मुसीबत है!

और बेईमानी करें 
तो कोई बात नहीं,
2 इंच से करें 
तो मुसीबत है!

रोहितास शतक मारे 
तो कोई बात नहीं,
सचिन रहे नाबाद 
तो मुसीबत है,

वो नजर चुराए
तो कोई बात नहीं,
वो नजर भी ना आए 
तो मुसीबत है!

महफ़िल मे सब सुनें 
तो कोई बात नहीं,
वो देख भी ले 
तो मुसीबत है!

वो साथ न बैठे हमारे 
तो कोई बात नहीं,
उनके साथ नाच लें 
तो मुसीबत है!

वो नाम भी लिख दें 
तो कोई बात नहीं;
हम क...क....क.. भी कहें 
तो मुसीबत है!

वो पेग भी बनाए 
तो कोई बात नहीं,
हम कुर्बानी कर रहें 
तो मुसीबत है,

वो मेमो इशू करें 
तो कोई बात नहीं,
हम रोष भी करें 
तो मुसीबत है!

वो क्लास मे सोये 
तो कोई बात नहीं,
हम प्रश्न भी पूछ ले 
तो मुसीबत है!

वो रात भर पीए
तो कोई बात नहीं,
हम योग न आए 
तो मुसीबत है!

वो रूम से भगा दे 
तो कोई बात नहीं,
पर हाथ जोड़ लें 
तो मुसीबत है!

वो चुप करा दें 
तो कोई बात नहीं,
पर दो बात ना बोलें 
तो मुसीबत है!

वो दरवाजा न लगाए 
तो कोई बात नहीं,
पर पर्दा भी हटा दे 
तो मुसीबत है!

वो 10 पेग पीए
तो कोई बात नहीं,
हम दो शायरी लिख दे
तो मुसीबत है!

वो दोपहर तक सोये 
तो कोई बात नहीं,
हम रात भर पढ़ें
तो मुसीबत है!

वो महल खड़ी करें 
तो कोई बात नहीं,
हम फीस भी भरें 
तो मुसीबत है!

वो ठाठ से सोये 
तो कोई बात नहीं,
हम राह पर चले 
तो मुसीबत है!

भारत-दर्शन

देखा मैंने छोटा भारत 
इतिहास और भविष्य का सूरज

सचिन के जैसा कृष्ण जो 
जो हर काज कर सकता,
ज्ञान समेट कर रखता 
तर्क से बस लड़ सकता,
4 बजे तक पीने वाला 
योग क्लास कर सकता,

राहुल सरीखा चार्वाक 
जो खाना खाते मर सकता,
पीकर कर सकता उपद्रव 
कहकर, 9 पास कर सकता,
चौके खातिर 2 इंच जमीन की 
कीमत खूब समझता,

किरण के जैसी लक्ष्मीबाई 
दोनों हाथ से लड़ती,
धुआं छोड़ती मुँह से 
जले पर नमक रगड़ती,
अंग्रेजों से सीख तरीके 
उनपर भारी पड़ती,
प्रेम-उमंग की बातों पर 
चटखारे खूब लगाती,
अधिकारी से आंख मिलाकर 
उनको गलत बताती,

नवोदित जैसा बंगाल नवाब 
चोख चमक मे तेज,
बिस्तर धर के पड़े रहे 
जब घेर रहे अंग्रेज,
घूमें-फिरे पूरी राँची 
क्लास मे रहें अदृश्य,
जमीनदार के जैसा ठाठ
करके छोड़ देते हर चीज,
नाचे सबको गिरा-गिरा कर 
आईफोन का रखते शौक,
इनके सामने कौन ही बोले 
किसकी इतनी औकात,

नीरज जैसा शाहजहाँ 
जो हर देवी का ख्वाब,
ऐसा मंत्रमुग्ध कर देता 
जिसका नहीं जवाब,
नाचे-गाए ताल मिलाकर
प्यार का रखे हिसाब,
सारी सैलरी मधु मे लगाकर 
मोह लिया मुमताज़,
फ़िल्में रातभर देख रहा 
और सुबह न जाना क्लास 
सबको जेब मे रख लेना 
और ना डालना घास,

विशाल जैसा आज़ाद 
जो सबसे करता रहे मजाक,
आँख मे धूल झोंकना जाने 
बहरूपिये जैसी बात,
पढ़ता रहे फिल्म के समय 
रात मे खाए खाना,
बाबा साहब को लाए 
उस संस्थान में,
जहां पड़ता गोली खाना!

कविता जैसी जय-ललिता देखी 
जो झटपट देवे जवाब,
बात कोई जो थोड़ा बोले 
उसका रखे हिसाब,
देवी बनने मंदिर जाए 
सुबह करे वो योग,
नाचे सारे स्टेप्स याद रख 
स्वैग ही जबरदस्त,

नयन-सी जैसी रजिया सुल्तान 
जो वक्त से बहुत है आगे,
मधुशाला मे भी पीए नहीं 
चाहे रात भर भी जागे,
कविता पढ़ती, बातें करती 
एक से एक सतरंग,
नहीं सोचती ज़रा-ज़रा भी 
कोई कितना कर ले तंग,
चंदन विष व्यापत नहीं 
लिपटत रहे भुजंग,

सुधीर जैसा देखा तुकाराम 
जो भाव में डूबा रोये,
सबसे सरल, सबसे मिलन 
हंस के मैल मन धोए,
खेलने TT मनोयोग से
बात करे गंभीर,
नाम बताकर सबका अनोखा 
खींच दिया तस्वीर,

पल्लव दा-सा सुभाष चंद्र 
जो गीत-संगीत के ठाकुर,
शिव-तत्व का भोग लगाते 
प्रतियोगिता मे रणबाँकुर,
एक क्लास तो डेली करते 
कब आए कब गए,
जानने वाला सोचता रहे 
वो ज्ञान से कर दे व्याकुल,

संचित जैसा विश्वामित्र
जिनके ज्ञान से सब भयभीत,
अबॉर्शन बंद करा ही देते 
पर मेनका से न पाए जीत,
राम को शतरंज जीता के दिया 
ऐसा अद्भुत अस्त्र,
सिया अग्निपरीक्षा का 
Memo हो गया ध्वस्त,

रोहिताश जैसा पठान 
जो क्रिकेट की असली शान,
खेले वो और पीए खूब 
जान ना पाए सब क्यूँ परेशान?
क्लास से दूर, सत्ता से विमुख 
जियांका मैम का पक्का मित्र,
शांत और सरल, सड़क पर घूम
टिंडर पर मचा रखी है धूम!

अरुण भाई-सा देखा पुष्पा 
झुकेगा नहीं किसी से साला,
स्मार्ट और गंभीर बहुत 
ईश्वर के नजदीक बहुत,
पोप जॉन के बाद है पैगंबर 
वाट्सऐप स्टैटस के पैगंबर!

मधुशाला

जब भी मद की कमी पड़ेगी
जब सूखे होंगे मन के वृंद,
जब शाम ढलेगी मिले बिना 
जब बंद होंगे सारे अरविंद,
तब हाथ पकड़ कर चलने को फिर 
साथ रहेगी मधुशाला!

जब रात पहर मे पढ़ते-पढ़ते 
आने-जाने लगे नींद पर नींद,
जब नारियल पानी नहीं बिकेगा
वो गुस्से मे होंगे तंग-दिल,
जब मेमो मिलेगा अच्छे काम पर 
खोलेंगे रिश्तों के ज़िल्द,
तब अपने गले लगाकर
अपना लेगी मधुशाला!

जब t-shirt खोजने वालों पर 
इल्ज़ाम लगेगा चोरी का,
जब राम नाम के मधुकर का 
सामना हो सीना जोरी का,
जब पहनावो की तर्ज़ पर 
बाटें जाएंगे भले-बुरे,
जब चुप रहने वालों को दुनिया 
बोले कमज़ोरी के जन्मे,
तब जटा खोल, गंगा निकालकर 
धो देगी मैल, कर देगी तर
नहला देगी मधुशाला!

Monday, 7 August 2023

मैडम

मुझको भी थोड़ा-सा 
आम कर दो 
मुझे मैडम न कहो, 
मेरा नाम कह दो!

इन चिमनियों के धुन्ध से 
कमरा ओझल है,
चिंगारियों की तलाश मे
आंखे बोझिल हैं,
कुछ मिजाज मेरा खास 
लोगों मे कहाँ है?
तुम आईने का मेरे 
इन्तेजाम कर दो!

मिट्टी के मलबे मे
मिट्टी ही तो है,
रूह को छुपाये
बंद मुट्ठी ही तो है,
ये आंखें नहीं सोयी हैं 
रात भर सब्र मे,
इन्हें सुबहों की रोशनी मे 
बेनकाब कर दो,

मेरी पानी की केतली 
आज गर्म करने दो,
मुझे मेरे गिलास आज 
खुद से धुलने दो,
मेरे खाने का मूड 
कुछ चटपटा-सा है,
आज रहने दो तस्तरी को 
अब आराम करने दो,

मुझे अपने हाथों से 
मेरा काम करने दो,
राम को जुबान पर 
कुछ विराम करने दो!

इम्तेहान

इश्क का हमारे 
इम्तेहान ले रही हैं,
वो हमसे पूछकर आज 
हमारी जान ले रहीं हैं,

ये अनार के सौदे 
एक बिमार से कर लिया,
वो दवा को मेरे आजकल 
कोई जाम कह रहीं हैं,

कभी देखती नहीं 
मेरी ओर मुड़कर,
वो अब हँसते हुए 
मेरा नाम कह रहीं हैं,

शिकायत मेरी 
खुदा से करेंगी,
वो आज डर का मेरे 
इत्मीनान कर रहीं हैं!





Wednesday, 2 August 2023

तकरार

मै तुमको और लुभाने को 
तकरार नहीं कर सकता,
मै अपने भाइयों से 
यलगार नहीं कर सकता,

और आवाज को तेज करूँ 
मै किसी तथ्य को आज रखूं,
मै अपना प्रेम जमाने को 
कोई रार नहीं कर सकता,

आज रहे मुस्काते चेहरे 
नहीं कोई मुह नीचे लटके,
मै खुशी का मोल चुकाने को 
तलवार नहीं धर सकता,
मै राम का नाम सुनाने को 
शिव द्रोह नहीं कर सकता!

Tuesday, 1 August 2023

दाव

आज हूँ मै दाव पर 
उनके सस्ते भाव पर,
उनकी लगी है शर्त 
उनके ही बयान पर,

आजमाना है मुझे 
उनको दिखाना है मुझे,
सबको यही जताना है 
यह दिल उनका दीवाना है,

उनको लगा कुछ और है 
मेरी समझ सब गौड़ है,
दाग है ईमान पर 
जो लुटा है एक मुस्कान पर!

रवि शंकर

रविशंकर की है बुद्धि कम 
रविशंकर मे नहीं है दम,
रविशंकर हो गया फेल 
रविशंकर सबसे बेमेल,

रविशंकर सबसे घृणा करे 
सबसे रविशंकर लड़ा करे,
रविशंकर को सब छोड़ गए 
रविशंकर का मुह तोड़ गए,

रविशंकर मुसलमान है 
रविशंकर पाकिस्तान का है,
रविशंकर एक ईसाई है 
उसका घर इस्राइल है,

रविशंकर काला नाग है 
रविशंकर खाली झाग है,
रविशंकर को सब pinch करो 
उसको को मिलकर lynch करो,

रविशंकर अभी अकेला है 
रविशंकर का कौन सहारा है,
रविशंकर मुझसे क्या लड़ पाएगा 
रविशंकर अब एक बेचारा है,

रविशंकर तो सुधर गए 
हम रविशंकर ही हो गए,
जग में रविशंकर एक ही थे 
अब रविशंकर कई हो गए,
रवि शंकर हमारा दर्पण है 
हम सबमे एक रवि शंकर है!

Friday, 28 July 2023

बड़े साहब

वो सीढ़ियों के पास खड़े
बातें लोगों को बता रहे थे,
यकायक बीच-बीच मे
अपनी आवाज़ वो बढ़ा रहे थे,

भौंहे तनी, आँखें चौड़ी 
हाथों को बरबस 
हिला रहे थे,
चहलकदमी करके वो 
इधर का उधर 
कुछ बता रहे थे,

आस-पास सब 
लोग जमा थे,
काम छोड़कर 
हुए मना थे,
साहब जी के 
मूड मुताबिक 
नाक और मुँह 
बना रहे थे,

कुछ ने कहा की 
बात सही है 
आज व्यवस्था 
मरी पड़ी है,
कुछ ने कहा 
ज्यादा हो गया,
रात की अब तक 
नहीं उतरी है,
कुछ ने कहा की 
कुछ गड़बड़ी है 
मैडम मायके से 
वापस आयी है,
अनिल बहुत ही 
सोच के बोला,
'सर सिगरेट से 
अच्छी बीड़ी है',

कोई बोला 
मुसलामान है,
कोई बोला 
बिन पगड़ी है,
कोई बोला 
टिकट कटा है,
किसी को लगा की 
आज फटा है,
किसी ने मेडिकल हिस्ट्री देखी 
'दुग्गल साहब' के जैसी सेखी
इंच-टेप से नपा हुआ है 
साहब मेरा bipolar है,

तब ही कोई और जोर चिल्लाया 
सारा मजमा उधर घुमाया,
साहब सरल विनीत मुस्काये 
हाथ जोड़कर आगे आए,
साहब के रोग दुरुस्त 
साहब हो गए एकदम चुस्त 
साहब ऐसे सकुचाये हैं 
लगता है 'बड़े साहब' आए हैं!

Theory of relativity

एक पेग मे
कुर्सी घूमी,
दूसरे पेग मे
कमरा घूमा,
तीसरे पेग मे
फर्श घूम गया,
चौथे पेग मे
लोग घूम गए,

पांचवें पेग मे
दुनियाँ घूमी,
WhatsApp ग्रुप
मे मैसेज घूमे,
मैडम आज 
आयी मधुशाला,
उनके कारण 
सिस्टम घूमा!

जाकि रही भावना जैसी

देखा मुझको 
क्रीड़ा करते,
देखा सर को 
मजे लेते,
आज ही 
छूने वाले को,
कह दिया 
कामी कहते-कहते,

मेरे प्रेम-भाव 
को परखा,
पशुवत-भाव मे
आज तौल के,
आज क्षणिक 
भावों मे बहके 
देखा उसने 
जग उल्टा करके!


Thursday, 27 July 2023

मणिपुर

वो भी हो गया 
जो लगती थी 
बीते कल की बात?

आज नए समाज 
के साजो-सामान,
उठाकर कैमरा 
और हथियार,
ले चले आबरू को 
बीच बाज़ार,

भीड़ के चेहरे 
बहुत हज़ार,
पर बदले की आग 
चढ़ परवान,
आज करते 
वस्त्र-हीन 
खुला व्यवहार 
भारत माँ के 
चीर फाड़,
संदेश देखता 
संपूर्ण संसार,

द्रौपदी का चीर 
पूरे उतार
करता दुर्योधन 
यह ललकार,
जीतने की 
वस्तु हो या नहीं 
पर न्याय का 
सबको है अधिकार,
अपनी लूटी हुई 
इज्ज़त का 
चीर खोलकर 
करता निस्तार,

मोहन के चरखे 
मे आएगी 
अब कैसे 
सूतों की धार,
जो सत्याग्रह
राह से बुनकर,
बढ़ा सके नारी सम्मान,
बचा सके इज़्ज़त और मान
नारी ही को 
बनना होगा,
आज अपना ही पालन-हार !

Wednesday, 26 July 2023

रुबरु

रुबरु हैं आज 
उनके सामने हम,
अब है अगन
हर्षित है मन 
हर टूटते बंधन,

घर के घेवर
तीखे तेवर,
रुकी हुई मुस्कान,
आज सुनने 
और सुनाने 
को बहुत से बैन,
आज चमकीले से जुगनू 
फिर वही दो नैन,
आज सूरज डूबा मगर 
फिर भी हुयी ना रैन,

आज छाया है उजाला 
आज सावन का नज़ारा,
आज बैरागी हवा 
आज राँची का किनारा,
सब हुए हैं मौन,
 संग आवेग और उल्लास 
आज गौरी से मिले हैं 
महादेव कर उपवास! 

Monday, 24 July 2023

वजह

उजालों का सहर नहीं 
उम्मीद की एक किरण तो हो,
हम सितारें तोड़ लाए आसमान से 
पर उसकी कोई वजह तो हो,

सरफरोशी के लिए
हम तो हैं हाज़िर मगर,
इस ज़माने मे आजकल 
इश्क करना गुनाह तो हो,

चुप रहे हम मुस्कुरा कर 
उनके शान और शोख मे,
पर हमारी ख़ामोशी की 
उनको भी परवाह तो हो,

हैं नहीं मेरे शहर मे
आज थोड़े दूर हैं,
पार कर दे बंदिशों को 
पर कोई शरहद तो हो,

हम ख़ुदा से भी मांग ले 
उनको अपने वास्ते,
उनको मेरा छोड़ पहले 
और कोई मज़हब तो हो!




Friday, 21 July 2023

धूप

तुम खिली हुई सुबह की धूप 
ओश की बूँदों को
घास के तिनकों वाले 
जुल्फों पर उड़ेलती
और टपकाती,
ठंडी हवा के रेशों की 
उँगलियों से संवारती,
खुद को हल्की गर्म 
थोड़ी नर्म सुनहरे 
उजाले-सी फैलाती,

सरोवर के आईने मे
सूरत निहारती,
और हया मे लाल 
हो बिखर जाती,
क्षितिज के गालों पर 
रंग जाती,
फ़ूलों की पंखुड़ियों
की चादर मे 
कुछ पल सिमट जाती,

धीरे-धीरे ओर को 
पलट कर ताकती,
सिलवटें रेशमी 
बिछावन की खोलती,
आँखें सीपियों मे
मोतियों सरीखी
शरारत मे चमकती,
 
कुंजन करती 
कोयल की-सी
आह्लाद को 
करती कल्लोल,
कलरव से इठलाती,

नदियों पर 
बन मुस्कान तैरती,
कल-कल कलाईयाँ खाती,
सूइश संग गुलाटीयाँ लगाती,
चिड़ियों के संग उड़ जाती 
अम्बर तक छा जाती!

Thursday, 20 July 2023

घर चले गए

छाती पर हमारे मूंग वो 
दर कर चले गए,
रुसवा न हुए, कुछ कहा नहीं 
वो घर पर चले गए,

ना जिक्र किया,
ना क्लास आए,
ऐप्लिकेशन भी दिए बिना 
वो सर को चले गए,

ना मिट्टी उठी,
ना अर्थी सजी,
बिन चिता लिटाये यारों हम 
मर कर जले गए,

घर का पता 
मालूम नहीं,
ना जाने का
मकसद ही पता
वो दिल को हमारे छोड़ 
किस शहर को चले गए?

हम शाम को 
क्लास खत्म करके,
जब दरवाजे उनके पहुचे,
पता चला वो 
अकेले ही 
दोपहर को चले गए,

अब कैसे करें इन्तेज़ार
कैसे भरपाई करें वक्त, 
हमें अकेला छोड़ वो 
हफ्ते भर को चले गए,

कई हो गए बीमार
कई उठा लड़े तलवार,
कोई नोच रहा कपार
जिसको उनसे था प्यार,
आशिकों की भीड़ मे 
मचा के ग़दर वो चले गए,

तमन्ना थी, आरजू थी, और 
ख्वाहिशें थी दीदार की,
जाम का दरिया था और 
अंजुमन थी सभी यार की, 
एक झलक की टकटकी 
दरवाज़े पर टिकी थी,
गुस्ताख़ी आज करने की 
बाज़ी कोई लगी थी 
महफ़िल को बनाकर मेरी 
शब-ए-ग़म वो चले गए!

उनसे हाथ मिलाया 
खुलकर नाचे उनके साथ,
किसी से खिल्लीयाँ की खूब 
किसी से रात भर की बात,
हमारे रुख किया तो 
याद आया हो रही थी देर,
देख कर मेरी फकत
मजहर वो चले गए!

अब मुस्कान कहाँ उनकी 
कहां से लाए चंचलता,
वो सजा के ख्वाबों को मेरे 
एक नजर में चले गए!😔

Wednesday, 19 July 2023

खाली

खाली मेस की टेबल 
उसपर कैसे खाना?
खाली थाली भर कर 
क्या अकेले मुह डोलाना ,

जब दोस्त नहीं, ज़ज्बात नहीं 
किसी का सामने साथ नहीं,
कोई नहीं टिप्पणी करता हो 
कोई रोटी नहीं झपटता हो,

कोई नुक्श निकाल के बोले न
कोई थाली छोड़ के डोले न,
रोटी देकर चावल ले 
कोई पनीर का टुकड़ा छोड़े न,

तो भूख भी कैसी ठंडी हो 
पेट भरण की जल्दी हो,
मेस का खाना अधूरा हो 
जब दोस्त का साथ न पूरा हो!

रावण मूर्ति

रावण अपनी मूर्ति जलाता 
राम का ले सहारा 
खुद की चिता सजाता,

धुआं और रंगीन पानी 
एयरपोर्ट से खरीद लाता,
घर को पीछे छोड़ आता 
मदमस्त हो जाता,

और गाता नाचता 
लोगों को बुलाता,
मधुशाला की रात मे 
चाँद लगाता,

प्रेम के किस्से सुलझाता 
पींगे लोगों के बढ़ाता,
मुस्कुराता, एक क्वार्टर चढ़ता
और शुरूर मे हो जाता,

एन्जॉय करता रावण 
अपनी मूर्ति मे आग लगाता 
एक पेग और बनाता,
किडनी को शूली पर चढ़ाता !

Tuesday, 18 July 2023

दर्श

आज बीत गया दिन 
मैंने उनको नहीं देखा,
आज सूरज तो उगा 
पर ढलते नहीं देखा,

तस्वीर देखी नयी उनकी 
WhatsApp की DP मे
सुबह से कुछ भी फिर 
बदलते नहीं देखा,

बातें सुनी उनकी 
होती सुनी चर्चा,
मै चुप रहा केवल 
कुछ कहकर नहीं देखा,

मेरी हकीकत मे
उनकी मौजूदगी भी है,
जिसको आज तक मैंने
मुड़कर नहीं देखा,

वो देखते हैं मुझको 
जाने किस इरादों से,
यह देखने को आज 
उन्हें छुपकर नहीं देखा!


Monday, 17 July 2023

chill

जो होता 
इश्क पर कोई जोर,
तो हम गुनाह नहीं करते,
बात आपसे करते 
मगर परवाह नहीं करते,

जो होते 
लोग ना शामिल 
तो हम शेर नहीं लिखते,
बात जमाने की लिख देते 
आपसे दूर न रहते,

जो होती 
दूरी की गुंजाईश 
तो कहीं और रह लेते,
दिल को फुसला लिया करते 
इसे मजबूर नहीं करते!

बदतमीज

बदतमीज कह दिया हमे 
खुलकर जमाने मे,
हम हार बैठे इज्ज़त भी 
यूँ दिल आजमाने मे,

अब फैसले उनके हैं 
मेरा खयाल रखकर,
चाहते आए मजा 
हमको निभाने मे,

होने लगी रुसवा वो 
पुराने मिज़ाज से,
बस हमारी ही याद है उन्हें 
किस्से पुराने मे,

हमे चुप ही रहने की 
दी हिदायत सबके सामने,
अब है हिचक उनको भी 
मेरे गुनगुनाने मे,

मुस्कुराना आ रहा था 
सोचने पर पहले 
लाली आ जाती हैं 
बस नाम आने मे!

Sunday, 16 July 2023

कविता

बस गुदगुदी होती है 
कलम चल जाता है,
आपकी याद आती है 
मन मचल जाता है,

मैं चाहता तो नहीं 
आपकी बात को लिखना,
बस  हवा चलती है 
सब बदल जाता है,

कुछ किताबें पलट कर 
दिल जमाता तो हूँ,
एक किरण आते ही 
ये पिघल जाता है!

Saturday, 15 July 2023

बेवक्त

बड़े बेवक्त आए हो
दिल से गुफ़्तगू करने,
मेरे ठहरे हुए मन को 
फिर से आरज़ू करने,

अभी तुम मुस्कराओगे 
फिर से मान जायेंगे,
तमन्ना छेड़ते हो तुम 
लगे हम भी वजु करने,

तुम बोलते हो खूब 
महफ़िल लूट लेते हो,
हमको दे दी है कसम 
ज़रा-सी बात भी करने,

अब जो रुखसत का वक्त 
आया है सामने,
तुमको क्या बताये हम 
कितना भारी है पैर उठने!




ऑक्शन

मिलने की ख्वाहिश है 
पर मुलाकात नहीं कर सकता,
फोन नंबर तो है उसका 
पर बात नहीं कर सकता,

यूँ तो खरीदा है 
सबसे महँगा हमें,
पर किराये की हकीकत को 
कोई प्यार नहीं कह सकता,

उनको देखने को बैठे हैं 
खाना खाने के भी बाद,
ये बयार है झरोखों की 
इसे बहार नहीं कह सकता,

पूनम की-सी शांति है 
उनके साथ होने पर,
वो बस मेरी आरज़ू हैं 
उन्हें चांद नहीं कह सकता,

हमारी हरकतों पर गिराती हैं 
वो मुस्कान की छींटे,
पर बूँदों के काफिलों को 
मैं बरसात नहीं कह सकता,

हमें भोला समझकर वो
जो प्यार से ज्ञान देते हैं,
मैं गंगाधर ही ठीक हूँ 
अभी शक्तिमान नहीं बन सकता,

गाओ-बजाओ, मुस्कराओ 
और नाच लो ज़रा,
यारों की इस महफ़िल में कोई 
मेहमान नहीं रह सकता,

सलामत खुद को करते हैं 
हमसे दूर जाकर वो,
मुझे बादल ही है मंजूर 
अभी आसमान नहीं बन सकता,

उन्हें ढकना, दिखा देना 
मिचौली खूब भाती है,
हवा मे उड़ते रहने दो 
नदी-तालाब नहीं बन सकता,

हमें खुद ही उठाएंगे 
बरस कर जब बहेंगे हम,
बैसाख मे मुस्कराएंगे
ज्येष्ठ मे तिलमिलाएंगे,
अभी बिज़ली गिराने दो 
अभी शैलाब नहीं बन सकता,

कभी पल्के बना लेंगे 
कभी पर्दा लगाएंगे,
अभी बाकी मोहब्बत है 
अभी अंजाम नहीं कह सकता,

यूँ तो नाम लेने से 
हमें सुकून मिलता है,
कसम को तोड़कर उनकी 
मैं बदनाम नहीं कर सकता,

वो इंकार करती हैं 
हमारी शायरी पढ़कर,
उनका नाम लिख-लिखकर 
उनको हैजान नहीं कह सकता,

वो आज भी दिखते हैं 
मेरी आँखों के आईनों मे,
मुँह छुपा तो सकता हूँ 
मगर मैं साफ़ नहीं कर सकता,

मेरे दोस्त जलाते है मुझे 
उनकी तस्वीरें दिखाकर,
मै रूठ तो जाता हूँ 
मगर मुस्कान नहीं ढक सकता,

वो लंदन की गोरी हैं 
मैं खादी पहनता हूँ,
इशारे समझता हूँ 
पर बात नहीं कर सकता,

उनको मिलने के बहाने 
हम तो क्लास जाते हैं,
कहीं transfer न हो जाए 
इसलिए फॉर्म नहीं भर सकता,

गुल-ए-गुलफाम की गुंजाईश 
गुरबत मे कर रहा हूँ,
दोनों हाथ लिख लूंगा 
मैं आराम नहीं कर सकता,

कैफ़ियत लूटा दी अपनी 
हैसियत बनाने में,
अब जुनून है इरादों मे
फ़खत अरमान नही कह सकता,

इश्क हो रहा है तो भी 
आजमाना चाहता हूँ,
दिल की बात को इस बार 
मैं 'हे राम' नहीं कह सकता,

वो खुल के भींगती हैं 
हम छाता ओढ़ाते हैं,
उन्हें पहले से सर्दी है 
मै बुखार नहीं कर सकता,

बड़ी सिद्दत से चाहा है 
मेरी प्राइवेट मोहब्बत है,
PC-16 भी पढ़कर 
सरकारी काम नहीं कर सकता,

वो दवा- दारु पे जीती हैं 
मैं योगी महात्मा हूँ,
जाम बना तो सकता हूँ 
मगर प्रणाम नहीं कर सकता,

वो देखें रात भर फ़िल्में 
मै सुबह सूरज उगाता हूं,
मैं attendance तो लगा दूँगा 
उनको क्लास नहीं ला सकता,

जब लाइब्रेरी मे सामने वो 
मेरे चुप-चाप सोते हैं,
सूरज थाम लेता हूँ 
की अब शाम नहीं कर सकता,

सितारों आओ और उनको 
शामियाना सजा दो,
मेरे हाथ जल गए हैं 
मैं इन्तेजाम नहीं कर सकता,

बहारों आओ और 
उनको लोरियाँ सुना दो,
उनको नींद आ रही है 
दिल के पैगाम नहीं कह सकता,

अभी मुकर्रर न करो 
हमारा नाम महफिल मे,
उनकी खिदमत मे लगा हूँ 
मैं कोई काम नहीं कर सकता,

गंगा जटाएं छोड़ दो 
मोहन की मुरली तोड़ दो,
चाँद छुप जाओ कहीं 
सूरज निकलना छोड़ दो,
फरिश्ता हो गए हैं वो 
उन्हें इंसान नहीं कह सकता,

उनका नाम जपकर हम 
काफ़िर हो हैं अब,
इन्हीं नजरों से सूरज को 
नमस्कार नहीं कर सकता,

मुजाहिर अब कहेंगे लोग 
वापस जब भी जाएंगे,
तुम्हारे दर से भी बेहतर 
मै कोई धाम नहीं कह सकता,

'चीकु' ने दिया धोखा 
उन्हें सबसे शिकायत है,
तुम्हारी आन की कीमत तो 
दीवान-ए-आम नहीं भर सकता,

करोड़ों फूल खिलते हैं 
जब वो मुस्कराते हैं,
Oppenheimer बनाकर बम 
भी वो मुकाम नहीं कर सकता,

अभी थोड़ा-सा लेटे हैं 
जरा आराम करने को,
उनकी याद आयी तो 
मैं करवट थाम नहीं सकता,

परेशानियों मे भी
हम उनको याद करते हैं,
वो उदास न होये 
की मैं नाकाम नहीं रह सकता,

अब नहीं है उनसे 
कोई उम्मीद मिलने की,
पर दिल है जनाब 
कोई बाँध नहीं सह सकता!

चाय

चाय ही सही 
तुम्हारे साथ के लिए,
भीड़ ही सही 
कुछ बात के लिए,
सुन भी लेंगे 
किसी और के किस्से,
तौहीन ही सही 
तुम्हारी मुस्कान के लिए,

पढ़ाई तो नहीं 
क्लास मे कर रहे,
मौका है मेरा 
तुम्हारे पास के लिए,
कुछ देर मे होगी 
तुम भी रुखसत कहीं और 
कुछ दिन ही बचे हैं 
मुलाकात के लिए,

इन किताबों के पन्ने 
हैं पलटने मगर,
किरण भी चाहिए कुछ
इस बरसात के लिए,
हर बात तो कह कर 
बता नहीं सकते,
चुप हुए हैं आजकल 
अंतराल के लिए,
हमसे दिल की ये बातें 
अब छुपती कहाँ हैं,
नजरें चुराते 
हर बात के लिए,

तुमको ये डर है 
की हो न नुमाइश,
तुम हो तो नहीं 
इक मज़ाक के लिए,
Feelings ढूंढ़ने मे
खपाया है वर्षों,
अब बिकना ही क्यूँ 
इक ज़ज्बात के लिए,
दो नदी के किनारे 
चलते हैं साथ मे,
क्या है मिलना किसी से 
चंद रात के लिए!


Friday, 14 July 2023

राँची का सूरज

राँची का सूरज चला गया 
वो सुबह-सुबह
जा सोने वाला,
गंगा-सा 
मन धोने वाला,
दूसरों को हँसाने वाला 
सबके आँसू पोछने वाला,

राँची का सूरज चला गया!

वो बात-बात पर 
झुकने वाला,
साढ़े 12 उठने वाला,
हर खेल को 
मिलकर जीतने वाला,
Walk of pride 
करने वाला,
शेर हमारा चला गया,

कविता क्लास मे
पढ़ने वाला,
वो किरण के 
प्रेमी का साला,
जियांका को 
हंसाने वाला,
पोल डांस 
दिखलाने वाला,
PD से ना 
डरने वाला,
मेरी attendance 
लगाने वाला,
मेरा मंदिर 
बनवाने वाला,
सबको खूब 
नचाने वाला,
पीकर हुड़दंग 
मचाने वाला,

90° गेंद घुमाकर 
पीछे मुड़ मुस्काने वाला,
वो दाएं देखकर 
बाये serve लगाने वाला,
वो ट्रेन की 
training मे जाकर,
पटरी से ट्रेन 
हटाने वाला,
वो बाबा साहब को राँची 
दीवारों पर 
टांगवाने वाला,
स्पन्दन को भी 
लंबा लंबा चूल 
पर ठुमके 
लगवाने वाला,
हर गाली को 
डबल लगाकर 
नया सबक 
सिखलाने वाला,

करके राँची को अँधियारा 
बीच राह मे बदल गया,
सूरज हमरा चला गया!

Wednesday, 12 July 2023

इश्क

कुछ होश नहीं रहता 
कुछ ध्यान नहीं रहता,
इंसान मोहब्बत मे
इंसान नहीं रहता,

उनका नाम जुबां पर है 
ऐसी इश्क की फितरत है,
कोई जान लुटाता है 
यूहीं बदनाम नहीं रहता,

यूँ तो इबादत मे
हम शामों-शहर बैठे,
उनपर नज़र करके 
मेरा ईमान नहीं रहता,

गर तुम जो ये चाहोगे 
तो मर के दिखा देंगे,
जब बात तुम्हारी हो 
तो मैं नाकाम नहीं रहता,

कहने को तो हम 
दिल के हाल खुला कह दे,
पर सामने आने पर 
यह आसान नहीं रहता,

हम प्यार जताने को 
कोई गीत नया लिख दे,
पर आँखें ही न बोल सकीं 
तो फिर अभिमान नहीं रहता!



Tuesday, 11 July 2023

Interest

जिसको मूलधन दे दिया 
वो ब्याज की बात करते हैं,
जिसको पनीर खिला रहे 
वो लहसून प्याज की बात करते हैं,

दिल की बात नहीं समझते 
वो अंदाज की बात करते हैं,
हमारे आँखों है नम हो रही 
वो अल्फाज की बात करते हैं,

आज रुसवा हुए हैं 
औरों की बात सुनकर,
वो उधर देखकर 
सारे जहां से बात करते हैं,
अब चुप रहने लगे हैं 
उनके सामने आने पर,
वो मुस्कराकर
हमारी शाखों पर वार करते हैं,

इतने बेख़बर होने का 
बहाने किया करते हैं,
वो हमारे जाने पर 
दरवाजों से गले मिलते हैं,
अपने काम हमें वो 
बताकर नहीं कराते,
हमारे प्रेम का 
ऐसा इम्तेहान करते हैं,
धुन हमारी सुनकर 
उसे शोर कहते हैं,
इबादत मे तुम्हारे साथ 
जिनका नाम खुदा कहते हैं,

रोक लेते अगर
दूर जाने से पहले,
अंगूठा काट देते हम 
मुख से न राम कहते हैं!

संपूर्ण

रह गई 
कुछ कहने वाली 
बातें चार जनों के बीच,
ठहर गई 
कुछ कहने वाली 
जुबां हमारे मन के भीच,

राह मे राम के 
फूल बिछाये,
अपने नीर को 
और बहाए,
हमने घूमे 
चारो धाम,
पर किसको मिलते पूरे राम?

कुछ सोचा 
तो हुआ नहीं,
कुछ पाया 
पर जँचा नहीं,
समझ समेट के 
मुट्ठी भर का,
साधने चले 
बड़ा मैदान,
किसके बस के पूरे राम?


तन्द्रा

बिन समस्या 
ढूंढता समाधान,
भय मे डूबा
अंतर्ध्यान,

कैसी विवेचना 
कैसा ज्ञान,
जब मन से 
मौन हुए सिया राम,

आज न लो 
कोई भी फैसला,
पहले टूटे 
भय की तन्द्रा,
जो विस्मृत 
कर दे हर ज्ञान,
आए किरण 
जो द्वार सुजान 
तब अन्तर की 
खुलती निद्रा!

Saturday, 8 July 2023

पा लूँ

कोई चीज नहीं 
की सबसे पहले 
कर लूँ हासिल,
और छीन लूँ 
किसी और से 
भोंक दूँ तलवार,
खरीद कर 
ला दूँ तुम्हें 
मैं लूट लूँ बाजार,

फिर लगाकर लड़ी
खिड़कियों दरवाजों पर,
करूँ घर का मैं श्रृंगार,
या उठाकर 
रख दूँ तुम्हें 
ऊँचे मर्तबान
जहाँ छू ना सके कोई 
तुम रहो नहीं इंसान,
तुम से लूट कर तुमको 
तुम पर करूँ 
मैं कोई बड़ा एहसान!

Friday, 7 July 2023

गुनाहगार

ज़माने मे कितने ग़म हैं 
हम पर भी हुस्न के 
गहरे सितम हैं,
मशगूल हैं लोग 
हमारी कदर खोने पर,
नाम लेते हमारा 
वो ही क्या कम है?

उनसे मोहब्बत 
करते बहुतेरे,
उनकी इनायत को 
बहुतों को फेरे,
उनकी मुस्कान को 
खेलते हैं खेल,
उनके नजारे को 
ताकतें मुंडेर,
उनकी महफिल मे 
हम ही हैं गुनाहगार,
उनकी उल्फत को झेले
हम मे ही दम है?

पूछते हैं बहुत 
खैरियत की ख़बर,
चुराते बहुत 
उनसे राहों मे नजर,
नाम लेते नहीं 
बिन नज़र को चुराए,
इश्क करते हुए 
कर रहा है असर,
अब फिसल भी ना जाए 
तो कैसे सनम हैं?

हर आहट पर 
आने की उनकी तमन्ना,
हर बात पे उनके 
विचारों की दुनिया,
हर अक्षर पर उनके 
फंसाने चाहूँ लिखना,
यूहीं हर बखत
तराने गुनगुनाना,
अब खुश भी ना हों 
ये कैसी कसम है?

तुनक से तुनक कर
बहस हो रही है,
आने की जाने की 
वजह बढ़ रही है,
खुशामद करे तो 
बहुत-सी तारीफें,
उनके रगों मे
लहू उबाल की है,
मज़ा आ रहा है 
ये नशीला वहम है!


Thursday, 6 July 2023

खाना

आज माँ नहीं 
स्कूल को जाते हुए,
मुँह मे निवाला 
ठुसाते हुए,

आज प्रार्थना से पहले,
पढ़ाई से पहले,
अन्न को अंजुरी 
चढ़ाते हुए,
प्रिन्सिपल सर के 
नियमों को 
स्कूल से बाहर,
पल्लू से सर से 
सुखाते हुए,

आज मेस है 
बर्तन पर बर्तन 
सजाते हुए,
आदेश पर 
omelette बनाते हुए,
आज उत्तम भैया हैं 
खाना बनाकर 
भगाते हुए,
ऑफिस की ड्यूटी 
बजाते हुए,
आज बच्चे 
बड़े हैं 
क्लास मे सैंडविच 
छुपाते और खाते हुए,
मक्के की रोटी भूलते हुए!



Reflection

कभी खुद को 
आईने मे देखो,
ऐसे ही नाहक 
मुस्कराते हुए,

जब किसी बात 
फ़िक्र नहीं करती,
तब देखो खुद को 
इतराते हुए,

उँगलियाँ उठाकर 
लड़ते हुए,
अपनी बात को 
समझाते हुए,
उस आवेग मे
मन डोलाते हुए,
खुद अपनी 
किरण मे
नहाते हुए,

मेरी कविताओं को 
दिल से सुनते हुए,
लाली को गालों पर 
चढ़ते हुए,
डर के 
कोई अपने को 
ढूंढ़ते हुए,
मेरी साथ 
राहों मे चलते हुए,

कभी रुक जाओ 
तुम मुझसे चिढ़ते हुए,
अपनी नाक का 
रंग बदलते हुए,
कभी बाहों मे मेरे 
छोड़ दो खुद को यूहीं 
जब उफन जाती हो 
मुझसे जलते हुए,

आंखों को छोटा 
करके निहारो,
तुम मेरी जब आदतें 
बदलते हुए,
आओ मुझको 
छूकर जरा देख लो,
मुझको अपने 
जैसा सवारते हुए!

राम का हाथ

उसको कौन-सी 
राह सुझाएं 
राम ने जिसको 
छोड़ दिया ?

महावीर की 
चौखट बैठे,
ध्यान किया 
और घर को लौटे,
राम ने उसको
हाथ बढ़ाया,
राम-मधु को 
खूब लुटाया,
पर राम की माया 
मे लिपटाया,
अब उसको
कौन होश मे लाए?

राम का सेवक 
राम की छाया 
राम, राम को ही 
समझाये!

Monday, 3 July 2023

कहाँ नहीं हैं राम?

कहाँ नहीं हैं मेरे राम?

चींटी मे, तिलचट्टे मे
मच्छर मे, गुलदस्ते मे,
बकरी मे और कुत्ते मे
शेर, हिरण और पत्ते मे

लड़की मे और लड़के मे
कर्मचारी और अफसर मे
घर मे और दफ्तर मे
किचन मे और बिस्तर मे,

आम मे, अमरूद मे
संतरे मे, जामुन मे,
भिंडी मे और परवल मे
दहाड़ मे और कलरव मे,

हर दिशा मे, हर क्षेत्र मे
हर रूप मे, हर भेद मे
जहाँ नहीं हैं मेरा काम 
वहाँ भी रहते मेरे राम!🙏



किरण

कौन है किरण?
 
एक भँवरे की गुंजन 
एक तितली की स्पन्दन,
एक चिड़िया की चहक 
एक फूल की महक,
एक सुबह का उजाला 
एक शाम सितारा,

एक बटोही की उम्मीद
एक गुमराह की तकदीर,
एक माँ की तपस्या 
एक पिता की सफलता,
एक भक्त की ज्योति 
एक सीप की मोती,

विज्ञान की कोई खोज 
ज्वार-भाटे की मौज,
कलाम की एक सोच 
Oppenheimer की approach,
न्यूटन की फोटोन 
Einstein की पहचान,

किसी बच्चे की मुस्कान 
खुलती हुई रमजान,
पहाड़ों की चमक
ठहाकों की खनक,
राम का तिलक 
शिवशक्ति की झलक,

गंगा की पवित्रता 
मानसरोवर की शीतलता,
बारिशों का श्रोत 
सूर्यवंशीयों की गोत्र,
कविताओं की पहुंच 
या इतिहास की समझ!

सच्चे दिल सरकर
हर वक्त की बहार,
जीवन का उल्लास 
दोस्तो मे झक्कास,
करोड़ों फूलोँ की मुस्कान 
थोड़ी-सी शैतान,
हल्की-सी परेशान 
जयपुर की शान 
Women with a difference
lady with a class?
Or puffed with a cigarette 
drowned in a glass?

Sunday, 2 July 2023

विशाल-नीरज

जब सूरज नहीं निकलता है 
तब पास तुम्हारे आता हूं,
जब मुस्कान खोजता हूँ 
तो पास तुम्हारे आता हूँ,

जब अपने से मैं तंग हुआ 
संसार देखकर दंग हुआ,
सपनों की झूठी उलझन मे
जब अकेला मै हो जाता हूँ,

जब बचपन की 
गली मे जाना हो,
जब खुलकर 
नाचना गाना हो,
जब दोष कोई 
मुझपर मढ दे,
और संशय कोई 
मिटाना हो,

जब समझ कोई 
पाए न हमे,
जब डर से अपने 
पांव रुके,
जब प्रेम-प्रपंच मे
रास्ते बंद,
जब दिल लग जाये 
किसी के संग,
तब अपनी बात बताने को,

जब राम स्तुति करते हैं 
जब नाम कृष्ण का जपते है,
हनुमान से मस्त कलंदर को 
जब आस-पास ढूंढ़ते हैं,
जब भरत की बातें होती हैं
जब लक्ष्मन रात टहलते हैं,
जब नयन गोविंद के दर्शन को 
एका एक अकुलाते हैं,
हम छोड़ के अपनी कण्ठी-माला
आप से हाथ मिलाते हैं,

जब खेल कोई भी खेलते हैं 
जब TT बैट उठाते हैं,
जब सुबह-सुबह साइकिल लेकर 
हम मान सरोवर जाते हैं,
जब अक्षय कुमार की फ़िल्मों का 
हम कोई गाना गाते हैं,
जब बाबा साहब की तस्वीर
हम दीवारों पर लगाते हैं,
तब जीवन तत्व की मूर्ति को 
हम आपके अंदर पाते हैं,

जब सूरज नहीं निकलता है
तब पास तुम्हारे आते हैं!




Saturday, 1 July 2023

होश

मैं देख सकूँ तुमको 
इसलिए होश मे रहता हूँ,

तुम जाम सजाते हो 
धुएँ के गोल बनाते हो,
छलकाते हो मदिरा 
दिल के राज बताते हो,
मै साथ तुम्हारा दे पाऊँ 
यह जोश मे रहता हूँ,

तुम आँखें छोटी कर लेते 
दोस्तों के दर्द खुला करके,
जादू की झप्पी दे देते 
जब वो रोते बिलख करके,
मै कंधों पर सर को ले पाऊँ 
इसलिए निर्दोष मैं रहता हूँ,

किस्से- गोई मे हँसा-हँसा कर 
पेट मे दम कर देते हो,
अपने गली-मुहल्लों की 
होली मे हमे भिगोते हो,
सूखे चखने खा पाऊँ 
मै रेस मे रहता हूँ,

नाचना तांडव शिव जैसा 
और गाना मीरा का प्रेम भरा,
रास कृष्ण के गोकुल का 
और ज्ञान कुरुक्षेत्र वाला,
मै देख तुम्हारी मधुभक्ति 
बुद्ध-सा तृप्त जो होता हूँ,

मेरे राम का ऐसा रूप देख 
मै चकित बहुत हो जाता हूँ,
मै अपने भ्रम का धनुष तोड़कर 
कुछ और स्थिर हो जाता हूँ,
राम नाम की मदिरा मे
मदहोश मैं रहता हूँ!

Sunday, 25 June 2023

ख़त

कितने ही खत भेजे तुमको 
अक्षर-अक्षर चुन-चुन के,
कितने बीते बरसात के दिन
बूंदे-बूंदे आँगन गिर के,

उन बूँदों के गिरने भर से 
तुम ध्यान नहीं देती हो,
प्रिय तुम मेरे खत पढ़कर 
अब जवाब नहीं देती हो,

कब डोली मे तुम बैठोगी
अंगना अपना छोड़ प्रिये,
किस चौखट पर छन से धर दोगी 
तुम पायल से उन्माद प्रिये,
तुम किसे पुकार कर प्रेम से अब 
भर दोगी फिर से प्राण प्रिये,
तुम मेरे मेघदूत को अब 
बरसात नहीं देती हो,

जब घर से बाहर जाती हो 
तो कौन तुम्हें पहुँचाता है,
तुम्हारे कंधों पर हाथ धरे 
यह कौन पूछकर बढ़ता है,
अब सरोज से कोमल तन पर 
किसका बाल लहलहाता है,
तुम धूप-छाँव के खेल मे अब 
जलने मेरे पाँव नहीं देती हो!


Friday, 23 June 2023

विदाई

अभी छोड़कर जाना है
यह घरबार पुराना है,
यह मेरा नहीं ठिकाना है
बंधन का तो बहाना है,

आज रुके ये आँसू हैं 
आज मित्र हैं गले लगे,
आज शब्द न सूझ रहे 
आंखें चोरी से लुका रहे,

आज नहीं कुछ बोले वो 
आकर चुप हो सोये वो,
मेरे सामान को कंधे धर 
मुझको छोड़कर रोये वो,

उनके हाथ से हाथ छुड़ा 
रोटी कमाने जाना है,
आज ये रीत निभाना है 
आज छोड़कर जाना है!

Monday, 19 June 2023

बोझ

राम का बोझ 
उठाने वाले,
राम के नीचे 
दबा हुआ है,
गलत-सही का 
फैसला करके,
खुद के ऊपर 
लदा हुआ है,

यह कैसे 
धरती को धूरी 
नचा-नचा कर 
थका हुआ है,
आज बहुत 
रोता है बैठकर,
जो राम से पहले 
लड़ा हुआ है,

बोझ राम का 
ढोने वाला,
राम से मुड़कर 
चला हुआ है!

Sunday, 18 June 2023

कामनाएं

कामनाएँ हैं बहुत-सी
बार-बार आती,
यौवन की 
माया को माने
और भड़क जाती,

यह चाहती 
भ्रम तौला जाए
नए-नए रूपों मे,
कुछ आजमाना चाहती 
हर स्वाद को 
कयी स्वरूपों मे,

शृंगार का मद
रखना चाहे 
ये चिरकाल बचाकर, 
अपने उतावलेपन को देखे
प्रतिबिंब सब पर बैठाकर,

पर कहाँ-कहाँ 
प्रतिबिंब की छाया
के पीछे भागे,
मन जहां पहुँच 
को ले जाता 
कामना और आगे,

राम की सैया 
पायी मिट्टी,
उसको ढोकर दौड़े,
मानव शरीर की 
कर पलीद यह 
नाहक बैठा रोये,

राम की मिट्टी 
मे भरने को,
विवेक-जाप 
का पानी,
कामनाएँ 
चमकती अनवरत
होंगी तब बेमानी!

Saturday, 17 June 2023

काज

हर मौके पर 
मुझे काम बता दो,
मुझको मेरे 
राम बता दो,
मुझको कोई 
कोना दे दो,
भजने वाले 
नाम बता दो,

आज बहुत है 
गर्मी घर मे,
आज की बिजली 
खपत बहुत है,
आज कोई 
पंखा बंद करके,
आँगन मे एक 
आम लगा दो,

आज सड़क पर 
है सन्नाटा,
आज नहीं कोई 
सिग्नल जोहता,
आज बंद हैं 
सब दरवाजे,
आज दुकान मे
राजू सोता,
दादी माँ 
आयी ले झोली,
कुछ जामुन के 
गुच्छे खोली,
उनको भी फुटपाथ
मिला क्यूँ?
घर जाने दो 
उनको भी अब,
जामुन के कोई 
दाम बता दो!

आज 'बापू' 
की मूर्ति खड़ी है,
चौराहों पर 
रस्ता देखे,
उनके नीचे 
खेलते बच्चे,
नाचते गाते 
गर्मी टालते,
कहाँ से लाते 
इतनी प्यारी,
वो अपनी 
मुस्कान बता दो,
मुझको भी वो 
आराम बता दो!




Thursday, 15 June 2023

याद

कब तक याद 
रहेगी मुझको,
अपने रोने 
वाली बात,
कब तक 
मन से डरा रहूँगा, 
जिसे न पा 
सकते हो हाथ,

कब तक 
राम से दूर रहूँगा,
जब डूब के 
भक्ति पाऊँगा,
कब तक 
पाँव के 
छालों को 
पंचकोश की 
राह में रोऊँगा?

कौन याद रख
पायेगा दुख,
राम राज्य के 
आने पर?
किसके मन मे 
व्यथा बचेगी 
सब राम चरण 
मे चढ़ाने पर !

Wednesday, 14 June 2023

परजीवी

आज लताए
खोलकर,
तरंग मे सब 
घोलकर,
जिन डालियों 
पर तुम 
लिपटता चाहते हो,

आज हो निर्बाध 
बहना चाहते हो,
आज किनारों 
को उधेड़ना
चाहते हो,

आज मय मे
लिप्त हो,
बोझिल हुए हो,
आज होने तृप्त 
तुम बहने लगे हो,
परजीवी बनकर 
तुम क्यूँ जीना 
चाहते हो,
वनवास देकर 
महल क्यूँ 
लेना चाहते हो?

माया

माया मे थोड़ा 
मन बहला लो,
ओ कैलाश को 
जाने वाले 
मानसरोवर मे
डुबकी लगा लो,

आज का सूरज 
उगता देखो,
आज की तितली 
उड़ते देखो,
आज खिला है 
कमल सरोवर,
आज भ्रमर के 
संग मे गा लो,

आज की परियाँ 
बाग घूमती,
आज की कलियां 
हर घर खिलती,
उनसे कुछ 
मकरंद चुरा लो,

आज दोस्त 
कुछ खेल रहे हैं,
कुछ घूम-टहल
कुछ खाना खाकर,
फिल्म देखकर 
क्रिकेट खेलकर 
जीवन मे उल्लास 
भर रहे,
उनके साथ 
कुछ ताल मिला लो!


जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...